आज इस ख़बर को पढ़ी, तो चेहरे पर मुस्कान छा गई। अब ये मेरी कहानी पढ़ने के बाद इस मुस्कान का अर्थ निकालने की ज़िम्मेदारी मैं आप पर छोड़ता हूं। 9 मार्च 2009 की रात। उन दिनों वॉयस ऑफ इंडिया उत्तर प्रदेश / उत्तराखंड का प्रभार मेरे पास था। रात में मोबाइल बजा। रात्रिकालीन प्रोड्यूसर एक ख़बर के बारे में निर्देश चाह रहे थे। गंभीर ख़बर थी। फौरन दफ्तर भागा। वरुण गांधी की लम्बी सी बाइट थी। बाइट ज्यों की त्यों नहीं चलाई जा सकती थी। फिर भी ख़बर तो चलनी थी।
उन दिनों भी चुनावी माहौल था। बड़बोले नेताओं में बड़बोलेपन की होड़ लगी थी। अगले दिन सुबह वरुण गांधी की भड़काऊ बाइट समेत वो ख़बर हेडलाइन के रूप में चली। उन दिनों उत्तर प्रदेश में मायावती का शासन था। सरकार ने उस बाइट को संज्ञान में लिया और पीलीभीत में वरुण गांधी के विरुद्ध केस दर्ज हो गया। बाइट की मूल सीडी और कैमरा जमा करने के लिए मेरे पास पीलीभीत थाने से नोटिस आ गया।
डाक विभाग की सुस्त चाल के बारे में दुनिया भी जानती है और पुलिस महकमा भी। ऊपर से लोकसभा चुनाव सिर पर था। लिहाजा डाक से भेजी गई नोटिस बाद में पहुंची, हाथों-हाथ नोटिस लेकर पीलीभीत से एक पुलिसकर्मी नोएडा स्थित दफ्तर पहुंच गए। ख़ैर, कानूनी औपचारिकताएं पूरी हुईं और वरुण गांधी के ख़िलाफ़ अदालती कार्रवाई भी शुरु हो गई।
जनवरी, 2013. गवाही के लिए मुझे पीलीभीत की अदालत से नोटिस प्राप्त हुआ। तब तक वॉयस ऑफ इंडिया के सारे चैनल बंद हो चुके थे और मैं पी7 न्यूज़ में था। नोटिस को लेकर मैं उहापोह में पड़ गया। 4 साल बीत चुके थे। गवाही देने जाऊं या नहीं… उहापोह में ही कुछ दिन गुजर गए।
18 जनवरी 2013 को पीलीभीत की अदालत में मेरी गवाही थी। 17 जनवरी को मेरे पास एक फोन आया और मेरा उहापोह दूर हो गया। अज्ञात नम्बर था। दूसरी ओर से मुझे स्पष्ट धमकी मिली कि मैं गवाही देने के लिए पीलीभीत पहुंचा नहीं कि…
मैंने भी उन जनाब का महिमामंडन करते हुए उनकी तुलना दाउद इब्राहिम से की और उनके दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की।
स्वीकार करता हूं कि आज जितनी सभ्यतापूर्वक उस बातचीत का जिक्र कर रहा हूं, वो बातचीत उतनी सभ्यतापूर्वक नहीं की गई थी। शालीनता की परिभाषा भूलकर, संसदीय मूल्यों को ताक पर रखकर तथा मां के दूध का हवाला देते हुए दर्शन की गुज़ारिश की गई थी।
रात में घर जाने के बजाय दफ्तर से सीधे आनंद विहार बस अड्डे पहुंचा। पीलीभीत के लिए स्टेट रोडवेज़ की बस पकड़ी और एक बड़ी चुनौती से निपटने निकल पड़ा।
चुनौती ठंड की थी। एनसीआर की प्रदूषित गर्म हवा में 17 जनवरी की रात एक हाफ जैकेट पहनकर यातायात किया जा सकता था। लेकिन हाफ जैकेट में स्टेट रोडवेज की बस में रात्रिकालीन यात्रा वास्तव में एक बड़ी चुनौती थी। ठंड की चुनौती से निपटने का एक ही रास्ता था – ठंड बर्दाश्त करना।
