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कुछ देश ऐसे हैं जहां मतदान न करने पर सजा का प्रावधान है

किसी भी राष्ट्र के मजबूत लोकतंत्र के लिए उस राष्ट्र के प्रत्येक मत की अहम भूमिका होती है. हमारे द्वारा चुना गया राजनीतिक नुमाइंदा प्रत्यक्ष रूप से लोकतंत्र का एक हिस्सा बनकर सत्ता तक समाज की विषमताओं को उजागर करके उनका हल निकालता है. नतीजन् जनता, जनप्रतिनिधि और सरकार तीनों की भागीदारी से एक व्यवस्थित, आदर्श और श्रेष्ठ समाज का निर्माण होता है, जोकि हमारे सुन्दर वर्तमान एवं सुनहरे भविष्य के विकास में मील का पत्थर साबित होता है.

<p>किसी भी राष्ट्र के मजबूत लोकतंत्र के लिए उस राष्ट्र के प्रत्येक मत की अहम भूमिका होती है. हमारे द्वारा चुना गया राजनीतिक नुमाइंदा प्रत्यक्ष रूप से लोकतंत्र का एक हिस्सा बनकर सत्ता तक समाज की विषमताओं को उजागर करके उनका हल निकालता है. नतीजन् जनता, जनप्रतिनिधि और सरकार तीनों की भागीदारी से एक व्यवस्थित, आदर्श और श्रेष्ठ समाज का निर्माण होता है, जोकि हमारे सुन्दर वर्तमान एवं सुनहरे भविष्य के विकास में मील का पत्थर साबित होता है.</p>

किसी भी राष्ट्र के मजबूत लोकतंत्र के लिए उस राष्ट्र के प्रत्येक मत की अहम भूमिका होती है. हमारे द्वारा चुना गया राजनीतिक नुमाइंदा प्रत्यक्ष रूप से लोकतंत्र का एक हिस्सा बनकर सत्ता तक समाज की विषमताओं को उजागर करके उनका हल निकालता है. नतीजन् जनता, जनप्रतिनिधि और सरकार तीनों की भागीदारी से एक व्यवस्थित, आदर्श और श्रेष्ठ समाज का निर्माण होता है, जोकि हमारे सुन्दर वर्तमान एवं सुनहरे भविष्य के विकास में मील का पत्थर साबित होता है.

राष्ट्र के प्रत्येक नागरिकों को देश के संविधान द्वारा प्रदत्त सरकार चलाने हेतु अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने के अधिकार को मताधिकार कहते है. जनतांत्रिक प्रणाली में मताधिकार को विशेष महत्वता दी गई है, हम यह भी कह सकते है कि मताधिकार ही जनतंत्र की नीव है. अच्छी जनतांत्रिकता की परख भी इसी से होती है कि किस देश को कितना अधिक मताधिकार प्राप्त है. बड़े गौरव की बात यह है कि समूचे विश्व में भारतवर्ष सबसे बड़ा जनतांत्रिक देश है, क्योंकि हमारे यहाँ मताधिकार प्राप्त नागरिकों की संख्या सबसे अधिक है.

विशेष ध्यातव्य है कि मताधिकार प्रत्येक नागरिक की एक प्रकार की अद्वितीय स्वतंत्रता है. जिससे प्रत्येक नागरिक प्रत्यक्ष रूप से समाज और राष्ट्र के निर्माण में सहभागी होता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 325 व 326 के अनुसार “प्रत्येक वयस्क नागरिक को, जो पागल या अपराधी न हो, मताधिकार प्राप्त है”. सबसे अहम बात यह है कि अनेकता में एकता की मिशाल पेश कर रहे देश में प्रत्येक नागरिक को मताधिकार प्राप्त है, चाहे वह किसी भी जाति, वर्ण, सम्प्रदाय अथवा लिंग का ही क्यूँ न हो.

वह भी अपना एक अतीत था, जब हम अंगेजी हुकूमतों के चंगुल में फंसे हुए थे. उस वक्त मताधिकार प्राप्त करना एक बड़े गौरव का विषय होता था, क्योंकि आम आदमी को मताधिकार प्राप्त नहीं होता था. कुछ चुनिन्दा लोग, जो अंग्रेजी हुकूमतों के धनकुबेर, चम्चे और जयकार करने वाले लोग होते थे, उन्ही को मताधिकार प्राप्त होता था. इसका मुख्य यह था कि इन्हीं कुछ चुनिन्दा लोगों के बदौलत ही अंग्रेज फूट ड़ालकर हम पर हुकूमत चलाते थे. एक आकड़ा यह भी कहता है कि सन् 1935 के ” गवर्नमेंट ऑफ इंड़िया ऐक्ट” के अनुसार महज 13 प्रतिशत जनता को ही मताधिकार प्राप्त था. अभी भी कुछ देश ऐसे है, जहाँ पर मताधिकार में रंग एवं जाति भेद बरता जाता है.

