अपने हक, बकाया वेतन और मजीठिया वेज बोर्ड की मांग को लेकर आंदोलन करने वाले मीडिया के बर्खास्त, निष्कासित और स्थनांतरित किये गये कर्मचारियों को एकजुट होकर भ्रष्ट प्रबंधन के खिलाफ लडऩा होगा। हम लोगों के बिखरे होने का ही फायदा मीडिया प्रबंधन उठा रहा है। अदालती कार्यवाही चलती रहे। हम लोगों को लामबंद होकर देश व समाज को धोखा दे रहे भ्रष्ट मीडिया घरानों के खिलाफ मोर्चा खोलना होगा। सबसे पहले हम लोग राष्ट्रीय सहारा से ही निपटे। राष्ट्रीय सहारा पर बर्खास्त 25 हमारे साथी धरना दे रहे हैं। हम सभी लोगों को एकजुट होकर हमारे इन साथियों का साथ देना होगा। हम लोग इस आंदोलन को बड़ा रूप दें और अन्य प्रिंट मीडिया संस्थाओं को भी अपनी बातें मनवाने के लिए मजबूर कर दें।
दैनिक जागरण में 450 साथी हैं। राष्ट्रीय सहारा में भी 100 के आसपास कर्मचारी हैं। अन्य प्रिंट संस्थाओं के भी काफी कर्मचारियों को अवैधानिक तरीके से नौकरी से निकाला गया है। अब समय आ गया है कि हम सब एकजुट होकर इस उत्पीडऩ के खिलाफ हुंकार भरें और इस आंदोलन को जनांदोलन का रूप दें। बंधुआ मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने हमारी लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर लडऩे का भरोसा दिया है। उनके हमारे साथ आने से हमें बड़ी मजबूती मिली है।
अब तो जगजाहिर हो चुका है कि मजीठिया वेज बोर्ड की अवमानना का केस सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। सोचने की बात यह है कि वहां पर मजीठिया वेज बोर्ड की बात तो हो रही है पर मजीठिया मांग रहे जिन कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया है उनकी कौन सुनेगा ? जबकि होना यह चाहिए कि मजीठिया मांगने का साहस दिखाने वाले कर्मचारियों को प्राथमिकता के आधार पर न्याय मिले। मजीठिया को लेकर राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिन्दुस्तान, नव भारत टाइम्स समेत काफी प्रिंट मीडिया से बड़े स्तर पर कर्मचारी बर्खास्त किए हैं। ऐसे हालात में जरूरत है कि हम लोग एकजुट होकर अपने हक की लड़ाई लड़ें।
वैसे तो लगभग सभी अखबारों का यही हाल है पर राष्ट्रीय सहारा के मालिकान और प्रबंधन की बेशर्मी तो हद ही पार गई है। इन लोगों के रवैये से तो ऐसा ही लग रहा है कि जैसे इनमें इज्जत, शर्म, गैरत नाम की कोई चीज बची ही नहीं है। बात देशभक्ति की करेंगे और काम ऐसे कि यदि ये लोग खुद अपने को आईने में देखें तो इनकी खुद की आंखें शर्म से झुक जाएं। जिस संस्था में कर्मचारियों का 10-12 महीने का बकाया वेतन बकाया हो। जिस संस्था में 25 बर्खास्त कर्मचारी गेट पर बैठकर प्रबंधन के खिलाफ नारेबाजी कर उसे लालकार रहे हों। 22 कर्मचारियों को धोखे से पहले ही निकाल दिया हो। उस संस्था का मालिक और प्रबंधन बड़ी बेशर्मी से बड़ी-बड़ी गाडिय़ों में बैठकर परिसर में चले आते हैं। सब कुछ सुन लेंगे पर पैसे नहीं देंगे। वैसे कोर्ट के सम्मान की बात करेंगे पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना कर, मजीठिया वेजबोर्ड मांगने वाले कर्मचारियों को नौकरी से निकाल देंगे और कर्मचारियों को मजीठिया नहीं देंगे।
दादागिरी देखिए कि कर्मचारियों को देने के लिए पैसा नहीं है पर जबरन उनकी नो एंट्री कर दी जाती है, उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता है। मामला सीधे -सीधे उत्पीडऩ का है पर कोई किसी तरह का हस्तक्षेप करता नहीं दिख रहा है। राष्ट्रीय सहारा परिसर में मीडिया प्रबंधन के अलावा रोज सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय के छोटे भाई जयव्रत राय भी बैठ रहे हैं। वह भी लंबी-लंबी गाडिय़ों से ऑफिस में आते हैं। प्रबंधन के हर अधिकारी को भी गाड़ी और ड्राइवर मिले हुए हैं। खुद चेयरमैन सुब्रत राय कई गार्डांे को साथ लेकर चलते हैं। समय-समय पर बेहद खर्चीले कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं। करोड़ों का विज्ञापन टीवी चैनलों पर चल रहा है। प्रबंधन न तो बर्खास्त कर्मचारियों को कोई पैसा दे रहा है, न ही रिटायरमेंट हुए कर्मचारियों को, न ही एग्जिट प्लॉन के तहत नौकरी छोड़े कर्मचारियों को और न ही स्थानांतरण किए गए कर्मचारियों को।
चरण सिंह राजपूत
राष्ट्रीय अध्यक्ष फाइट फॉर राइट
वैचारिक सलाहकार बंधुआ मुक्ति मोर्चा
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