अगले दिन, यानी 18 जनवरी 2018 को, सुबह करीब दस बजे, पीलीभीत अदालत के बाहर जिन सज्जनों से मुलाकात हुई, उनमें एक श्रीमान मलिक साहब भी थे। पिछले दिन के फोन से उलट बड़ी सज्जनता के साथ उन्होंने मुझसे गवाही न देने का अनुरोध किया। अपने फोन पर श्री वरुण गांधीजी से बात कराई। मैंने भी उतनी ही शालीनता से कहा कि आप जो करना चाहें, आप करें और मैं जो करना चाहता हूं, मैं करूंगा।
अदालती कार्रवाई शुरू हुई। उस दिन अदालत का मेरा अनुभव अविश्वसनीय, अकल्पनीय है। सुभाष कपूर चाहें तो कोर्ट पर आधारित अपनी अगली फिल्म में ऐसा सीक्वेंस डाल सकते हैं।
मुझसे जिरह करना था श्री वरुण गांधीजी के वकील को। वकील साहब जब कमज़ोर पड़े, तो जज साहब वकील की भूमिका में आ गए। कहते हैं अर्धनारीश्वर का स्वरूप पुरुष और स्त्री- दोनों भूमिकाओं में होता है। यहां भी एक ही व्यक्ति को दो भूमिकाओं में देखना वाकई अदभुत अनुभव था।
सवाल कई थे, अपनी याददाश्त के अनुसार कुछ सवाल-जवाब पेश कर रहा हूं।
सवाल – आपने श्री वरुण गांधी के भाषण की सीडी चलाई थी?
जवाब – जी हां। चलाई थी।
सवाल – आपको ये सीडी कहां से प्राप्त हुई?
जवाब – चैनल में काम करने वाले स्टिंगर से, जिन्होंने भाषण रिकॉर्ड किया था।
सवाल – क्या आपने सीडी चलाने से पहले इसकी सत्यता जांच की थी?
जवाब – नहीं। मीडिया में अपने रिपोर्टर/स्टिंगर पर भरोसा किया जाता है। हर सीडी और टेप की जांच की जाने लगे, तो ज़्यादातर समय टीवी चैनल ब्लैक रहेंगे। जिन्हें सीडी की सत्यता पर संदेह है, वो अवश्य इसकी जांच करा सकते हैं।
सवाल – जितना पूछा जाए उतना ही जवाब दीजिये। आपका स्टिंगर हिन्दू है या मुसलमान?
अब तक मेरा पारा चढ़ चुका था। स्टिंगर का धर्म बताने के बजाय ज़ुबान से कुछ ऐसा निकला कि जज साहब का पारा चढ़ गया। झाड़ खाकर मैं अदालत से निकल गया।
अदालत में पीछे बैठा स्टिंगर भी पूरी कार्रवाई देख रहा था। मायूस होकर उसने मुझसे पूछा, ‘अब क्या होगा सर?’ जवाब में मैंने गंभीरता के साथ एक भविष्यवाणी की और बस स्टैंड के लिए रिक्शा पकड़ लिया।
पीलीभीत से बरेली और बरेली से दिल्ली। एक बार फिर रात का सफर। ठंड फिर चुनौती बनकर मेरे सामने खड़ी थी। लेकिन इस बार उसकी एक न चली। शायद दिमाग की गर्मी जिस्म को भी गर्म रखती है।
कुछ दिनों बाद एक ख़बर पर मेरी नज़र पड़ी। वरुण देव को भड़काऊ भाषण के आरोपों से मुक्त कर दिया गया था।
और मैं गर्व से मुस्कुरा पड़ा। मुझे एक अच्छा भविष्यवक्ता होने का अभिमान हो रहा था।
वरिष्ठ पत्रकार अगस्त्य अरूणाचल टीवी पत्रकारिता के अलावा डिजिटल और सिनेमा के क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से कार्यरत हैं.
मूल खबर…