Connect with us

Hi, what are you looking for?

विदेश-ब्रह्मांड

सिर्फ आठ लोगों के पास है दुनिया की आधी से भी अधिक संपत्ति

दुनिया में अमीर-गरीब के बीच खाई लगातार गहराती जा रही है–ऑक्सफैम

यदि दुनिया भर में गरीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाली ब्रिटिश गैर-सरकारी संगठन ऑक्सफैम की सोमवार को दावोस में जारी रिपोर्ट पर यकीन करें तो ‘सारे रास्ते रोम की तरफ जाते हैं’ यह कहावत अक्षरशः सही साबित होती है। यह बात आधुनिक मानव-समाज के उस छोटे से हिस्से पर पूरी तरह लागू होती है जिसके पास दुनिया की आधी से भी ज्यादा संपत्ति इकट्ठा हो गई है। विगत कुछेक दशकों में वैश्विक अर्थ-व्यवस्था के नियम-कायदों का अधिकाधिक लाभ इसी वर्ग को मिलने तथा दुनिया भर में लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने से अमीरों और गरीबों के बीच का फासला इस कदर बढ़ा है कि दुनिया की आधी आबादी के पास जितनी संपत्ति है, उससे भी अधिक दौलत सिमट कर केवल 8 ही धनाढ्य लोगों के पास एकत्र हो गई है। इन सबसे अमीर आठ उद्योगपतियों में अमेरिका के छः, स्पेन और मेक्सिको के एक-एक उद्योगपति शामिल हैं। ऑक्सफैम ने दुनिया में अमीर और गरीबों के बीच के व्यापक अंतर और मुख्यधारा की राजनीति में उत्पन्न हो रहे असंतोष को भी रेखांकित किया है।

<p><strong>दुनिया में अमीर-गरीब के बीच खाई लगातार गहराती जा रही है--ऑक्सफैम</strong></p> <p>यदि दुनिया भर में गरीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाली ब्रिटिश गैर-सरकारी संगठन ऑक्सफैम की सोमवार को दावोस में जारी रिपोर्ट पर यकीन करें तो ‘सारे रास्ते रोम की तरफ जाते हैं’ यह कहावत अक्षरशः सही साबित होती है। यह बात आधुनिक मानव-समाज के उस छोटे से हिस्से पर पूरी तरह लागू होती है जिसके पास दुनिया की आधी से भी ज्यादा संपत्ति इकट्ठा हो गई है। विगत कुछेक दशकों में वैश्विक अर्थ-व्यवस्था के नियम-कायदों का अधिकाधिक लाभ इसी वर्ग को मिलने तथा दुनिया भर में लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने से अमीरों और गरीबों के बीच का फासला इस कदर बढ़ा है कि दुनिया की आधी आबादी के पास जितनी संपत्ति है, उससे भी अधिक दौलत सिमट कर केवल 8 ही धनाढ्य लोगों के पास एकत्र हो गई है। इन सबसे अमीर आठ उद्योगपतियों में अमेरिका के छः, स्पेन और मेक्सिको के एक-एक उद्योगपति शामिल हैं। ऑक्सफैम ने दुनिया में अमीर और गरीबों के बीच के व्यापक अंतर और मुख्यधारा की राजनीति में उत्पन्न हो रहे असंतोष को भी रेखांकित किया है।</p>

