Pradumn Kaushik : इन्हीं अफसर साहेब ने दैनिक जागरण के तेज तर्रार और ईमानदार पत्रकार गौरव दीक्षित पर भी फर्जी मुकदमे लगाए थे। गौरव दीक्षित का सिर्फ इतना कसूर था कि उन्होंने क्राइम कंट्रोल नहीं होने पर तत्कालीन एसएसपी गुलाब सिंह के खिलाफ खबरें चलाई थी। तब ये साहेब बुलन्दशहर के सीओ सिटी थे।
वैसे किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं यह साहेब … लेकिन इन्हें दो बार तब जाना, जब इनका वास्ता बुलन्दशहर से पड़ा …. कोई शक नहीं कि ये बेहद ईमानदार अधिकारी हैं, लेकिन इनका घमंड और इनकी तानाशाही इनकी इसी खूबसूरती को नेस्तनाबूद करती है …
पहला किस्सा 2012 का है … दैनिक जागरण के क्राइम रिपोर्टर गौरव दीक्षित फर्जी पत्रकारों के लिए सुनामी साबित हो रहे थे या यूं कहें कि वो पत्रकार बुलन्दशहर की पत्रकारिता से गंदगी साफ करने की बेहतर कोशिश कर रहा था। पत्रकार गौरव दीक्षित की लेखनी क्राइम कंट्रोल करने में फेल पुलिस को भी चुभ रही थी। यह साहेब उस समय बुलन्दशहर के सीओ सिटी हुआ करते थे।
गौरव की कलम को जब यह साहेब नहीं रोक सके, तो उन पर फर्जी मुकदमे दर्ज करवाए गए। उन्हें मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ा। चूंकि फर्जी पत्रकारों का कॉकस बहुत मजबूत था और वह भी गौरव की कलम की सुनामी में बहने लगे थे। इसके कारण उन्हें गौरव के खिलाफ लिखवाए गए मुकदमों से जैसे बहते हुए को तिनके का सहारा मिल गया।
पुलिसिया तानाशाही में आखिरकार गौरव दीक्षित इस लड़ाई में अकेले पड़ गए और उन्हें मजबूरन शहर छोड़ना पड़ा।
दूसरा किस्सा है 2016 का …. तब ये साहेब एसएसपी बुलन्दशहर बनकर आये। एनएच-91 पर माँ-बेटी से गैंगरेप की घटना तो आपके जेहन में होगी ही। घटना के वक्त ये साहेब बुलन्दशहर के ही कप्तान थे। एनएच-91 पर गैंगरेप की घटना के बाद सूचना पाते ही ये साहेब तत्काल मौके पर पहुंच गए।
साहेब इस घटना को इतने हल्के में लेने लगे कि इन्होंने पूरी घटना की भनक मीडिया को लगे बिना सुबह भौर के समय ही करीब पांच बजे आनन फानन में माँ-बेटी का मेडिकल कराकर उन्हें उनके गंतव्य शाहजहांपुर की तरफ रवाना भी कर दिया। इस वीभत्स कांड की जानकारी मीडिया को करीब 10 बजे महिला अस्पताल से लगी।
इसके बाद जो हुआ, वो तो देश के सामने ही है। पुलिस ने मीडिया के दबाव में निर्दोष लोगों को आरोपी बनाकर जेल भेज दिया। जब सीबीआई जांच हुई तो आरोपी कोई और निकले, जिसके बाद पुलिस की भारी फजीहत भी हुई। मामले में ये साहेब अपनी पूरी टीम के साथ सस्पेंड भी हुए।
नोएडा के पत्रकारों का दमन हो या मेरठ के टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप के पत्रकार को दफ्तर से उठवाना हो … ये कारनामे भी साहेब की मानसिकता को दर्शाते हैं।
साहेब, ये लोकतांत्रिक देश है और यंहा सभी को अपनी बात रखने का पूरा अधिकार संविधान ने दिया है। तानाशाही से न देश कभी चला है और न ही चलेगा ….
Gaurav Dixit : वैभव कृष्ण एक बार और निलंबित होते. जब वह सीओ सिटी बुलंदशहर थे, दुष्कर्म की पीड़िता को इनकी ही अभिरक्षा में कोतवाली लाया गया था. उन्होंने उसे लॉकअप में बैठा दिया. दैनिक जागरण में खबर प्रकाशित होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना का संज्ञान लिया था. यह तो तत्कालीन एसएसपी गुलाब सिंह की मेहरबानी थी की उन्होंने इन्हें सुप्रीम कोर्ट के कोप से बचा लिया. वरना यह तभी सस्पेंड हो गए होते. वहीं से उन्हें लगने लगा कि पूरे तंत्र को अपने प्रभाव से चलाया जा सकता है.
नोएडा में जब इनका सेक्स वीडियो सामने आया था तो लोग इसे गलत मान रहे थे. मैंने पहले ही दिन कह दिया था कि यह वीडियो सही है क्योंकि बुलंदशहर में भी इनके ऐसे किस्से कम न थे.
पत्रकार प्रद्युम्न कौशिक और गौरव दीक्षित की एफबी वॉल से.
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ambrish
January 14, 2020 at 11:29 am
क्या इन चोरों से किसी ने पूछा कि इस मामूली सी तनख्वाह में ये महँगा मोबाइल , चार पहिया गाडी कैसे बरत लेते हो ! जिले के कप्तान / पुलिस के आला अधिकारियों के साथ सेल्फी खींचा कर दलाली करने वाले जब ईमानदारी का दम्भ भरते है तो ईमानदारी का अपमान तो होता ही है साथ ही उसकी परिभाषा का सुविधाकरण होता है