देहरादून (उत्तराखण्ड) : आपदा राहत घोटाले में मुख्य सचिव से क्लीन चिट लेकर प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री हरीश रावत खुद अपने ही जाल में फंस गये हैं। भाजपा प्रवक्ता बलराज पासी ने आपदा घोटाले की जांच पर सवाल उठाते हुए कहा है कि मुख्य सचिव ने अधिकारियों और सरकार को बचाने के लिए लीपापोती की है। हम विधानसभा सत्र के दौरान इस मामले की सीबीआई जांच की मांग उठाएंगे।
भाजपा की आगामी रणनीति को भांपते हुए उत्तराखण्ड शासन के मुख्य सचिव एन. रविशंकर ने 19 जुलाई 15 को राजभवन में राज्यपाल डा. कृष्ण कांत पाल से भेंट कर उन्हें 2013 की आपदा राहत में अनियमितताओं से सम्बंधित शिकायत की जांच रिपोर्ट सौंपी थी। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत शिकायतों के आधार पर सूचना आयुक्त की संस्तुतियों सम्बंधी पत्र पर मुख्यमंत्री द्वारा एक जून को मुख्य सचिव को जांच सौंपी गई थी। उसी जांच रिपोर्ट और संस्तुतियों की प्रति मुख्य सचिव द्वारा राज्यपाल को सौंपी गई।
आपदा रहत घोटाले का खुलासा होने पर हरीश रावत की पहली प्रतिक्रिया एक राजनेता के अनुरूप थी कि दोषियों को कड़ी सजा दिलायेंगे परन्तु न जाने किसने कान में फूँक मार दी, उन्होंने यू टर्न लिया और दोषियों को बचाने के लिये मुख्य सचिव की जाँच बैठा दी। मुख्य सचिव से क्लीन चिट पाकर मुख्य मंत्री सहित कांग्रेस पार्टी भले ही अपना गाल बजा रही हो, उसे उत्तराखंड की जनता को जवाब तो देना ही होगा कि यदि आपदा राहत में कोई घोटाला नहीं हुआ तो तीन साल गुजर जाने के बाद भी आपदा पीड़ितों का अभी तक पुनर्वास क्यों नहीं हुआघ। क्या मुख्य मंत्री हरीश रावत मानते हैं कि आपदा राहत के कार्यों में राज्य की नौकरशाही ने पूर्ण कर्तव्य निष्ठा व ईमानदारी बरती। क्या इसी राजनीतिक चातुर्य के बल पर वो उत्तराखंड की जनता के दिलों पर राज करना चाहते हैं।
नेता प्रतिपक्ष अजय भटृ ने आपदा घोटाले में सूचना आयुक्त द्वारा मामले को अत्यधिक गम्भीर व बड़ा घोटाला बताते हुए इसकी सीबीआई जांच की मांग की थी। उन्होंने कहा कि सरकार ने सीबीआई जांच न कराकर मुख्य सचिव को इसकी जांच सौंप दी और हमने उसी दिन कह दिया था कि सरकार इस जांच में सभी को क्लीन चिट दे देगी। मुख्य सचिव वही जांच करेंगे, जो सरकार चाहेगी और इस घोटाले में पूरी सरकार संलिप्त है तो भला मुख्य सचिव की देख-रेख वाली कमेटी कैसे इसमें घोटाला साबित कर सकती थी।
जांच रिपोर्ट सामने आई तो घोटाला गायब हो गया। राज्य सरकार की जांच के अनुसार असल में घोटाला हुआ ही नहीं। जांच रिपोर्ट में सामने आया कि आपदा राहत में हुई गड़बड़ी कोई घोटाला नहीं बल्कि लिपिकीय त्रुटि है। जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करते हुए मुख्य सचिव ने बता दिया कि भुगतान में किसी तरह की कोई अनियमितता नहीं पाई गई। साथ ही उन्होंने सूचना के अधिकार कानून के तहत उजागर हुए आपदा राहत घोटाले के मामले में राज्य सरकार को क्लीन चिट दे दी। उन्होंने कहा कि इस त्रुटि की जिम्मेदारी तय करने और प्रशासनिक कार्यवाही करने का अधिकार मंडलायुक्त गढ़वाल और कुमाऊं को दिया गया है। सरकार ने विधानसभा अध्यक्ष से आग्रह किया है कि आपदा प्रबंधन के मामलों को लेकर सर्वदलीय समिति का गठन किया जाए जो स्थलीय निरीक्षण करे और सरकार को सुझाव भी दे।
आरोप क्या थे
राहत अभियान के दौरान मांस खाया गया। आपदा के समय पिकनिक मनाई गई। ’आधा किलो दूध की कीमत 194 रुपये बताई गई। मोटरसाइकिल में डीजल भरवाने का बिल पाया गया। हेलीकाप्टर से फंसे यात्रियों को निकालने का बिल 98 लाख, रुद्रप्रयाग में अधिकारियों के रहने और खाने पर 25 लाख का भुगतान, पर्यटक आवास गृह कुमाऊं मंडल के लाखों रुपये के बिल मानवता को शर्मसार करने वाले रहे। दरअसल आरटीआई के तहत देहरादून निवासी भूपेंद्र कुमार ने प्रशासन से आपदा राहत का पूर्ण विवरण मांगा था। जब यह जानकारी पूरी नहीं मिली तो मामला राज्य सूचना आयुक्त तक पहुंचा। राज्य सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा ने आपदा राहत के मामले में आपदा प्रबंधन पर तल्ख टिप्पणी की। आयुक्त ने मामले की सुनवाई करते हुए यह साफ कहा कि आपदा राहत कार्य में मिली जानकारी किसी बड़े घोटाले की तरफ इशारा कर रही है। आयुक्त ने सरकार से सीबीआई जांच कराने को कहा था। इस पर विपक्ष ने भी खूब हो-हल्ला मचाया तो मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मुख्य सचिव को आरटीआई में उठे बिंदुओं पर जांच करने के निर्देश दिए।
Comments on “सीएम रावत अपने ही जाल में फंसे, आपदा राहत घोटाले पर मुख्य सचिव की लीपापोती”
Uttrakhnd ke vinash me sbse bda hat inhi mharaj ka h
HUMARI SARKAR HUAMRI HEI JACH WAH
ये हरीश रावत क्या जाँच कराएँगे जो 13 जिला आपदा प्रबंधन कि नियुक्ति बिना पेपर मे विज्ञापन निकाले और बिना साक्षात्कार के कर दिये है।और तो और जिसको आपदा प्रबंधन अधिकारी बनाया है वो तो निर्धारित योग्यता भी पूरी नहीं करता।मैं सच कहता हूँ इतना भ्रष्ट मुख्यमंत्री नहीं देखा ।जिसको थोड़ा भी शर्म नहीं आता ।