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मेलबर्न 7 और नेड केली की दास्‍तान

आप आस्ट्रेलिया आये और नेड केली की रोचक कहानी सुने बिना चले जाएँ, यह संभव नहीं. अंग्रेजी सत्ता को चुनौती देने के जुर्म में २५ साल के आयरिश नौजवान नेड केली को सन १८८० में अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था. मेलबर्न की ओल्ड जेल (आज म्‍यूजियम) की कालकोठरी और उस स्थान को देखकर मैं हैरत में पड़ गया,  जहां नेड को आनन- फानन में फाँसी दी गयी. आस्ट्रेलिया के मंझे हुए कलाकारों द्वारा एक घंटे के नाटक का मंचन देखकर मैं मंत्रमुग्‍ध हो गया. यह नाटक नेड की जिन्दगी पर फांसी स्थल पर होता है. मजेदार बात यह है कि नेड की जिन्दगी को जिसने भी जानने की कोशिश की वह बहता ही चला गया.

<p style="text-align: justify;">आप आस्ट्रेलिया आये और नेड केली की रोचक कहानी सुने बिना चले जाएँ, यह संभव नहीं. अंग्रेजी सत्ता को चुनौती देने के जुर्म में २५ साल के आयरिश नौजवान नेड केली को सन १८८० में अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था. मेलबर्न की ओल्ड जेल (आज म्‍यूजियम) की कालकोठरी और उस स्थान को देखकर मैं हैरत में पड़ गया,  जहां नेड को आनन- फानन में फाँसी दी गयी. आस्ट्रेलिया के मंझे हुए कलाकारों द्वारा एक घंटे के नाटक का मंचन देखकर मैं मंत्रमुग्‍ध हो गया. यह नाटक नेड की जिन्दगी पर फांसी स्थल पर होता है. मजेदार बात यह है कि नेड की जिन्दगी को जिसने भी जानने की कोशिश की वह बहता ही चला गया.</p> <p style="text-align: justify;" />

आप आस्ट्रेलिया आये और नेड केली की रोचक कहानी सुने बिना चले जाएँ, यह संभव नहीं. अंग्रेजी सत्ता को चुनौती देने के जुर्म में २५ साल के आयरिश नौजवान नेड केली को सन १८८० में अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था. मेलबर्न की ओल्ड जेल (आज म्‍यूजियम) की कालकोठरी और उस स्थान को देखकर मैं हैरत में पड़ गया,  जहां नेड को आनन- फानन में फाँसी दी गयी. आस्ट्रेलिया के मंझे हुए कलाकारों द्वारा एक घंटे के नाटक का मंचन देखकर मैं मंत्रमुग्‍ध हो गया. यह नाटक नेड की जिन्दगी पर फांसी स्थल पर होता है. मजेदार बात यह है कि नेड की जिन्दगी को जिसने भी जानने की कोशिश की वह बहता ही चला गया.

इतिहासकार, शिक्षाविद, समाज सुधारक, उपन्यासकार, फिल्मनिर्माता, कवि, लेखक, पत्रकार, लोकगायक ही नहीं आस्ट्रेलिया की सामान्य जनता ने नेड के गीत गए हैं. आस्ट्रेलिया की पुलिस रहस्य रोमांच से भरपूर नेड की जिन्दगी के कुछ अनसुलझे पहलुओं को आज भी सुलझाने की कोशिश करती रहती है. जून १८५५ में जन्मे नेड के पिता रेड केली आयरलैंड से एक कैदी के रूप में आस्ट्रेलिया लाये गए थे. सजा काटने के बाद केली परिवार यही बस गया. १२ भाई बहनों में नेड सबसे बड़ा था. १२ वर्ष की उम्र में नेड ने देखा कि विक्टोरिया पुलिस ने उसके परिवार को कभी भी चैन से सांस नहीं लेने दी. अबोध बच्चों के साथ उसकी माँ को तो कभी उसको जेल में डाल देना पुलिस की आदत बन गयी. १४ वर्ष की उम्र में नेड बाग़ी हो गया. ४ हमउम्र दोस्तों के साथ मिलकर वह अंग्रेजी हुकूमत को मजा चखाने बगावत की राह पर चलने लगा.

हथियार थाम और घोड़ों पर सवार ४ नौजवानों का केली गैग जब जंगलों से अत्याचारी सत्ता के खिलाफ हुंकार भरता था तो पुलिसवालों की रूह कांप जाती थी. केली गैग को पैसों की जब भी आवशयकता होती वे बैंक लूटते किसी राहगीर को नहीं. सन १९७८ में केली के नाम से सरकार थर-थर कांपने लगी. १०० पौंड का इनाम रखा केली के सर पर. एक बार ४ पुलिस वालों ने केली को घेर लिया. इनमें ३ पुलिस वाले गैंग की गोलियों से मारे गए. एक भाग निकला. इस घटना के बाद केली की गिरफ्तारी पर इनाम २०० पौंड कर दिया गया. बाद में यह इनाम ८००० पौंड तक पहुंच गया. इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया में किसी अपराधी को पकड़ने के लिए इतना बड़ा इनाम आज तक घोषित नहीं किया गया.

