-संजय कुमार सिंह-
अगर आप चाहते हैं कि ढंग का एक समाचार चैनल हो… विनीत नारायण जनसत्ता के उन रिपोर्टर्स में से हैं जिनसे मेरी खूब बनी। शायद कभी, किसी भी खबर पर विवाद नहीं हुआ और वे कई बार अपनी खबर सीधे मुझे देते थे देख लेना। जनसत्ता में उन दिनों होता यह था कि रिपोर्टर की खबर जब छपती थी तो वह नहीं होती थी जो उसने लिखा होता था और अक्सर हमलोग कहते थे रिपोर्टर अपनी खबर पहचान नहीं पाएंगे इसलिए उनकी बाईलाइन लगा देते थे।
यह बहुत दिलचस्प होता था और खबर में से खबर निकालने का काम अब शायद समझ में भी नहीं आए। उदाहरण के लिए किसी रिपोर्टर ने किसी नेता से बातचीत की जिसमें मैं-मैं ही हो और उसमें से कोई एक लाइन जो उसकी पार्टी या उसकी घोषित नीति के खिलाफ हो को सबसे ऊपर करके उसे ही शीर्षक लगा दिया जाए। जो इंटरव्यू सेवा भाव से किया गया हो वह उलट गया। यह बदमाशी में भी होता था और अच्छे संपादन और अच्छे शीर्षक या अच्छी खबर के लिए भी।
अब रिपोर्टर जैसे चाहे वैसे खबर नहीं छपे तो उसका नाराज होना स्वाभाविक है। पर विनीत के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ। उल्टे वो तारीफ करते थे। विनीत से मेरा कोई परिचय नहीं था और वे आम हिन्दी पत्रकारों से अलग जेएनयू वाले और उस जमाने में ट्रेनी थे तब भी कार वाले इसलिए उनसे सहानुभूति होने की कोई संभवना नहीं थी। फिर भी विनीत को मेरा काम पसंद आता था और इसलिए मेरी उनसे खूब बनी और अभी तक जमती है। उनकी किताबों का संपादन से लेकर भूमिका लिखने तक सब करता रहा हूं और उस दौर में भी किया है जब तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार कहते थे कि उसकी खबर गलत है और बस गिरफ्तार होने ही वाला है।
सच यह है कि विनीत नारायण शायद भारत के अकेले पत्रकार हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के घोटालों की खबर की और भगोड़ा घोषित हुए पर गिरफ्तार नहीं हुए और उनके मामले में प्रधानमंत्री ने मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखी। कहानी लंबी है। आज उनकी यह पोस्ट पढ़ने और विचार करने लायक है।
विनीत नारायण ने अपने ब्रज फाउंडेशन के जरिए मथुरा वृन्दावन में हिन्दू और हिन्दुत्व के साथ मंदिरों, भक्ति, कृष्ण लीला स्थलियों के लिए जो काम किया है वह एक अलग कहानी है। हिन्दुत्व की रक्षक और प्रचारक सरकार के राज में उन्हें रोक दिया गया है। उनके खिलाफ अभियान अब चल रहे हैं और विनीत उसमें भी पैसा, भ्रष्टाचार, पक्षपात देखते हैं पर खबरें आपको कहीं दिखीं। तो विनीत ऐसे ही हैं। पत्रकारों में भी बहुतों को फूटी आंख नहीं सुहाते पर गलत होते तो 1990 की मारुति 800 आज ऑडी-बीएमडब्ल्यू में तो बदल ही जानी चाहिए थी। बहुतों के पास साइकिल और स्कूटर के बाद है। उनकी पत्रकारिता को भी देख रहा हूं। प्रचारकों का प्रचार भी। फिर भी …..
ये सारी भूमिका इसे पढ़ने के लिए… Vineet Narain की पोस्ट..
पढ़ें विनीत नारायण की पोस्ट-
हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के….
ये उस दौर की बात है जब देश में न तो कोई प्राइवेट टीवी चैनल था और न इंटर्नेट या सोशल मीडिया । उस दौर में टीवी समाचारों पर सरकार के दूरदर्शन का एकाधिकार तोड़ते हुए मैंने 1989 में कालचक्र विडीओ मैगज़ीन की शुरुआत कर भारत में स्वतंत्र हिंदी टीवी पत्रकारिता की स्थापना की थी।
हमारे पहले अंक के दिसम्बर 1989 में जारी होते हुए ही राजनीतिक, औद्योगिक और मीडिया जगत में भूचाल आ गया था। देश के बड़े-बड़े लोग इस माध्यम का प्रभाव और हमारी बेबाक़ी देखकर सकते में आ गये थे। तब मुझे कई बड़े उद्योगपतियों व राजनेताओं ने मेरे दफ़्तर आकार बड़ा फ़ाइनैन्स देने या दिलवाने का प्रस्ताव किया ।
अगर मैं स्वीकार कर लेता तो कालचक्र देश का पहला हिंदी TV समाचार चैनल होता। पर मैं दूसर्रों की बंदूक़ अपने कंधों पर चलाने को राज़ी न था। क्योंकि मुझे अपने देश और देशवासियों के हक़ में टीवी पत्रकारिता करनी थी। एक तरफ़ा रिपोर्टिंग , चारण या भांड़गिरी नहीं। इसलिये साधनहीनता के कारण मैंने बहुत कठिन संघर्ष किया पर अपनी निडर , निर्भीक और खोजी पत्रकारिता से कालचक्र ने देश में झंडे गाड़ दिये।
मुझे याद है मुम्बई में अनिल अम्बानी की शादी में शामिल होकर लौटे केंद्रिय मंत्री वसंत साठे ने मुझे बताया था कि वहाँ शादी में उद्योगपतियों और नेताओं के बीच तुम्हारे कालचक्र की ही चर्चा प्रमुखता से हो रही थी।
निष्पक्ष रहने के इसी तेवर के कारण ही मैं कालचक्र में 1993 में ‘ जैन हवाला कांड ‘ उजागर कर सका । जिसने देश की राजनीति को बुरी तरह हिलाकर रख दिया। जबकि इतने बड़े-बड़े मीडिया घराने 1947 से 1993 तक इतना बड़ा ऐसा एक भी घोटाला उजागर करने की हिम्मत नहीं कर पाये थे, जिसमें लगभग हर प्रमुख दल के बड़े नेता आरोपित हुए हों।
अपने लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी को भी ये सब घटनाक्रम याद होगा । क्योंकि तब वे जनता में न पहचाने जाते हों पर भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता तो थे । आज जब वे सार्वजनिक मंच पर जिन चैनल मालिकों के संघर्ष की प्रशंसा करते हैं वे लोग वही हैं जिन्होंने हर काल में सत्ताधीशों के इर्द-गिर्द रहकर बड़े आर्थिक लाभ कमाये और अपने मीडिया साम्राज्य खड़े किये। इसीलिये वे आज टीआरपी चाहे जितनी बता दें , पर पत्रकारिता में कोई इतिहास नहीं रच पाये हैं । हाँ फ़िल्मी सितारों की तरह ग्लैमर स्टार ज़रूर बन गये हैं।
मेरा हमेशा से मानना रहा है कि पत्रकारिता एक मिशन है -व्यवसाय नहीं। अगर आप सब इस भावना का सम्मान करें व छोटा-छोटा भी सहयोग करें तो हम मिलकर कालचक्र को फिर से जनता के हक़ में खड़ा कर सकते हैं। जिसकी शायद आज ज़्यादा ज़रूरत है। ऐसा हमारे शुभचिंतकों का कहना है, आपका क्या विचार है?
विनीत नारायण
[email protected]
विजय सिंह
October 18, 2020 at 7:21 pm
देश के पहले निजी टी वी वीडियो मैगज़ीन “कालचक्र ” ने पहले अंक से ही तहलका मचाया था और जैन डायरी रिपोर्ट सहित अन्य कई रिपोर्टों ने कईयों की नींद हराम कर दी थी। “कालचक्र” के शुरूआती दौर से ही मुझे भी जमशेदपुर से जुड़ने का मौका मिला ,कम समय में ही पत्रिका चर्चा में रही। एक पत्रकार के अतिरिक्त विनीत नारायण के भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति भाव का भी अनुभव मिला।
वी एन दास
October 21, 2020 at 8:50 am
कालचक्र जैसे न्यूज चैनल की आज के समय में बहुत जरूरत है। शुरू करें,बधाई