Mohammad Anas : ताकि लोग यह न कहें कि हमने अपनी ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ वह सब होने दिया जिसे नहीं होना चाहिए था… इसे ऐसे ही लिख रहा हूं… क्रांति नहीं समझिएगा क्योंकि जिस छोटी सी बात का निवेदन कर रहा हूं आगे, वह बहुत बड़ी बात नहीं है जो आपसे न हो सके. करने की कोशिश कीजिएगा..बस कोशिश… वहां बच्चों को पार्ट टाइम जॉब करने की मनाही है. कोर्स खत्म होने के बाद प्लेसमेंट नहीं है. रैगिंग हो रही है, यूनिवर्सिटी प्रशासन यूजीसी को फर्जी तौर पर कहता है कि एफआईआर हो चुकी है. नौकरियों में धांधली पिछले कई सालों से बिना रोक टोक के जारी है. कैम्पस के भीतर धार्मिक गतिविधियों से लेकर आरएसएस के पतलू, मोटू, छोटू, लम्बू सबका हैप्पी बड्डे धूमधाम से मनाया जा रहा है. वाइस चांसलर इतना चमत्कारी और विद्वान है कि उसके समकक्ष कोई दूसरा ज्ञानी ‘व्यापम के घोटालेबाज़ों’ को नहीं मिला और एक बार फिर से नौकरी बजाने और वीसी बने रहने की ज़िम्मेदारी दे दी गई.
आदरणीय वीसी के पहले कार्यकाल में उनका जिस अंदाज़ में स्वागत हुआ था, वह न तो भूले न तो उन्होंने स्वागत करने वालों को भूलने दिया. जिन सबने विरोध किया था, उनका सिर्फ इतना कहना था कि कैम्पस को बपौती समझ कर नारद मुनि को पहला पत्रकार नहीं बल्कि सहमति और सर्वांगीण विकास का सूचक बनाइये. वीसी साहब नाराज़ हो गए. आखिर होते भी क्यों नहीं. जब इनके डॉ बत्रा ने पहले जहाज से लेकर पहले टेस्ट ट्यूब बेबी तक को महाभारत में पाया जाना करार दे दिया हो तो यह कितनी सरल सी बात है की नारद साहब पहले पत्रकार भी न हो पाए. कितनी दिक्कत है जी आप लोगों को, इंसानियत भी कोई चीज़ होती है. हर अच्छे प्रतीक अपने मत और विचारधारा के अनुरूप आपने तो बना लिए अब आदरणीय कुठियाला जी नारद मुनि को पहला पत्रकार क्लेम करवा रहे हैं तो थोड़ा स्पेस बनाइये, खिसकिए.
देखिए होता क्या है, वो वीसी इसलिए ही बनाए गए हैं ताकि नए मिथक गढ़ सकें, नहीं गढ़ेंगे तो कोई संघी उन्हें कुर्सी पर बैठने के लिए तो कहेगा पर जब वे बैठेंगे तो वो पीछे से कुर्सी खींच ताली बजाएगा. कैसा अद्भुत दृश्य होगा. कितना मजाक बनेगा तब, सोचा है आपने? लेकिन बच्चों, प्यारे बच्चों. इस राजनीति में आपके वीसी साहब का मज़ाक न बने उसकी तो फ़िक्र है लेकिन खुद का मज़ाक बन जाए उसकी चिंता कौन करेगा? चिंटू या चिंटू के नाना? न, न बिल्कुल नहीं. अपनी फ़िक्र तो आपको ही करनी पड़ेगी. यूनिवर्सिटी में आपकी लाइफ सिर्फ दो या तीन साल की होती है… इस दौरान आपको उन फैसलों और व्यक्तियों की पहचान करनी ही होगी जिनसे आपका हित सुरक्षित रह सके. अब आप सब दिमाग से पैदल तो हैं नहीं की एप्पल और लावा की साउंड, पिक्चर तथा टच क्वालिटी परख न सकें. परखिए !
कोई भी विचारधारा सिर्फ आपका इस्तेमाल करती है और आप इस्तेमाल होते हैं. जहां दो साल ही रहना है वहां उसके साथ जाइए जो प्रत्यक्षरूप से आपके साथ हो. नौकरी ज़रूरी है,हमारे दौर में कुछ लोगों के लिए कभी नहीं थी इसलिए वीसी के फर्जीवाड़े और गुटबाजी के विरोध में छात्र हितों के लिए ऐसा दबाव बना था की वीसी अपने आवास पर ही कार्यालय शिफ्ट कर लिए थे. अरे डराइये, खौफ़ में रखिए. सरकारी पैसा खाने वालों को अपना दिमाग मत खाने दीजिए. इनसे जो मिले उसे समेट लीजिए. राजनीति तो होती है,होती रहेगी. एकात्म मानववाद पढ़ा जाए या फिर ये समझा जाए की बड़े अखबार और न्यूज़ चैनल में संपादक की गाली से कैसे बचना है? पूछिये अपने वीसी से. टाइम नहीं है दुनिया को. सब तेजी से भाग रहा है. एकात्म मानववाद पढ़ लेंगे या समझ लेंगे तो उसका इस्तेमाल कहाँ करेंगे ? ऐसे मानववाद को न तो बैंक एक्सेप्ट करता है और न ही एटीएम बाहर निकालता है… बच्चों, इसका पत्रकारिता से नजदीक का तो छोड़िये दूर का भी कोई रिश्ता नहीं.
माखनलाल पत्रकारिता विवि में पढ़ चुके और वर्तमान में कई मीडिया मंंचों से जुड़े सोशल एक्टिविस्ट और जर्नलिस्ट मोहम्मद अनस के फेसबुक वॉल से.
kishore
September 25, 2014 at 11:22 am
वाह यार अनस ये हुई ना बात………………मज़ा आ गया…..इन्होंने जो कोहराम मचाया …..मचाया …इनकी नाजायज भर्तियों ने भी कदर मचा रखी है