राजस्थान भाजपा बगैर पंख का बाज… राजस्थान भाजपा की राजनीतिक स्थिति बगैर पंख के बाज जैसी है जो उड़ान तो कर्नाटक के जोड़तोड़ के नाटक की तर्ज पर करना चाहती है मगर उसका नेतृत्व करने वाला कोई येद्दयुरप्पा जैसा नेता नहीं है। इसलिए उसके विधायक कोरी बयानबाजी करके राजनीति के प्याले में तूफान खड़ा करके ही खुश हो जाते हैं। राज्य भाजपा की ये स्थिति करने के लिए जिम्मेदार केंद्रीय नेतृत्व है जो अपना आदेश न मानने वाली वसुंधरा राजे को पार्टी में दरकिनार कर दिया है।
2013 के विधानसभा चुनाव में राजे की अगुवाई में भाजपा 200 विधायकों के सदन में 163 सीटें लेकर आई थी जिसे राजे ने अपना राजनीतिक करिश्मा घोषित किया। उनकी इस घोषणा से नरेन्द्र मोदी की टीम आगबबूला हो गई। इसके पीछे कारण यह था कि मोदी तेज गति से देश की राजनीति में चमक रहे थे। उसी दौरान मध्य प्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़, हिमाचल विधानसभा के चुनाव हुए थे जिनमें भाजपा को मिली भारी सफलता का सेहरा मोदी के सिर पर सजा कर उन्हें लोकप्रिय नेता की सोपान पर चढ़ाना था। लेकिन राजस्थान के मामले में राजे ने उनके मंसूबे पर पानी फेर दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी राज्य की 25 की 25 सीटें भाजपा के खाते में गई जिसे राजे ने मोदी की लोकप्रियता का कमाल घोषित करने की बजाय अपने नेतृत्व की सफलता करार दे दिया।
मोदी और शाह ने वसुंधरा की परेशानी खड़ी करने के लिये जो अशुभ कार्य किये, उसकी छोटी सी दास्तां जान लीजिए। उन दिनों वसुंधरा के स्थान पर नया मुख्यमंत्री बनाने के लिए उन्हें केंद्र में मन्त्री पद देने की पेशकश की गई जिसे उन्होंने इस दावे से ठुकरा दिया कि 113 विधायकों के समर्थन के एफिडेविट उनके पास है अतः वे पार्टी तोड़ देंगी। दूसरा हमला वसुंधरा के नजदीकी प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी की जंगह केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को नियुक्त करने के लिए परनामी का त्याग पत्र लिया। इस हमले का जवाब भी उन्होंने पार्टी तोड़ने की धमकी दे कर अपना बचाव किया व अपने खास मदनलाल सैनी को नियुक्ति दिलाई।
तीसरे हमले में वसुंधरा की सुने बगैर विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण किये व केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को चुनाव संचालन प्रभारी बनाकर जयपुर बैठा दिया जिन्होंने वसुंधरा को चुनाव प्रचार से पूरी तरह अलग रखा। विधानसभा चुनाव में पराजय मिलने के बाद वसुंधरा को प्रतिपक्ष का नेता नहीं बनाये जाने के कारण उनके साथ शिवराज सिंह, डॉ रमन सिंह को भी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद दिया गया जो शाह-मोदी की राजनीतिक चाल थी। इस पर वसुंधरा के चुप रहने के इलावा कोई चारा नहीं था।
अगले हमले में शाह-मोदी ने वसुंधरा के विरोध के बावजूद राजेन्द्र सिंह राठौड़ को उपनेता प्रतिपक्ष नियुक्त किया। जब लोकसभा के चुनाव हुए 2019 में तब वसुंधरा की पूरी अनदेखी करते हुए जावड़ेकर ने हनुमान बेनीवाल को नागौर से समर्थन देकर वसुंधरा के नजदीकी सीआर चौधरी की टिकिट काट दी तथा उनके सभी विरोधियों को चुनाव में उतार दिया एवं उन्हें चुनाव प्रचार से दूर कर दिया। प्रदेशाध्यक्ष सैनी के निधन से खाली पद पर भी वसुंधरा विरोधी की नियुक्ति होना तय माना जा रहा है।
इस सबको लेकर यह कहा जाने लगा है कि देर सवेर वसुंधरा द्वारा राज्य में अलग पार्टी का गठन करना तय है।
लेखक एस. पारीक पिंक सिटी प्रेस क्लब, जयपुर के अध्यक्ष रहे हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं.
Sumit
July 29, 2019 at 9:06 pm
वसुंधरा राजे राजस्थान में भाजपा का चेहरा है
के अरविंद
July 30, 2019 at 7:34 pm
राजस्थान में अलग पार्टी बनाने की भूल वसुंधरा राजे कभी नहीं करेंगी।
गोपाल गर्ग
August 1, 2019 at 11:11 am
कोरी गप है। न तो वसुंधराराजे नाराज है और न नई पार्टी बना रही है । हा थोडी अनबन जरुर हो सकती है केन्द्रीय नेतृत्व के साथ
हितेश
October 2, 2019 at 3:39 pm
राजस्थान में पार्टी का खराबा हो गया हे पार्टी के बड़े नेता हवा में उड़ रहे हे