दुनिया में अमीर-गरीब के बीच खाई लगातार गहराती जा रही है–ऑक्सफैम

यदि दुनिया भर में गरीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाली ब्रिटिश गैर-सरकारी संगठन ऑक्सफैम की सोमवार को दावोस में जारी रिपोर्ट पर यकीन करें तो ‘सारे रास्ते रोम की तरफ जाते हैं’ यह कहावत अक्षरशः सही साबित होती है। यह बात आधुनिक मानव-समाज के उस छोटे से हिस्से पर पूरी तरह लागू होती है जिसके पास दुनिया की आधी से भी ज्यादा संपत्ति इकट्ठा हो गई है। विगत कुछेक दशकों में वैश्विक अर्थ-व्यवस्था के नियम-कायदों का अधिकाधिक लाभ इसी वर्ग को मिलने तथा दुनिया भर में लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने से अमीरों और गरीबों के बीच का फासला इस कदर बढ़ा है कि दुनिया की आधी आबादी के पास जितनी संपत्ति है, उससे भी अधिक दौलत सिमट कर केवल 8 ही धनाढ्य लोगों के पास एकत्र हो गई है। इन सबसे अमीर आठ उद्योगपतियों में अमेरिका के छः, स्पेन और मेक्सिको के एक-एक उद्योगपति शामिल हैं। ऑक्सफैम ने दुनिया में अमीर और गरीबों के बीच के व्यापक अंतर और मुख्यधारा की राजनीति में उत्पन्न हो रहे असंतोष को भी रेखांकित किया है।

विश्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम) की सालाना बैठक के पहले दुनिया भर के गरीबों के हित में काम करने वाली संस्था ऑक्सफैम ने अपनी इस रिपोर्ट–‘ऐन इकॉनमी फॉर द 99 पर्सेंट’ में कहा है कि धन की यह खाई पहले की अपेक्षा और भी अधिक चौड़ी हो गई है। ऑक्सफैम ने इसे चिन्ताजनक बताते हुए कहा है कि इससे पहले 2010 में 43 लोगों के पास दुनिया के गरीबों की आधी संपत्ति हुआ करती थी, जो 2015 में बहुत तेजी से घटकर केवल नौ लोगों के पास रह गई थी। इस रिपोर्ट में दुनिया के आधे लोगों की गिनती सम्पन्नों की सूची में नीचे से की गई है। अर्थात् सबसे नीचे गरीब और सर्वाधिक अमीर ऊपर। उद्योगपतियों का चयन फोर्ब्स की अरबपतियों की सूची से किया गया है।
 
ऑक्सफैम द्वारा इस वर्ष विश्व की कुल संपत्ति 2.56 लाख अरब डॉलर आंकी गई है जिसमें से करीब 426.2 अरब डॉलर की संपत्ति पर केवल आठ ही धन-कुबेरों का आधिपत्य है। इस सूची में माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स करीब 75 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ शीर्ष पर हैं। उनके बाद फैशन हाउस इंडीटैक्स के संस्थापक एमैनसियो ऑर्टेगा (67 अरब डॉलर), तीसरे स्थान पर अमेरिकी व्यवसायी व निवेशक वॉरेन बफेट (60.8 अरब डॉलर) हैं। चौथे नंबर पर मैक्सिकन व्यवसायी कार्लोस स्लिम हेलु (50 अरब डॉलर), पांचवें पर अमेजन डॉट कॉम के चेयरमैन और सीईओ जेफ बेजोस (45.2 अरब डॉलर), उसके बाद फेसबुक के सह-संस्थापक, चेयरमैन व सीईओ मार्क जुकरबर्ग (44.6 अरब डॉलर), ऑरेकल कॉर्पोरेशन के सह-संस्थापक लैरी एलिसन (43.6 अरब डॉलर) और न्यूयार्क के पूर्व मेयर माइकल ब्लूमबर्ग (40 अरब डॉलर) का नाम आता है।

वर्ष 2016 के आंकड़ों पर आधारित इस रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि दुनिया में धन का कितना असमान वितरण है। एक तरफ लोग लगातार गरीब होते गये हैं तो दूसरी ओर अमीरों की अमीरी में बेतहाशा वृद्धि हुई है। ये आंकड़े गवाह हैं–कुल वैश्विक दौलत–2.56 लाख अरब डॉलर। वैश्विक दौलत में वृद्धि–3.5 लाख करोड़ डॉलर। सबसे अमीर आठ लोगों की कुल संपत्ति–426.2 अरब डॉलर। शेष आधी आबादी (3.6 अरब लोगों) के पास कुल संपत्ति–409 अरब डॉलर। एक अरब लोगों के पास केवल 248 डॉलर या इससे भी कम धन है।

गरीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाले इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन ऑक्सफैम ने अपनी नई रिपोर्ट ‘ऐन इकॉनमी फॉर द 99 पर्सेंट’ में कहा है–‘‘ब्रेक्जिट से लेकर डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने की सफलता तक, नस्लवाद में वृद्धि और मुख्यधारा की राजनीति में अस्पष्टता से चिंता बढ़ रही है। वहीं सम्पन्न देशों में अधिक से अधिक लोगों में यथास्थिति बर्दाश्त न करने के संकेत भी अधिक दिख रहे हैं।’’ भारत और चीन के नये आंकड़े साबित करते हैं कि दुनिया के आधे गरीब पहले से और भी अधिक गरीब हुए हैं।

भारत की 58 प्रतिशत संपत्ति पर सिर्फ 1 फीसदी अमीरों का कब्जा है
ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारत की कुल 58 प्रतिशत संपत्ति पर देश के मात्र एक प्रतिशत अमीरों का आधिपत्य है जो देश में बढ़ते आर्थिक वैषम्य की ओर संकेत है। यह आंकड़ा वैश्विक 50 प्रतिशत के आंकड़े से भी अधिक है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत के केवल 57 अरबपतियों के पास कुल 216 अरब डॉलर की संपत्ति है जो देश की करीब 70 प्रतिशत आबादी की कुल संपत्ति के बराबर है।

रिपोर्ट बताती है कि केवल एक प्रतिशत भारतीयों के पास देश की कुल संपत्ति का 58 फीसदी है। भारत की कुल आबादी 1.3 अरब है और यहाँ की कुल संपत्ति 3.1 लाख करोड़ डॉलर है। इसके बावजूद भी यहाँ अमीरों और गरीबों के बीच की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। देश के केवल 84 अरबपतियों के पास 248 अरब डॉलर की संपत्ति है। जिसमें से केवल इन आठ के पास कुल 91.4 अरब डॉलर की दौलत इकट्ठी हो गई है– मुकेश अंबानी–चेयरमैन और मैनेजिंग डायरैक्टर, रिलायंस इंडस्ट्रीज लि, 19.3 अरब डॉलर, दिलीप सांघवी–संस्थापक, सन फार्मास्युटिकल्स, 16.7 अरब डॉलर, अजीम प्रेमजी–चेयरमैन विप्रो लि., 15 अरब डॉलर, शिव नाडार–संस्थापक और चेयरमैन एचसीएल,11.1 अरब डॉलर, साइरस पूनावाला–संस्थापक, बाॅयोटेक कंपनी सेरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, 8.5 अरब डॉलर, लक्ष्मी मित्तल–चेयरमैन और सीईओ, आर्सेलर मित्तल, 8.4 अरब डॉलर, उदय कोटक–एक्जीक्यूटिव वाइस चैयरमैन और मैनेजिंग डायरैक्टर, कोटक महिंन्द्रा बैंक 6.3 अरब डॉलर तथा कुमार मंगलम बिड़ला–आदित्य बिड़ला ग्रुप, 6.1 अरब डॉलर की संपत्ति के मालिक हैं।

ऑक्सफैम की यह रिपोर्ट ध्यान आकर्षित करती है कि विकसित और विकासशील दोनों तरह के देशों में आर्थिक असमानता किस स्तर तक बढ़ती जा रही है। ऑक्सफैम के अनुसार अमीरों ने आर्थिक खेल के नियम अपने हित में करने तथा लोकतंत्र को कमजोर करने के इरादे से राजनीतिक राह भी पकड़ ली है। दुनिया की आधी आबादी अर्थात् 3.6 अरब लोगों की संपत्ति (409 अरब डॉलर) के बराबर केवल 8 सबसे अमीर लोगों के पास जमा हो गई है।

