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सियासत

‘वह लड़की मुझे आज भी नहीं भूलती’

मैं उसे भुला नहीं पा रहा हूँ। साल भर पहले तक टीवी, इंटरनेट, अखबार सभी उसकी कहानी से भरे पड़े थे। पहले वह सफदरजंग अस्पताल में भर्ती रही। फिर सिंगापुर उसे भेजा गया और अब वह हमेशा के लिए यह दुनिया छोड़ गई। पल-पल उसकी बिगड़ती हालत के बारे में बताया जा रहा था और मेरे दिमाग में वह वीभत्स रात गहराती जा रही थी। उसे कैसे भूल सकता हूँ। शायद इसलिए नहीं भूल सकता, क्योंकि मैं दिल्ली में रह रही अपनी बहन को याद करता हूँ तो महसूस होता है कि वो सड़क पर अकेले खड़ी होकर बस या ऑटो का इंतजार करते हुए उन परिस्थितियों का सामना करती होगी, जब लोग उसे घूरते होंगे। मैंने महसूस किया है उसे। मैं उसे इसलिए नहीं भूल सकता क्योंकि उसके लिए मैने पहले भी अखबारों में लिखा था। नहीं भूल सकता मैं उसे क्योंकि महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं। इसलिए भी नहीं भुला पा रहा हूं, क्योंकि यह डर कहीं न कहीं मेरे मन में भी बैठा हुआ है कि यह मेरी दोस्त या रिश्तेदार के साथ भी हो सकता था या हो सकता है। कारण भले ही कुछ भी हो, मगर मैं उस बहादुर लड़की और उसके साथ हुई पाशविकता को भुला नहीं पा रहा हूँ। मैं क्या करूं? हम में से कोई कर भी क्या सकता है?

मैं उसे भुला नहीं पा रहा हूँ। साल भर पहले तक टीवी, इंटरनेट, अखबार सभी उसकी कहानी से भरे पड़े थे। पहले वह सफदरजंग अस्पताल में भर्ती रही। फिर सिंगापुर उसे भेजा गया और अब वह हमेशा के लिए यह दुनिया छोड़ गई। पल-पल उसकी बिगड़ती हालत के बारे में बताया जा रहा था और मेरे दिमाग में वह वीभत्स रात गहराती जा रही थी। उसे कैसे भूल सकता हूँ। शायद इसलिए नहीं भूल सकता, क्योंकि मैं दिल्ली में रह रही अपनी बहन को याद करता हूँ तो महसूस होता है कि वो सड़क पर अकेले खड़ी होकर बस या ऑटो का इंतजार करते हुए उन परिस्थितियों का सामना करती होगी, जब लोग उसे घूरते होंगे। मैंने महसूस किया है उसे। मैं उसे इसलिए नहीं भूल सकता क्योंकि उसके लिए मैने पहले भी अखबारों में लिखा था। नहीं भूल सकता मैं उसे क्योंकि महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं। इसलिए भी नहीं भुला पा रहा हूं, क्योंकि यह डर कहीं न कहीं मेरे मन में भी बैठा हुआ है कि यह मेरी दोस्त या रिश्तेदार के साथ भी हो सकता था या हो सकता है। कारण भले ही कुछ भी हो, मगर मैं उस बहादुर लड़की और उसके साथ हुई पाशविकता को भुला नहीं पा रहा हूँ। मैं क्या करूं? हम में से कोई कर भी क्या सकता है?

 ‘‘मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है। हाथ लगाओ डर जायेगी, बाहर निकालो मर जायेगी।‘‘ मेरी तीन साल की बिटिया जन्मदिन पर उपहार में मिली हुई ‘बाल कविता’ के पन्ने खोलकर रटी हुई ये कविता बोल रही थी और मैं हरियाणा के पानीपत से ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान‘ की शुरुआत करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण लखनऊ में बैठ कर सुन रहा था। उनका भाषण और बिटिया की कविता सुनते हुए मैं सोच रहा था कि बिटिया रूपी मछली माता के गर्भ में जल के बीच रहने वाली रानी होती है, परन्तु भ्रूण हत्या करने वाले कसाई डाक्टरों का हाथ लगते ही डर जाती है और उनके द्वारा माँ के गर्भ रूपी जल से बाहर निकालते ही मर जाती है। पता नहीं कितना कठोर कलेजा करके माताएं भ्रूण हत्याएं करवातीं हैं और रूपये के लोभी डॉक्टर ऐसी हत्याएं करते हैं। अपनी बिटिया के बारे में सोचता हूँ तो मुझे यही लगता है कि उसके बिना अब मेरा कोई अस्तित्व नहीं। जब वो महज दो महीने की थी और ज्वर से पीडित हो गई थी, तब हॉस्पिटल में रातभर जागते और ठण्ड में ठिठुरते हुए हम पति पत्नी बस यही सोचते रहे कि बिटिया यदि साथ छोड गई तो हमें घर वापस जाना चाहिए कि नहीं? वो नहीं तो किस बात का घर और कैसा घर? और अब सोचता हूँ कि दिल्ली में वहशीपन की शिकार उस लड़की के घर का माहौल कैसा होगा?

