Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

मतदाताओं को जोखिम में डालने वाली वीर रस की यह खबर किसके लिए?

यह नवभारत टाइम्स में आज पहले पेज पर टॉप में प्रकाशित खबर है। ठीक है यह नक्सली क्षेत्र से बहुत दूर दिल्ली में छपी है (वहां के एडिशन में क्या है मुझे नहीं पता) पर क्या नक्सलियों को इस तरह चिढ़ाने और चुनौती देने की जरूरत है? यह उन्हें चिढ़ाना नहीं तो और क्या है? ठीक है, डरना नहीं चाहिए और नक्सली गैर कानूनी काम कर रहे हैं पर दूसरों की फोटो छापना वह भी तब जब वोट देने वालों के उंगलियों में निशान नहीं लगाने की मांग की गई थी और उसे सुना नहीं गया तथा पता है कि निशान 10-15 दिन लगे रहेंगे तो यह वीर रस किस लिए? अगर वीरता दिखानी ही थी तो अपनी तस्वीर लगानी चाहिए थी कि देखो मैंने वोट दिया है। दूसरों के दम पर और वह भी आदिवासी महिलाओं के दम पर “ठेंगा दिखाया” जैसा शीर्षक मुझे तो ठीक नहीं लगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

खासकर तब जब एक समाज-देश के रूप में हम ऐसे लोगों को सुरक्षा नहीं दे पाते हैं। सवाल यह भी है कि इतने लोगों की जान खतरे में डालकर मिलेगा क्या? ठीक है, मामला संपादकीय स्वतंत्रता का है। पर संपादकीय विवेक भी तो कुछ होता है। यही नहीं, तथ्य यह भी है कि औसत मतदान पिछले चुनाव की तुलना में कम हुआ है। लेकिन नभाटा ने अपनी खबर में उन गावों के नाम भी छापे हैं जहां 15 वर्ष से वोट नहीं पड़े थे। सोमवार को यह सिलसिला टूटा तो निश्चित रूप से उसका कोई कारण होगा। 15 साल बाद अगर वोट नहीं डालने का सिलसिला टूटा है तो निश्चित रूप से यह खबर है और अगर गांव का नाम छापना उचित माना गया तो मैं अभी उसपर भी विवाद नहीं करूंगा पर उस कारण को भी रेखांकित किया जाना चाहिए था जिसकी वजह से सिलसिला टूटा।

वह कारण बेहतर सुरक्षा या सुरक्षा एजेंसियो में भरोसा हो सकता है। अगर ऐसा हो तो उसे बताया जाना चाहिए था। स्थानीय लोगों को यह पता होगा पर दिल्ली के एक पाठक के रूप में सूचना की मेरी भूख तो बनी रही। लगता है, मतदाताओं की पहचान दिखाने वाली फोटो पीटीआई की है और कुछ ही अखबारों ने इसका उपयोग किया है। नभाटा का शीर्षक भी भड़काने वाला है। देखता हूं दूसरे अखबारों में क्या है। दैनिक भास्कर ने यही सूचना देने के लिए जो फोटो लगाई है और खबर दी है उसमें बताया गया है कि लोगों ने उंगलियों के निशान मिटा दिए। जिसने मिटाए उसका चेहरा नहीं दिखाया गया है। निशान मिट गए यह अलग खबर है और मैं उसपर लिख चुका हूं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

