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सुख-दुख

काशी पत्रकार संघ से निष्कासन के बाद विजय विनीत ने लिखा खुला पत्र

पाती पत्रकार साथियों के नाम…

पिछले बीस सालों से मैं काशी पत्रकार संघ का स्थायी सदस्य हूं। विगत 26 जनवरी 2021 को एक पत्रकार संगठन ने ध्वजारोहण के लिए मुझे अपने कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया था। इस कार्यक्रम में मैं शरीक भी हुआ। दो दिन बाद संघ के अध्यक्ष श्री राजनाथ तिवारी जी ने विशेषाधिकार का फर्जी दावा करते और झूठा व बेबुनियाद आरोप लगाकर सोशल मीडिया पर एक पत्र जारी किया कि मैंने संघ के खिलाफ बयानबाजी की है। इस पत्र में इन्होंने बिना किसी साक्ष्य के अवैधानिक तरीके से आजीवन सदस्यता से निष्कासित करने का ऐलान भी किया है, जबकि संस्था के नियमों और उपबंधों के तहत किसी स्थायी सदस्य को संघ से बाहर करने का वैधानिक एकाधिकार अध्यक्ष के पास है ही नहीं। श्री राजनाथ तिवारी का यह पत्र संघ के विधान के विरुद्ध है। कशी पत्रकार संघ के विधान के अनुसार किसी भी एक अथवा एक से अधिक सदस्य के द्वारा लिखित शिकायत मिलने के पश्चात कार्यसमित द्वारा नियुक्त कमेटी संबंधित पक्ष को जानने के पश्चात उक्त निर्णय़ को कार्य समिति को अवगत कराती है और कार्य समिति ही किसी सदस्य के निष्कासन पर फैसला लेती है।

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साथियों आप सभी को यह अवगत कराया जाना समाचीन होगा कि श्री राजनाथ तिवारी जब आईनेक्स्ट अखबार से निकाले गए थे, तब उसी दिन मैने उन्हें फोन करके बुलाया और प्रबंधन से बात करके जनसंदेश टाइम्स में नौकरी दिलाई थी। बाद में वहां भी उन्होंने संस्थान के विरुद्ध काम करना शुरू कर दिया तो प्रबंधन ने इन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। लाख प्रयास के बावजूद प्रबंधन ने इन्हें दोबारा जनसंदेश टाइम्स ने इंट्री नहीं दी तो ये मुझसे रंजिश मानने लगे। श्री तिवारी द्वारा काशी पत्रकार संघ के अपने ही पत्रकार साथी को निजी रंजिश के तहत अवैधानिक तरीके से निष्कासन का फर्जी पत्र जारी करना मानहानि की परिधि में आता है। साथ ही इसे सोशल मीडिया में प्रसारित करना मेरे जैसे कलम के सिपाही और काशी पत्रकार संघ जैसी पवित्र संस्था की गरिमा के विरुद्ध है। जब से काशी पत्रकार संघ का गठन हुआ है तब से किसी भी पत्रकार साथी के खिलाफ किसी भी सम्मानित अध्यक्ष के द्वारा ऐसा तुगलकी फरमान आज तक जारी नहीं किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि श्री राजनाथ तिवारी विगत कई सालों से किसी मीडिया संस्थान से नहीं जुड़े हैं और मां विशालाक्षी देवी जैसे विख्यात मंदिर के महंत के रूप में कार्यरत है। पत्रकारिता से न जुड़े होने की वजह से लगता है कि इनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है और इसीलिए उन्हें पत्रकार व गैर-पत्रकार का अंतर समझ में नहीं आ रहा है। यह भी लगता है कि शायद काशी पत्रकार संघ के विधान का इन्होंने अध्ययन भी नहीं किया है।

