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मीडिया मंथन

हम पत्रकार कहीं पुलिस की कठपुतली तो नहीं बन रहे

सुनील मौर्यपत्रकारों के कान में फिर फूंका जा रहा है- कातिल कोई हाई प्रोफाइल है… गोल्फ खेलने वाला है… : मुझे, आप और सभी को ब्रेकिंग न्यूज चाहिए। खासकर आरुषि केस में। इस मर्डर मिस्ट्री की बात जुबां पर आते ही ‘कौन है कातिल’ को लेकर चर्चा छिड़ जाती है। सबकी अपनी-अपनी थ्योरी। कभी पिता तो कभी नौकर तो कभी अन्य। कयासों का अंबार। लेकिन हकीकत से कोसों दूर। वाकई में यह केस देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री बन चुका है। सबकी निगाह लगी है। खासकर मीडियाकर्मियों की। होड़ लगी है कौन सबसे ज्यादा ब्रेकिंग न्यूज दे दे। 

<p><img class="caption" src="http://bhadas4media.com/images/stories/sunilmaurya009.jpg" border="0" alt="सुनील मौर्य" title="सुनील मौर्य" width="85" height="67" align="left" /><strong>पत्रकारों के कान में फिर फूंका जा रहा है- कातिल कोई हाई प्रोफाइल है... गोल्फ खेलने वाला है... </strong><strong>: </strong>मुझे, आप और सभी को ब्रेकिंग न्यूज चाहिए। खासकर आरुषि केस में। इस मर्डर मिस्ट्री की बात जुबां पर आते ही 'कौन है कातिल' को लेकर चर्चा छिड़ जाती है। सबकी अपनी-अपनी थ्योरी। कभी पिता तो कभी नौकर तो कभी अन्य। कयासों का अंबार। लेकिन हकीकत से कोसों दूर। वाकई में यह केस देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री बन चुका है। सबकी निगाह लगी है। खासकर मीडियाकर्मियों की। होड़ लगी है कौन सबसे ज्यादा ब्रेकिंग न्यूज दे दे।  </p>

सुनील मौर्यपत्रकारों के कान में फिर फूंका जा रहा है- कातिल कोई हाई प्रोफाइल है… गोल्फ खेलने वाला है… : मुझे, आप और सभी को ब्रेकिंग न्यूज चाहिए। खासकर आरुषि केस में। इस मर्डर मिस्ट्री की बात जुबां पर आते ही ‘कौन है कातिल’ को लेकर चर्चा छिड़ जाती है। सबकी अपनी-अपनी थ्योरी। कभी पिता तो कभी नौकर तो कभी अन्य। कयासों का अंबार। लेकिन हकीकत से कोसों दूर। वाकई में यह केस देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री बन चुका है। सबकी निगाह लगी है। खासकर मीडियाकर्मियों की। होड़ लगी है कौन सबसे ज्यादा ब्रेकिंग न्यूज दे दे। 

लगभग आए दिन चर्चा हो ही जाती है कि कौन है कातिल। कुछ महीने पहले तक आरुषि मर्डर मिस्ट्री को लेकर बहुत ज्यादा खबरें नहीं आती थीं। लेकिन 16 मई को मर्डर मिस्ट्री के दो साल पूरा होने पर सीबीआई ने पहले की तुलना में जरा तेजी दिखाई। इससे कहीं ज्यादा हम मीडिया वाले तेजी दिखा रहे हैं। कई मेरे साथी लोग सपने में भी कातिल की तलाश करते हैं। नींद नहीं आती। देर रात भी कई साथियों के फोन आ चुके हैं अरे यार कातिल कौन है। कब खुलेगा मामला। मुझे लगता है कि डॉ. तलवार ही कातिल है। कुछ तो है गुरु। जो वह छिपा रहा है। तुम्हें क्या लगता है। फलां फलां…।

खैर कातिल चाहे जो भी हो। मैं नहीं कहता कि डॉ. तलवार या उनकी फैमिली से जुड़ा कोई शख्स या नौकर या फिर अन्य कोई। सभी शक के दायरे में हैं। लेकिन सवाल यह है कि हम इंवेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग के बजाय कहीं हम पुलिस की कठपुतली तो नहीं बन रहे हैं। चौंकिए मत। ऐसा पहले भी हुआ है और एक बार फिर वैसा ही होने का अंदेशा लग रहा है। याद दिलाना चाहते हैं कि आरुषि और हेमराज मर्डर केस की जांच के शुरुआती दिनों की। 16 मई को पहले आरुषि और फिर 17 मई को हेमराज की डेडबॉडी मिलने के तुरंत बाद अधिकतर मीडिया में डॉक्टर राजेश तलवार पर शक की सूई जताई गई। या यह कहें कि तलवार पर पूरा तलवार ही लटका दिया गया। उस दौरान नोएडा पुलिस नौकर और परिजनों पर शक जताते हुए दोनों एंगल से जांच कर रही थी। लेकिन मीडिया के रुख को देख कहीं न कहीं नोएडा पुलिस ने तत्कालिक फायदा उठाया।

