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उच्च शिक्षा और यूजीसी के अभारतीय तानाशाही फरमान

सभी प्रबुद्धजन एवं मीडिया बंधु ध्यान दें…  यूजीसी का भारतीय जर्नल्स के साथ एक अव्यावहारिक निर्णय… उच्च शिक्षा में सुधार की तमाम बातें करने के साथ एपीआई जैसे कई तुगलगी फरमान पारित करने के बाद यूजीसी ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था और भारतीय जर्नल्स के साथ एक और मजाक किया है… वह है रिसर्च जर्नल्स की हालिया सूची को जारी करना। 10 जनवरी को आम हुई सूची में यदि आप एक नजर डालेंगे तो पायेंगे कि लगभग 38653 जर्नल्स ( http://www.ugc.ac.in/ugc_notices.aspx?id=1604 ) में देश के तमाम प्रतिष्ठित जर्नल्स नदारद हैं… इससे भी हास्यास्पद बात यह है कि जारी की गई पाँच सूचियों में हर सूची में केवल तीन इन्डेक्सिंग एजेन्सीज क्रमशः WOS (New Yark), SCOPUS (USA) और Index Copernicus International (ICI) (Poland)  द्वारा इन्डेक्स्ड जर्नल्स को छोड़कर चौथी किसी एजेन्सी द्वारा सूचीबद्ध जर्नल्स या किसी भी स्वतंत्र जर्नल्स को स्थान ही नहीं दिया गया है।

<p>सभी प्रबुद्धजन एवं मीडिया बंधु ध्यान दें...  यूजीसी का भारतीय जर्नल्स के साथ एक अव्यावहारिक निर्णय... उच्च शिक्षा में सुधार की तमाम बातें करने के साथ एपीआई जैसे कई तुगलगी फरमान पारित करने के बाद यूजीसी ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था और भारतीय जर्नल्स के साथ एक और मजाक किया है... वह है रिसर्च जर्नल्स की हालिया सूची को जारी करना। 10 जनवरी को आम हुई सूची में यदि आप एक नजर डालेंगे तो पायेंगे कि लगभग 38653 जर्नल्स ( http://www.ugc.ac.in/ugc_notices.aspx?id=1604 ) में देश के तमाम प्रतिष्ठित जर्नल्स नदारद हैं... इससे भी हास्यास्पद बात यह है कि जारी की गई पाँच सूचियों में हर सूची में केवल तीन इन्डेक्सिंग एजेन्सीज क्रमशः WOS (New Yark), SCOPUS (USA) और Index Copernicus International (ICI) (Poland)  द्वारा इन्डेक्स्ड जर्नल्स को छोड़कर चौथी किसी एजेन्सी द्वारा सूचीबद्ध जर्नल्स या किसी भी स्वतंत्र जर्नल्स को स्थान ही नहीं दिया गया है। </p>

सभी प्रबुद्धजन एवं मीडिया बंधु ध्यान दें…  यूजीसी का भारतीय जर्नल्स के साथ एक अव्यावहारिक निर्णय… उच्च शिक्षा में सुधार की तमाम बातें करने के साथ एपीआई जैसे कई तुगलगी फरमान पारित करने के बाद यूजीसी ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था और भारतीय जर्नल्स के साथ एक और मजाक किया है… वह है रिसर्च जर्नल्स की हालिया सूची को जारी करना। 10 जनवरी को आम हुई सूची में यदि आप एक नजर डालेंगे तो पायेंगे कि लगभग 38653 जर्नल्स ( http://www.ugc.ac.in/ugc_notices.aspx?id=1604 ) में देश के तमाम प्रतिष्ठित जर्नल्स नदारद हैं… इससे भी हास्यास्पद बात यह है कि जारी की गई पाँच सूचियों में हर सूची में केवल तीन इन्डेक्सिंग एजेन्सीज क्रमशः WOS (New Yark), SCOPUS (USA) और Index Copernicus International (ICI) (Poland)  द्वारा इन्डेक्स्ड जर्नल्स को छोड़कर चौथी किसी एजेन्सी द्वारा सूचीबद्ध जर्नल्स या किसी भी स्वतंत्र जर्नल्स को स्थान ही नहीं दिया गया है।

यहाँ यह भी बताना समीचीन होगा कि उपरोक्त तीनों एजेन्सीज में से SCOPUS (USA)  सूचीबद्धता के साथ ही साथ अपने स्वयं के प्रकाशन भी निकालती है। यह बड़े दुःख का विषय है कि यूजीसी ने जर्नल्स की लिस्ट शिक्षा की गुणवत्ता को कायम रखने के लिये जारी की है परन्तु उसने यह काम उपरोक्त तीनों एजेन्सीज के सूचीबद्ध जर्नलों के बल पर किया तो प्रश्न उठता है कि क्या यूजीसी के पास अपना कोई पैनल या विवेक अथवा भारतीय जर्नल्स की गुणवत्ता परखने का तरीका नहीं है।…. यदि नहीं तो निश्चित रूप से उपरोक्त एजेन्सियों को लाभ पहुँचना स्वाभाविक ही है।

एक उससे भी महत्वपूर्ण बात यह भी निकलकर आई कि भारत जैसे देश में जहाँ की मातृभाषा हिन्दी है… जहाँ सरकार और राज्य सरकारें हिन्दी संरक्षण की बात करके हिन्दी दिवस और पखवारें मनाती हैं…. जहाँ हिन्दी,  शिक्षा पद्धति का एक महत्वपूर्ण विषय और माध्यम हैं…. उस देश की उच्च शिक्षा की नियामक संस्था यूजीसी द्वारा हिन्दी की पत्रिकाआंे को समुचित स्थान ही नहीं दिया जाना अत्यन्त शर्मनाक है। जबकि यह भी सत्य है कि यूजीसी ने जब कुछ माह पहले सभी विश्वविद्यालयों एवं सम्बद्ध महाविद्यालयों से जर्नल्स की सूची माॅगी थी तब लगभग सभी शिक्षाविदों ने उन्हीं जर्नल्स की सूची उपलब्ध कराई थी जो तत्कालीन दृष्टि से उच्चतम शिक्षा एवं शोध के लिये सर्वश्रेष्ठ थे,, अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर किस आधार पर इतने बड़े पैमाने पर संस्तुत शोधपत्रिकाओं को नजरंदाज किया गया या जर्नल्स की सूची माँगना महज एक खानापूर्ति ही था।

यह भी प्रश्न उठता है कि क्या देश के विभिन्न भागों से प्रकाशित जर्नल्स कोई महत्व नहीं रखते … और तो और …. बहुत सारे जर्नल्स तो स्वयं कई विश्वविद्यालय… महाविद्यालय और उनसे सम्बद्ध विभागों द्वारा प्रकाशित किये जा रहे हैं…. तब क्या सभी लोग शिक्षा और शोध के नियम-कायदे ताक पर रखकर केवल खानापूर्ति कर रहे थे… क्या एक भी ऐसा जर्नल नहीं है जिसे यूजीसी अपनी लिस्ट में स्थान दे सकती।

शायद ऐसा नहीं है …. परिस्थितियाँ एवं बहुत बड़ा शिक्षक वर्ग तो यही कह रहा है कि यूजीसी ने केवल कुछ लोगों को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से यह सूची जारी की है ताकि एक विशेष वर्ग की तगड़ी कमाई हो सके, और शोधार्थी अधिक शोषित हो सकें। अभी तक यूजीसी ने रेफरीड जर्नल्स में पेपर प्रकाशन के लिये 15 नम्बर और नान-रेफरीड जर्नल्स में पेपर प्रकाशन के लिये 10 नम्बर तय किये थे परन्तु जुलाई, 2016 में भारत सरकार की अधिसूचना के अनुसार अब रेफरीड जर्नल्स में पेपर प्रकाशन हेतु 25 नम्बर और नाॅन-रेफरीड जर्नल्स में प्रकाशन पर 10 नम्बर मिलेंगे। पी.एचडी. स्काॅलरर्स के लिये दो पेपर प्रकाशन अनिवार्य होंगे जिनमें एक  पेपर रेफरीड जर्नल्स में अवश्य प्रकाशित होना चाहिये।

यह भी ध्यान देने वाली बात है कि यूजीसी द्वारा जारी सूची के अधिकांश जर्नल्स के पेपर आनलाइन पढ़ना भी फ्री नहीं है… पेपर डाउनलोड करने के लिये फीस देनी ही है तो सोचिए प्रकाशन की कीमत क्या होगी और भारतीय परिवेश में जहाँ पहले ही उच्च शिक्षा भ्रष्टाचार और निम्न-गुणवत्ता की शिकार है, वहाँ पर इस कदम की प्रासंगिकता क्या होगी। विचारणीय तथ्य यह है कि शोध को बढ़ावा देने के लिये प्रायः नियम सरल बनाये जाने चाहिये किन्तु यूजीसी के इस कदम ने शिक्षा जगत में न केवल निराशा भर दी है, वरन् जर्नल्स के प्रकाशन से जुड़े तमाम ऐसे प्रकाशन संस्थानों और उनके कर्मचारियों का भविष्य भी अंधेरे में कर दिया है जो मेहनत करके अपना और परिवारीजनों का जीविकोपार्जन कर रहे थे.. तथा देश में गुणवत्तापरक शोध को बढ़ावा भी दे रहे थे। उन तमाम पीएचडी छात्रों के समक्ष समस्या खड़ी हो गयी है जो अभी तक अन्तर्राष्ट्रीय जर्नल्स में सुगमता से अपना पेपर प्रकाशित करवा कर अपनी पीएचडी जमा कर देते थे अब उन्हें रेफरीड जर्नल्स और ऐसे संस्थानों के चक्कर लगाने पड़ेंगे और आर्थिक स्तर पर शोषित भी होना पड़ेगा।

अतः उपरोक्त तीनों एजेन्सीज द्वारा सूचीब( जर्नल्स को ही यूजीसी द्वारा संस्तुत करना कहाँ तक न्यायसंगत हैं, यदि एजेन्सीज द्वारा सूचीबद्ध जर्नल को ही यूजीसी को लेना था तो ऐसी एजेन्सीज चुननी चाहिये थी जिनका अपना कोई प्रकाशन न होता  और जो भारतीय मूल्यों… विषयों और भाषाओं का भी ध्यान रखतीं। अतः मैं आप सभी प्रबुद्धजनों को आह्वान करता हूँ कृपया अपनी समस्त ऊर्जा एवं शोध के इस्तेमाल से सत्य को सामने लाये ताकि किसी भी प्रकार के अन्याय होने से बचा जा सके।

Shashi Kant Nag
[email protected]

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