साथियों, मैं पिछले 32 सालों से श्रमजीवी पत्रकार के रूप में दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिन्दुस्तान और जनसंदेश टाइम्स में नौकरी करता रहा हूं। देश-दुनिया के पत्र-पत्रिकाओं में मेरे हजारों लेख प्रकाशित हो चुके हैं और हो रहे हैं। चाहे बात डिजिटल मीडिया की हो या बीबीसी और अजजरीरा जैसे मीडिया प्लेटफार्म की, सभी बड़े मीडिया संस्थान मुझे अहमियत देते रहे हैं। काशी पत्रकार संघ में पद पाने के लिए मैने कभी कोई हथकंडा नहीं अपनाया। मुझसे जो बन पड़ा, पत्रकार साथियों और मीडिया से जुड़े गैर पत्रकार साथियों की हर संभव मदद की। चाहे वो बनारस शहर का रहा हो या फिर किसी अन्य जिले का। सोनभद्र के अनपरा इलाके के पत्रकार मनोज सोनी (मो.9450254620) को लें। पिछले साल इन पर एक माफिया ने जानलेवा हमला किया। खबर लिखने पर इनके हाथ-पैर तोड़ दिए गए। बनारस में इनका लंबा इलाज चला। किसी ने मदद नहीं की। मुझे सूचना मिली तो मैने अपने पत्रकार साथी विजय सिंह को पापुलर अस्पताल में भेजा। इलाज में मदद कराई। बाद में दुनिया के एक बड़े पत्रकार संगठन से मनोज सोनी को करीब एक लाख रुपये की मदद दिलाई और उस पैसे से इस आंचलिक पत्रकार ने मेडिकल स्टोर खोला। अब इस पत्रकार का आर्थिक संकट खत्म हो गया है।

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स्व.सुशील त्रिपाठी जी बनारस के ख्यातिलब्ध पत्रकार थे और पत्रकारिता करते हुए चकिया (चंदौली) के घुरहूपुर पहाड़ी से गिरकर दिवंगत हो गए। उस समय तमाम लोगों ने बड़ी-बड़ी घोषणाएं की, पर उनकी याद में किसी ने कुछ भी नहीं किया। मैने निजी तौर पर कोशिश की और अपने कुछ साथियों की मदद से घुरहूपुर के बौद्ध पर्यटन स्थल पर स्व.सुशील त्रिपाठी जी की होर्डिंग लगवाई। इससे पहले अपने एक मित्र से विनम्र आग्रह किया और पं.सुशील त्रिपाठी जी की याद को चिरस्थायी बनाने के लिए सोनभद्र आदिवासी बहुल एक रौब गांव में उनके नाम पर एक स्कूल खोलवाया। वहां एक पानी की टंकी भी लगावाई, जिसके शिलापट पर आज भी मेरा नाम अंकित है। सुशील जी के जीवनवृत्त पर मैने एक डाक्युमेंट्री (इसे यू-ट्यूब पर देख सकते हैं) भी बनाई।

साल 2019 में मीरजापुर के पत्रकार साथी पवन जायसवाल को न्याय दिलाने के लिए हमने लंबी लड़ाई लड़ी। प्रेस कांउसिल तक गया और मुकदमा भी खत्म कराया। रिपोर्टिंग करते समय झूठे मामले में जेल भेजे गए आजमगढ़ के पत्रकार संतोष जायसवाल को बाइज्जत रिहा कराया और मुकदमा भी खत्म कराया।

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साल 2019 में ही साथी सौरभ जायसवाल पर बदमाशों ने होली के एक दिन पहले जानलेवा हमला किया। वेतन का पैसा और नई स्कूटी भी लूट ली थी। मैने खुद अपनी ओर से बदमाशों के खिलाफ डकैती का मामला दर्ज कराया और पुलिस प्रशासन पर दबाव बनवाकर चौबीस घंटे के अंदर सब कुछ बरामद कराया। बदमाशों की गिरफ्तारी भी कराई और सौरभ का इलाज कराने में हर संभव सहयोग किया।

अकरी प्रकरण में जिला प्रशासन ने मुझे नोटिस दिया और धमकी भी दी। काशी पत्रकार संघ के पदाधिकारियों ने मेरे पक्ष में एक निंदा प्रस्ताव तक पास नहीं किया, जबकि प्रेस काउंसिल ने इस मामले को स्वतः संज्ञान में लेते हुए बनारस के कलेक्टर और यूपी सरकार को कटघरे में रखते हुए नोटिस जारी किया और तलब भी किया। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पुलिस महानिदेशक और यूपी के मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया।

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आप सभी को कितने किस्से-कहानियां सुनाऊं। पत्रकारों पर होने वाले हमलों के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए गठित कमेटी (गैर-पंजीकृत) सीएएजे का प्रदेश कन्वीनर होने के नाते मुझसे जो बन पड़ता है पत्रकार साथियों के लिए करता रहता हूं। जबकि यह जिम्मेदारी स्थानीय स्तर पर काशी पत्रकार संघ की है। इतिहास गवाह रहा है कि पूर्व के पदाधिकारियों ने बखूबी इस जिम्मेदारी का निर्वहन किया है।