केली गैंग के चारों सदस्य लोहे का कवच पहनते थे. इस पर गोली असर नहीं करती थी. इस कवच में खेत जोतने वाले हल का लोहा प्रयोग किया गया था. सर से लेकर पैरों तक का ४० किलो वजन का कवच किस तकनीक से बनाया गया, केली के दिमाग में कवच की परिकल्पना कैसे आई और इसे कैसे अंजाम दिया आदि सवाल १२५ साल बाद भी केली पर शोध करने वालों को परेशान किये हुए हैं. गाँव वाले केली से भरपूर सहानभूति रखते थे. केली ने ५७ पेज (करीब ८००० शब्द) का एक पत्र लिखा और इसे अखबार में प्रकाशित करने के लिए एक व्यक्ति को दिया. इसकी एक प्रति विक्टोरिया संसद को भेजी. इस पत्र को तब दबा दिया गया. १९३० में यानी केली को मृत्यु दंड दिए जाने के ५० साल बाद यह पत्र अखबार में छपने के बाद उजागर हुआ. इस पत्र में केली ने अपने बागी बनने की पूरी कथा तथा अपने परिवार पर किये गए पुलिसिया जुल्म लिखने के साथ-साथ शोषित और गरीबों पर ब्रिटिश हुकूमत द्वारा किये जाने वाले अन्याय की तस्वीर पेश की है. केली के इस पत्र और भारत के शहीद भगत सिंह द्वारा अदालत में दिए गए बयानों में मुझे समानता मिलती है. यह एक संयोग है.

केली ने पुलिस के हाथों कभी न पकडे़ जाने की व्यवस्था अपने कवच के माध्यम से कर रखी थी. लेकिन विधि को यह मंजूर न था. बात २६ जून १८८० की है. मेलबर्न से १८० किमी दूर ग्लेंरोवन नाम का गाँव है. केली ने इस गाँव के ७० लोगों को अचानक बंधक बनाया. उसकी योजना थी कि इस खबर को सुन मेलबर्न से पुलिस फोर्स ट्रेन से आयेगी. वह रास्ते में पटरी उखाड कर ट्रेन को पलटने की व्यवस्था कर देगा. बंधकों में एक स्कूल मास्टर भी था. किसी तरह वह भाग निकला और ट्रेन को पलटने से बचा लिया. पुलिस ने उस होटल को घेर लिया,  जिस में केली बंधकों के साथ था. दोनों ओर से गोलीबारी हुई. केली अपने कवच पर गोलियों के वार झेलता रहा, लेकिन एक गोली उसके पैर में लगी और वह गिर पडा और पकड़ा गया. बाकी तीन साथी मारे गए. मुकदमा चला और आनन-फानन में ११ नवम्‍बर १८८० को केली को ओल्ड जेल में फँसी पर लटका दिया गया. केली को फांसी न देने की अपील ३०००० गाँव वालों ने की.

फांसी की सजा सुनाने वाले जज रेडमंड बेरी ने जब केली से अंतिम इच्छा पूछी तो केली ने बड़ी सहजता से कहा कि वह जहां जा रहा है, वहां आपसे (जज) जल्द ही मुलाक़ात होगी. यह संयोग था की जज बेरी १२ दिन बाद अपने चेंबर में चल बसे. केली की कहानी का एक आश्चर्यजनक पहलू यह है कि जज बेरी ने ओल्ड जेल के पास एक लाइब्रेरी की स्थापना की थी. आज यह लाइब्रेरी दुनिया की मानी हुई लाइब्रेरी है. इस स्टेट लाइब्रेरी में आज केली की स्मृति रक्षा बहुत सम्मान के साथ की जा रही है. एक गैलरी केली को समर्पित है. इसमें केली का रक्षा कवच और केली को अमरत्व प्रदान करने वाला उसका पत्र अनेक चित्रों के साथ बड़े सम्मान के साथ प्रदर्शित है. केली की बहादुरी ब्रिटिश सत्ता को जबरदस्त चुनौती थी. केली किस मिट्टी का बना था,  इस रहस्य को जानने के लिए पुलिसवालों ने फांसी के फंदे से केली के मृत शरीर को उतारा और उसका सर कलम कर चिकित्सकों से जांच कराई कि इसके अन्दर कोई चीज विशिष्ट तो नहीं. बाद में पुलिस अफसर केली की खोपड़ी का इस्तेमाल अपनी मेज पर एक पेपरवेट के रूप में भी करते रहे.

अपनी निजी लड़ाई जब जनता की लड़ाई बन जाय तो लड़ने वाला योद्धा जननायक बन जाता है. यही हुआ केली के साथ. जिस स्थान पर केली को फांसी दी गयी उस स्थान पर उसके जीवन पर नाटक खेले जा रहे हैं, जिस कालकोठरी में रहा वह संग्रहालय है, जिस मिटटी में उसने पुलिस के साथ लुकाछिपी की वहां लोकगायक उसकी बहादुरी के गीत गा रहे हैं. सम्पूर्ण आस्ट्रेलिया के विश्व विद्यालयों में केली के संघर्ष के पीछे छिपे जनहित के मर्म को तलाशने की कोशिश की जा रही है गोष्ठियों और सेमिनार के जरिये केली के जाने के सवा सौ साल बाद भी.

लेखक अशोक बंसल पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं. इन दिनों आस्‍ट्रेलिया के दौरे पर हैं.

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