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लड़कियों के संबंध में ये एक बहुत बड़ी सच्चाई है कि इस युग में भी अनगिनत लोग न सिर्फ लडकियों को पैदा होने से रोक रहे हैं, बल्कि जो हैं, उन्हें उनके अधिकारों से भी वंचित कर रहे हैं। लड़के-लड़कियों का लिंग अनुपात बिगडॉने और लड़कियों पर होने वाले तरह-तरह के शोषण का मूल कारण भी यही है। महिलाओं के प्रति अपराधों में नित इजाफा हो रहा है। अलग-अलग तरीको सें उसका शोषण हो रहा है। प्रधानमंत्री का भाषण सुनते हुए दो बार मैं बहुत भावुक हुआ। पहली बार जब प्रधानमंत्री ने कहा कि रूपये के लालच में कन्या भ्रूण हत्या करने वाले डॉक्टर खाना खाते समय क्या कभी ये सोचते हैं कि ये खाना किसी महिला ने बनाया है? दूसरी बार उन्होंने विशाल जनसमूह को बताया कि ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना की ब्रॉड एबेंसडर माधुरी दीक्षित की माताजी आईसीयू में भर्ती हैं, फिर भी वो इस कार्यक्रम में आई हुई हैं।

‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान की सफलता के लिए पूरे मन से जुटी माधुरी दीक्षित अपने सम्बोधन में अपने माताजी की बीमारी की कोई चर्चा नहीं की थीं और मुस्कुराते हुए अभियान की सफलता की कामना ही करती रहीं। एक पुरानी फिल्म ‘बादल’ के एक गीत के ये बोल याद आ गए- खुदगर्ज दुनिया में ये, इनसान की पहचान है, जो पराई आग में जल जाये, वो इनसान है। प्रधानमंत्री ने अपने भावुक सम्बोधन में कहा कि मैं आपके बीच बहुत बड़ी पीड़ा लेकर आया हूं कि कैसे एक कन्या मां के पेट में मार दी जाती है। हम 21वीं सदी के लोग हैं, यह कहलाने के लायक हम नहीं है। हमारी सोच आज भी 18वीं सदी के जैसी है। उस समय लडकियों के पैदा होने के बाद दूध से भरे बर्तन में डुबोकर मार दिया जाता था, परन्तु अब तो उसे पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है।

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प्रधानमंत्रीजी की बात से मैं सौ फीसदी सहमत हूँ। हमारे देश के बहुत से लोग लडकों के लिए और बहुत से लोग एक लडका और एक लडकी का कोम्बीनेशन बनाने के लिए न जाने कितनी लडकियों की भ्रूण हत्या करवा डालते हैं और फिर ये हत्यारे सबसे बडे़ गर्व से कहते हैं कि हमारे तो लड़के हैं या फिर कहते हैं कि हमारा तो एक लड़का और एक लड़की है, हम लड़का और लड़की में भेदभाव नहीं करते हैं। प्रधानमंत्री ने लड़कियों से होने वाले भेदभाव कि चर्चा करते हुए कहा कि अगर घर में खाना बना हो और मां ऊपर से बच्चों को घी दे रही हो तो बेटे को दो चम्मच और बेटी को एक चम्मच देती है। यह सोच सिर्फ हरियाणा की नहीं है पूरे देश की है। प्रधानमंत्रीजी ने लडकों द्वारा अपने बूढे माँ-बाप को वृद्धाश्रम में भेजने और बुढापे में बेटियों के साथ देने की सच्चाई बयान करते हुए कहा कि अगर बेटे बुढापे में काम आते तो इतने वृद्धाआश्रम नहीं खुले होते। ऐसी सैकड़ों बेटियां है जो मां-बाप की सेवा करने के लिए अपने सपने चूर कर देती हैं। उन्होंने कहा कि आज लडकियां शिक्षा से लेकर नौकरी तक हर क्षेत्र में लडकों से आगे हैं। प्रधानमंत्रीजी ने विशाल जनसभा में उपस्थित लोंगो को बेटी बचाने और उसे पढाने के लिए शपथ दिलाई तथा उन्होंने लडकी पैदा होने पर पूरे गांव में जश्न मनाने और उसके नाम से पांच पेड लगाने की सलाह दी। ‘बेटी बचाओ’ अभियान की शुरुआत मध्यप्रदेश की सरकार ने की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने इसमें ‘बेटी पढाओ’ शब्द और जोड दिया है। 

महिलाओं के प्रति होने वाले शोषण को रोकने की आवश्यकता है। बलात्कार एवं भ्रूण हत्या करने वालों के खिलाफ सख्त से सख्त कानून के बनाए जाने की आवश्यकता है। पुलिसिया कार्रवाई में तेजी लाने की दरकार है। दोषियों को तुरंत सजा कैसे मिले, यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है। कानून की गंभीरता का संदेश तभी जाएगा। लेकिन क्या इतना ही पर्याप्त है? नहीं। और भी बहुत कुछ है, जो हम कर सकते हैं, जो हमें करना है। महिलाओं के प्रति देश की सोच बदलनी है। बशर्ते कि हममें से प्रत्येक इस मुहिम में सक्रिय भागीदारी करे। ये सभी काम आज से और अभी से हों, क्योंकि वह लड़की मुझे आज भी नहीं भूलती।

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(लेखक श्री रामस्वरुप मेमारियल विश्वविद्यालय लखनऊ में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)

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0 Comments

  1. Dr. Yogendra Kumar P

    March 6, 2015 at 6:58 am

    प्रिय ऋतेश भाई आपकी सारगर्भित एवं ह्रदय विदारक टिपण्णी के लिए आपको साधुवाद
    डॉ योगेन्द्र कुमार पाण्डेय, असिस्टेंट प्रोफेसर, शिया पी जी कॉलेज लखनऊ

  2. fatima kirmani

    March 9, 2015 at 10:39 am

    well said ritesh sir

  3. Alok Kr Singh

    March 10, 2015 at 4:52 am

    bahut hi aacha lekh hai

  4. Yogendra Kumar Pandey

    February 25, 2016 at 7:48 am

    Bahut Khoob

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