नवोदय टाइम्स ने भी इस खबर को नवभारत टाइम्स की ही तरह छापा है। हांलांकि शीर्षक काफी नरम है, “नक्सलियों के खिलाफ वोट भी, चोट भी”। मतदान के लिए लाइन लगे मतदाताओं की फोटो के ऊपर लिखा है, “नक्सल प्रभावित 18 विधानसभा क्षेत्रों में करीब 70 प्रतिशत मतदान”। फोटो कैप्शन है, “नारायणपुर : एक मतदान केंद्र पर वोट डालने के लिए लगा लंबी कतार”। दैनिक जागरण ने पहले पेज पर टॉप में खबर छापी है और फोटो भी है। हालांकि, फोटो सिंगल कॉलम में है, पर है। शीर्षक है, “नक्सल खौफ पर भारी लोकतंत्र, 70% मतदान”। अखबार ने मतदान की इस खबर के साथ प्रधानमंत्री के चुनाव प्रचार की खबर को भी सिंगल कॉलम में छापा है। शीर्षक है, “जमानत पर चल रहे मां-बेटे उठा रहे नोटबंदी पर सवाल : मोदी”। यहां बताया गया है कि यह खबर पेज 9 पर है। अमर उजाला ने पहले पेज पर दो कॉलम में यह खबर छापी है। सिंगल कॉलम में छोटी सी फोटो है जिसका कैप्शन है, “बस्तर में मतदान के लिए कतार में लगे मतदाता”। यह फोटो दरअसल कुछ महिलाओं और बच्चों की है जिनका चेहरा सबसे साफ इसी अखबार में दिख रहा है।

दैनिक हिन्दुस्तान में पहले पेज पर यह खबर बिना किसी फोटो के सिंगल कॉलम में है। शीर्षक है, “उत्साह : छत्तीसगढ़ में पहले चरण में 70 फीसदी मतदान”। अंदर के पेज पर यह खबर विस्तार में है। पांच कॉलम में एक फोटो के साथ टॉप और तीन कॉलम में दूसरी फोटो। कुल आठ कॉलम। पांच कॉलम का शीर्षक है, नक्सलियों के मंसूबे फेल, पहले चरण में खूब मतदान। राजस्थान पत्रिका में यह खबर पहले पेज पर सिंगल कॉलम में है और सिंगल कॉलम में ही बिना कैप्शन के फोटो। अंदर यह खबर तीन कॉलम में है। फ्लैग शीर्षक है, “पहले चरण का मतदान : दांतेवाड़ा में पांच सीआरपीएफ जवान गायल।” मुख्य शीर्षक है, “छत्तीसगढ़ में माओवादियों ने धमकी दी, बम फोड़े, फिर भी जीता लोकतंत्र”। मतदाताओं को पहचानने लायक फोटो यहां भी नहीं है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अंग्रेजी अखबारों में हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पेज से पहले के अधपन्ने पर यह खबर है और शीर्षक में माओवादियों की धमकी की कोई चर्चा नहीं है। मेरा मानना है कि धमकी की खबर पहले छापने का तो मतलब था पर जब उसे नजरअंदाज किया गया तब भी भले ही खबर हो लेकिन पहचानने लायक फोटो या गांव के नाम के साथ नहीं छापना चाहिए। हिन्दुस्तान टाइम्स ने और बातों के साथ यह भी बताया है कि पिछली बार 75 प्रतिशत वोट पड़े थे और इस बार 70 प्रतिशत पड़े हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी यह खबर पहले पेज से पहले के अधपन्ने पर छापी है। शीर्षक है, बस्तर में मतदाताओं ने लाल निशान पार किया, 66% लोग मतदान केंद्रो पर पहुंचे।

खबर के साथ अखबार ने जो फोटो छापा है उसका कैप्शन है, गहरी जड़ों वाला लोकतंत्र, सुकमा में एक पेड़ के नीचे स्थापित एक मतदान केंद्र। इंडियन एक्सप्रेस में टाइम्स ऑफ इंडिया वाली फोटो ही बड़ी छपी है। यहां मतदान केंद्र की एक और फोटो है। उसमें मतदाताओं का चेहरा नहीं दिख रहा है। पांच कॉलम का शीर्षक है, आईईडी और माओवादियों की धमकी के बावजूद बस्तर में वोट पड़े : ‘दादालोग कितनी उंगलियां काट सकते हैं?’ खबर की शुरुआत एक मतदाता के चित्रण से होती है जिसने अपनी उंगली छिपा रखी है और फिर उसका कारण बताया जाता है और आगे लिखा है, इस व्यक्ति का नाम नहीं बताया जा सकता है क्योंकि यह जिन्दगी और मौत का मामला है। काश इस बात का ख्याल और लोग रखते।

Advertisement. Scroll to continue reading.

 

वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट। संपर्क : [email protected]

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement