Dayanand Pandey : आज हम ने भी यशराज फिल्म की अली अब्बास ज़फर निर्देशित फ़िल्म सुल्तान देख ली। फ़र्स्ट हाफ फ़िल्म बहुत ही फ़ास्ट है। लेकिन सेकेंड हाफ में फ़िल्म बुरी तरह लथड़ जाती है। हांफने लगती है। कहूं कि हिंदी फ़िल्म हो जाती है। जो भी हो तर्क और तथ्य पर गौर न करें तो सुल्तान एक ग़ज़ब की इंटरटेनर फ़िल्म है। सलमान के नाम पर यह फ़िल्म ख़ूब सारे रिकार्ड भी तोड़ रही है। कमाई सहित और भी ढेर सारे रिकार्ड। लेकिन एक तथ्य पर मैं फिर भी मिट्टी नहीं डाल पा रहा हूं कि पसलियां टूटने के बाद भी वह कैसे रिंग में फाईट करता जा रहा है। मेडिकल साइंस की बात छोड़िए, एक भयानक दुर्घटना में जबड़े, हाथ आदि के साथ मेरी भी पसलियां टूट चुकी हैं। तो मैं इस के भयानक दर्द को मैं आज भी अठारह साल बाद भूल नहीं पाता हूं। वह दर्द याद आते ही रूह कांप जाती है। रोआं रोआं कांप जाता है । पसलियों के दर्द के आगे सारे दर्द और घाव हवा थे। बिस्तर पर लेटे-लेटे ज़रा सा हिलना डुलना भी मार डालता था। पर यहां तो अपना सुल्तान पूरे धूम धड़ाके के साथ रिंग में रेसलिंग कर रहा है। विजेता तो खैर बनता ही है। फ़िल्म है खैर। वह भी सलमान खान अभिनीत। कुछ भी मुमकिन है। ऐसे और भी कई मंज़र हैं। कुछ लोग भाग मिल्खा भाग और मेरी काम से भी इस फिल्म की तुलना करते मिले हैं। तो उन की बुद्धि पर सिर्फ़ तरस ही खाया जा सकता है।
हां बेबी को बेस पसंद है जैसे द्विअर्थी गाने हैं तो जग घूम्या जैसे बढ़िया गीत भी हैं सुल्तान में। अनुष्का शर्मा जैसे खेलने, दौड़ने, गाने और रोने के लिए ही रखी गई हैं। रणदीप हुड्डा भी हैं। पर सुल्तान तो सलमान खान ही हैं। बाक़ी सब फिलर ही हैं। आर्टर ज़ुरावस्की की सिनेमाटोग्राफी भी दिलकश है। शुरू के संवादों में भी ताजगी है। और खूब है। हां, सलमान खान के हिस्से के संवाद में एक जगह भारत माता की जय भी है। जय हो!
लखनऊ के पत्रकार और साहित्यकार दयानंद पांडेय की एफबी वॉल से.