इससे साफ पता चलता है कि कई देशों में धनवानों की दौलत में इस बढ़ोतरी के पीछे एक कारण करों की चोरी भी है। धनाढ्य लोग और कंपनियां टैक्स अधिकारियों से सांठ-गांठ कर खरबों डॉलर छिपा लेती हैं। उनकी संपत्ति कर ढांचे और सरकारी तंत्र में पैठ का लाभ उठाते हुए बढ़ती जा रही है। पिछले दशक में भारत में अरबपतियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है, जबकि दूसरी तरफ गरीबों पर होने वाला खर्च उल्लेखनीय रूप से कम हुआ है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अमर्त्य सेन तथा थॉमस पिकेटी ने अपने विश्लेषणों में भारत में गरीबी तथा विषमता के लिए टैक्स हैवन की आपराधिक प्रवृत्ति को जिम्मेदार ठहराया है। क्या वास्तव में इसके लिए सरकार की आर्थिक, वित्तीय और कर नीतियां जिम्मेदार नहीं हैं? भारत में केवल सरकारी अधिकारियों के लिए अपने विदेशों खातों की जानकारी देना जरूरी कर देने भर से काम नहीं चलेगा, पद्म पुरस्कार तथा अन्य सरकारी लाभ लेने वाले बड़े लोगों को भी विदेशी खातों तथा नागरिकता का खुलासा करना जरूरी होना चाहिए। ऐसे नियम राजनेताओं तथा उद्योगपतियों पर भी लागू होने चाहिए, जो बैंकों से कर्ज और सरकारी सम्पत्ति में भ्रष्टाचार कर पैसा टैक्स हैवन में जमा करते हैं।

वैश्विक अर्थव्यवस्था के नये प्रबंधन-कौशल तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था को निरंतर कमजोर किये जाने के कारण ही जहाँ भारत जैसे देश में सत्ता प्रतिष्ठान पर कब्जा किये कुछ लोग दो वर्ष पूर्व ग्रामीण भारत के लिए प्रतिदिन 32 रुपये को जीवनयापन का मानक मान रहे थे, तो वहीं दूसरी ओर दुनिया के दूसरे कोने में एक व्यक्ति बिल गेट्स की दैनिक आमदनी 2.6 करोड़ डॉलर थी। क्या इस विरोधाभास के पीछे प्राकृतिक कारण है? नहीं कदापि नहीं। यह अंतर विशुद्ध रूप से मानव-निर्मित है। इतनी दौलत जमा कर लेने का कारण है–दुनिया भर में शासन-प्रशासन चलाने वालों को येन-केन-प्रकारेण अपने प्रभाव में लेकर स्वार्थ सिद्ध करने की कला में महारत। इसका अर्थ यह भी हुआ और जैसा कि उपरोक्त रिपोर्ट में कहा भी गया है, सारी दुनिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करके सरकारी तंत्र में पैठ का लाभ उठाते हुए टैक्सों की चोरी कर अपनी तिजौरी भरी गई। दूसरी तरफ गरीबों की शिक्षा, चिकित्सा, भोजन, रहन-सहन आदि पर होने वाले खर्च में उल्लेखनीय रूप से कमी आई। कुल मिलाकर लोकतंत्र को लूटतंत्र बनने से रोका न गया तो आने वाले समय में दुनिया की तस्वीर बहुत डरावनी होगी, यह निश्चित है।

श्यामसिंह रावत
[email protected]

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

मेरी भी सुनो

अपनी बातें दूसरों तक पहुंचाने के लिए पहले रेडियो, अखबार और टीवी एक बड़ा माध्यम था। फिर इंटरनेट आया और धीरे-धीरे उसने जबर्दस्त लोकप्रियता...

साहित्य जगत

पूरी सभा स्‍तब्‍ध। मामला ही ऐसा था। शास्‍त्रार्थ के इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी प्रश्‍नकर्ता के साथ ऐसा अपमानजनक व्‍यवहार...

राजनीति-सरकार

मोहनदास करमचंद गांधी यह नाम है उन हजार करोड़ भारतीयों में से एक जो अपने जीवन-यापन के लिए दूसरे लोगों की तरह शिक्षा प्राप्त...

मेरी भी सुनो

सीमा पर तैनात बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव ने घटिया खाने और असुविधाओं का मुद्दा तो उठाया ही, मीडिया की अकर्मण्यता पर भी निशाना...

Advertisement