आमतौर पर हम लोग लोकतंत्रिक ढ़ाचें को लेकर तमाम बड़ी बड़ी बाते करते हैं. परन्तु यह अक्सर गौर नहीं करते कि इसका मूल क्या है. वास्तव में किसी भी राष्ट्र के लोकतंत्र की पूर्ण सार्थकता तभी है, जब शत प्रतिशत मतदान से जन प्रतिनिधि चुने जाए. परन्तु यह वही भारत देश है, जहाँ अभी तक कुछ हिस्सों में न्युनतम 20 प्रतिशत तो कुछ में अधिकतम 70 प्रतिशत मतदान हुए हैं. खैर एक बात यह साफ है कि शत प्रतिशत मतदान तभी हो सकता है, जब मतदान को अनिवार्य और आसान बनाया जाए. बुनियादी तौर पर अहम यह भी है कि लोग शिक्षित हों और जागरूक भी बनें.

बेल्जियम, स्विटजरलैण्ड़, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, अर्जेंटीना, आस्ट्रिया, साइप्रस, पेरू, ग्रीस, बोबीलिया, समेत दुनियाँ के तकरीबन 33 प्रजातांत्रिक देश ऐसे भी हैं, जहाँ मतदान शत प्रतिशत अनिवार्य है. इतना ही नहीं, कुछ देश तो ऐसे भी हैं जहाँ मतदान न करने पर सजा तक का प्रावधान है. सन् 1842 में मतदान को अनिवार्य कर बेल्जियम ने इस दिशा में पहला कदम उठाया था. 1924 में आस्ट्रेलिया नें इसे लागू किया. आस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, सिंगापुर, तर्की, बेल्जियम अन्य तकरीबन 19 देशों में चुनाव प्रक्रिया लगभग भारत जैसी है. हाँ, इसके इतर यह जरूर है कि कुछ देशों में 70 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों को अनिवार्य रूप से मतदान न करने की छूट मिली है.

यह बिल्कुल साफ है कि यदि हम मजबूत लोकतंत्र और राष्ट्र को उम्दा बनाना चाहते हैं तो प्रत्येक मतदाता को अपने मत का प्रयोग करना ही पड़ेगा. सन् 2005 में भाजपा के एक सांसद लोकसभा में ‘अनिवार्य मतदान’ सम्बंधी विधेयक लाए भी थे, परन्तु विपक्षी दलों ने यह कहते हुए नकार दिया था कि मतदान किसी को दबाव ड़ालकर नहीं कराया जा सकता और यह लोकतंत्र एवं उनकी स्वतंत्रता का हनन होगा.

मतदान के परिप्रेझ्य में एक अहम सवाल यह भी है कि हमारे देश में मतदाता सूची के खा़मियों के चलते लाखों लोग मतदान नहीं दे पाते हैं और लाखों लोग ऐसे भी होते है जिनका मतदाता सूची में नाम तो होता है परन्तु मतदाता पहचान पत्र नहीं होनें की वजह से वे मतदान नहीं दे पाते हैं. कई बार तो ऐसी खा़मिया भी पायी जाती हैं कि 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों का भी नाम मतदाता सूची में रहता है.

एक सीधा सा हल यह है कि हम सब अपने प्रत्येक मत की अहमियत समझें और दूसरों को भी समझाएँ. यह भी ध्यान रहे कि आपका यही एक मत राष्ट्र की दशा एवं दिशा तय करनें में महत्वपूर्ण साबित होगा. यदि आप के द्वारा चुनें हुए रहनुमा स्वच्छ छवि, इमानदार और योग्य होंगे तो देश का कोई भी नागरिक मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित नहीं रहेगा, नए नए आयाम रचे जाएगें, जो देश के गौरव को बढ़ाएगें. भ्रटाचार में कमी आएगी, जिससे राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था मजबूत रहेगी और राष्ट्र समग्र विकास की ओर अग्रसित रहेगा.

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आओ हम सब अलख जगाएँ लोकतंत्र के शान की,
जन जन को जागरूक बनाकर महत्वता बताए मतदान की,
लोकतंत्र मजबूत बनेगा शासन सत्ता सब सुधरेगा,
जन जन को आगे बढ़ने का निश्चित ही अधिकार मिलेगा,
गरीब, किसान और अन्तिम जन भी आगे बढ़ते जाएगें,
जागरूकता को हथियार बनाकर देश बदलते जाएगें,
बस अब एक विकल्प यही है जन जन अब मतदान करो,
योग्य, श्रेष्ठ और कर्मठ नेता को ही अपना प्रतिनिधि चुनो,

वन्दे मातरम् वन्दे मातरम्…..

लेखिका शालिनी तिवारी अन्तू, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश की निवासिनी हैं। पानी, प्रकृति एवं समसामयिक मसलों पर स्वतंत्र लेखन के साथ साथ वर्षो से मूल्यपरक शिक्षा हेतु विशेष अभियान का संचालन भी करती है। लेखिका द्वारा समाज के अन्तिम जन के बेहतरीकरण एवं जन जागरूकता के लिए हर सम्भव प्रयास सतत् जारी है। सम्पर्क – [email protected]

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