तलवार को बिना किसी ठोस सबूत के गिरफ्तार करने से पहले पुलिस ने बड़ी चालाकी से प्लान बनाया। उस प्लान के जाल में हम और लगभग सभी मीडिया वाले फंसे। अच्छी तरह याद है 22 मई की दोपहर उस समय के नोएडा एसएसपी ए. सतीश गणेश ने पुलिस कंट्रोल रूम में एक प्रेस कांफ्रेंस की। उस दिन कांफ्रेंस शुरू होने से पहले ही एसएसपी ने कहा कि आज हम सिर्फ अपनी बात को कहेंगे और जिसे सवाल पूछना हो वह पर्ची पर लिखकर दे देगा। हम उसका जवाब एसएमएस के जरिये देंगे। क्योंकि टाइम कम है। यह बात चौंकाने वाली थी।

एक मीडियाकर्मी साथी ने तुरंत विरोध किया और कह दिया कि एसएसपी महोदय हम लोग भोंपू नहीं है कि जो आप कह दें और हम सुन लें। खैर सवाल हम लोगों ने जमकर पूछा भी। इसी दौरान एसएसपी ने ऑनर किलिंग का भी शक जता दिया। फिर क्या था, यह ब्रेकिंग न्यूज बन गई। चैनलों पर धड़ाधड़ चलने लगी खबर। कहीं ऑनर किलिंग का मामला तो नहीं, ऐसी खबरों से सभी अखबारों का फ्रंट पेज अगले दिन रंग गया। इसके ठीक चार दिन बाद आखिरकार इसी लय में पुलिस ने बिना किसी ठोस सबूत के डॉ. राजेश तलवार को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने कातिल होने का दावा कर दिया। दो से तीन दिनों तक पापा कातिल, तो पाप का घड़ा फूट गया तो किसी ने पहले ही इसकी आशंका जताकर खबरों में तरह-तरह का मसाला और तड़का लगाकर परोसा।

लेकिन कुछ दिनों बाद मीडिया ने अचानक यू-टर्न ले लिया। होता भी क्यों नहीं। मेरठ रेंज के तत्कालीन आईजी गुरुदर्शन सिंह ने देश के दिग्गज मीडियाकर्मियों के बीच आरुषि के बजाय कई बार श्रुति शब्द का इस्तेमाल जो कर दिया था। हत्या की वजह स्पष्ट नहीं कर पाए थे। सवाल पर सवाल के बीच वह उलझते चले गए थे। लेकिन दो दिन बाद भी खबर को जिंदा रखना था और डॉ. तलवार के परिजन भी बिल्कुल विरोध में खड़े हो गए थे। इसे देख मीडिया में नौकरों के एंगल से खबर चलने का सिलसिला शुरू हुआ। बाद में सीबीआई की जांच में तीन नौकर कातिल के रूप में एक बोतल में भर दिए गए। लेकिन बोतल का ढक्कन खुला तो काफी हद तक तीनों नौकर भी बेकसूर निकले। जैसे सीबीआई ने पहले डॉ. तलवार को काफी हद तक बताया था।  

अब फिर आरुषि केस चर्चा में है। मीडिया ने काफी हद तक फिर यू-टर्न ले लिया है। पिछले एक साल से सीबीआई के जिन सूत्रों ने जुबां नहीं खोली वह गुपचुप तरीके से मुंह फाड़े चिल्ला रहे हैं। मीडियाकर्मी चैनलों व अखबारों में छप रहा है कि कातिल का राज खुलेगा। कहीं न कहीं नोएडा पुलिस की थ्योरी सच होने जा रही है। कातिल कोई हाई प्रोफाइल है। गोल्फ खेलने वाला है। इसके अलावा और भी कुछ। लेकिन कुछ पुख्ता जानकारी नहीं। ज्यादा इंवेस्टिगटिव नहीं। दो साल पहले जिस तरह नोएडा के एसएसपी ने ऑनर किलिंग का गुब्बारा फोड़ तलवार की गिरफ्तारी कर ली थी लगभग उसी पैटर्न पर अब सीबीआई सूत्र भी मीडियाकर्मियों को वैसी ही हवा कानों में फूंक रहे हैं। इस हवा को हमलोग बिना गंभीरता से लिए कभी चैनल पर तो कभी अखबार में छाप रहे हैं।

लेकिन इस बार जरा संभल कर।

वरना अब तक नोएडा पुलिस और सीबीआई पर गड़बड़ी का आरोप लगाने वाली पब्लिक आने वाले दिनों में मीडिया वालों को कहेगी कि, ये भी कम नहीं है। पुलिस वालों के लिए भोंपू बन गए हैं। जो वह सूत्र बनकर कहेंगे वही वह परोस देंगे।

बस…..

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लेखक सुनील मौर्य नवभारत टाइम्स के पत्रकार हैं.

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