साल 2001 में मैं बनारस आया था, तभी से संघ से जुड़ा रहा हूं। संघ का पद हथियाने के लिए मैने न कभी चुनाव लड़ा, न जोड़-तोड़ किया। जब तक संघ के अध्यक्ष श्री प्रदीप कुमार जी, श्री संजय अस्थाना जी, श्री विकास पाठक जी, श्री योगेश गुप्ता जी और श्री बीबी यादव जी थे, तब तक गाहे-बगाहे मैं संघ के दफ्तर में आया-जाया करता था। हाल के वर्षों में संघ की लाइब्रेरी तक ही मेरा नाता रहा है।

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दोस्तों, दुनिया में पत्रकारों की सबसे बड़ी संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बार्डर (फ्रांस) और सीपीजे (अमेरिका) तक मुझे रिकोग्नाइज करते हैं। पिछले साल कोविड काल में दुनिया के जिन तीस पत्रकारों को बेहतरीन रिपोर्टिंग से लिए चुना गया और कोरोना इन्फारमेशन हीरोज का खिताब दिया गया, उनमें सबसे ऊपर एक नाम मेरा ही था। मेरी आजीविका का साधन सिर्फ पत्रकारिता है। काशी पत्रकार संघ के मौजूदा अध्यक्ष श्री राजनाथ तिवारी की तरह किसी मठ अथवा मंदिर से मेरे घर-परिवार का खर्च नहीं चलता है। भविष्य में मुझे संघ का चुनाव भी नहीं लड़ना है। मैं जहां भी रहा सजग प्रहरी के रूप में अपने पत्रकार साथियों के हक के लिए कलम के असली सिपाही की तरह प्रहरी के रूप में खड़ा रहा और आगे भी खड़ा रहूंगा।

पत्रकार साथियों, इस पत्र के माध्यम से मैं खुद का महिमामंडन नहीं करना चाहता, लेकिन मेरी नैतिक जिम्मेदारी है कि आप जैसे पत्रकार साथियों की सबसे बड़ी अदालत में अपना पक्ष रखूं। भविष्य में किसी मठ-मंदिर के महंत को काशी पत्रकार संघ जैसी पवित्र संस्था का सदस्य कतई न बनाया जाए। मौजूदा अध्यक्ष राजनाथ तिवारी से यह भी पूछा जाना चाहिए कि पिछले पांच सालों से किस अखबार से जुड़े हैं? इनकी कहां और कितनी बाइलाइन खबरें छपीं? पंडित कमलापति त्रिपाठी, दिनेश दत्त झा, लक्ष्मण नारायण गर्दे जैसी तमाम महान हस्तियों ने संघ की बुनियाद रखी और गरिमा बढ़ाई आज उसी संघ के अध्यक्ष के रूप में एक मंदिर के महंत राजनाथ तिवारी जी ने मेरे जैसे श्रमजीवी पत्रकार को अवैधानिक तरीके से निष्कासन करने का फर्जी फरमान जारी कर और उसे प्रसारित कर मेरी व काशी पत्रकार संघ की गरिमा को मिट्टी में मिला दिया है।

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अगर काशी पत्रकार संघ में मेरे जैसे कलम के सिपाही नहीं होंगे तो क्या मंदिर के महंत-पुजारी ही संघ चलाएंगे?आप जैसे पत्रकार साथियों की नैतिक जिम्मेदारी है कि संघ की गरिमा को बचाने में अपनी जिम्मेदारी निभाएं और हमें अपना नैतिक समर्थन दें, अन्यथा वह दिन दूर नहीं होगा जब मठ-मदिरों के महंत काशी पत्रकार संघ पर कब्जा कर लेंगे, लिहाजा आप साथियों की जिम्मेदारी है कि राजनाथ तिवारी जैसे गैर पेशेगत विशालाक्षी देवी मंदिर के महंत-पुजारी को काशी पत्रकार संघ से तत्काल निष्कासन कराएं, ताकि इस पवित्र संस्था की गरिमा और वजूद बचा रहे।

सादर

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30 जनवरी 2021

आपका अपना पत्रकार साथी

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विजय विनीत

वरिष्ठ पत्रकार

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काशी पत्रकार संघ

वाराणसी।

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मूल खबर-

काशी पत्रकार संघ ने पत्रकार विजय विनीत को बर्खास्त किया

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1 Comment

1 Comment

  1. संतोष देव गिरि

    January 30, 2021 at 11:31 pm

    विनीत जी के साथ जो भी हुआ गलत हुआ

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