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सियासत

अफ़वाहों से परेशान वेदांता वाले अनिल अग्रवाल ने सामने आकर स्थिति स्पष्ट की

अभिषेक पाराशर-

हिंडेनबर्ग की साजिशन जारी रिपोर्ट भारतीय पूंजी बाजार को अस्थिर करने वाली रिपोर्ट थी. पूर्व के पोस्ट में उन कारणों का जिक्र भी किया था. नतीजा पैनिक क्रिएट करना था और यही वजह थी कि जबरदस्त गुणवत्ता वाले असेट समर्थित होने के बावजूद अडाणी समूह के कई स्टॉक्स बिकवाली की चपेट में आ गए. जबकि वे शेयर्स कहीं से भी सेंटीमेंट्स ट्रेडिंग वाले स्टॉक नहीं थे. अब कुछ दिनों से वेदांता को लेकर भारतीय मीडिया रिपोर्ट कर रहा है कि अडाणी के बाद वेदांता कर्ज संकट की समस्या का सामना कर रहा है.

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अनिल अग्रवाल का इंटरव्यू देखा, जिसमें वह बता रहे हैं कि उनकी कंपनी कितनी सुविधाजनक स्थिति में हैं और अगर कंपनी अपने राजस्व से कर्ज भुगतान नहीं कर पाती है तो उसके पास ऐसी परिसंपत्तियां हैं, जिससे वह आसानी से कर्ज जुटा सकते हैं. मुमकिन है कि उन्हें यह इंटरव्यू देने के लिए मजबूर होना पड़ा हो क्योंकि मीडिया में लगातार खबर छप रही है कि वेदांता के शेयरों में पिछले कई सेशंस से गिरावट आ रही है और स्थिति कुछ ठीक नहीं है.

यह समय है कि भारतीय मीडिया में काम करने वाले संपादकों को बिजनस की खबरों की रिपोर्टिंग को लेकर कुछ मानदंडों को स्थापित करना होगा. समस्या यह भी है कि किसी एक ने ऐसी खबरों को प्रकाशित कर दिया तो आपको दबाव में वह खबर चलानी होगी और जब भेड़चाल में खबर चल जाएगी तो फिर लोग पैनिक होंगे. जरूरी नहीं है कि सभी रिपोर्ट को न्यूज की शक्ल में लोगों तक परोसा ही जाए और अगर कोई रिपोर्ट है, जो वित्त से जुड़ा मामला है तो उसे एक्सप्लेन किया जाना चाहिए कि रिपोर्ट में जैसा कुछ बताया गया है, स्थिति वैसी नहीं है. या फिर रिसर्च करें और देखें कि कंपनी के फाइनैंस की क्या स्थिति है?

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वैश्विक बाजार में ब्याज दरों के बढ़ने का बॉन्ड रेट पर क्या असर होता है या फिर बढ़ती ब्याज दरों के बीच क्या कंपनियां आसानी से धन जुटा पाती हैं? यह सब समझे बिना आंख मूंदर हिंडेनबर्ग या किसी भी रिपोर्ट को सीधे छाप देना, पाठकों के साथ साथ प्रोफेशन से अन्याय है. ऐसा नहीं किया जाना चाहिए. भारत आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है, चीन प्लस रणनीति की बात हो रही है, क्वाड अस्तित्व में हैं, भू-राजनीतिक संबंध तेजी से बदल रहे हैं, दुनिया अटलांटिक से एशिया प्रशांत में शिफ्ट हो रही है, वैसे में किसी भी रिपोर्ट को सीधे छाप देना थोड़ी जल्दबाजी है. भारतीय मीडिया के संपादकों को थोड़ा सोचने की जरूरत है!

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