Satyendra PS-
विनोद कापड़ी की किताब आई है “1232 : द लांग जर्नी होम”। जब प्रधानमंत्री ने पहली बार अचानक लाकडाउन की घोषणा की तो वह कोरोना महामारी से बड़ी आर्थिक महामारी थी, जिसके बारे में फैसला लेते समय नीति नियंताओं ने नहीं सोचा। कापड़ी ने 7 विस्थापितों की फ़िल्म बनाई, जो गाजियाबाद से 1232 किलोमीटर की साइकिल यात्रा करके यूपी होते हुए बिहार के सहरसा तक गए। यह डाक्यूमेंट्री के रूप में डिज़्नी हॉटस्टार पर भी दिखाया गया था।
कोरोना महामारी के साथ देश में आर्थिक महामारी भी आई है, जिसका कोई टीकाकरण नहीं है। कापड़ी की इस किताब में इसकी झलक मिलती है। यह किताब एक दस्तावेज है।
हम लोग लुई फिशर की रिपोट्स के माध्यम से अब देख पाते हैं कि अंग्रेजों के प्रतिरोध में कांग्रेसियों का एक जत्था भारत माता की जय, महात्मा गांधी की जय बोलते हुए निकलता था, पुलिस वाले उस जत्थे के लोगों को पीट पीटकर हाथ पैर सर तोड़ देते थे, फिर कांन्ग्रेस के स्वयंसेवक आकर उन अधमरे लोगों को उठाकर ले जाते, उसके बाद फिर दूसरा, फिर तीसरा फिर चौथा जत्था लगातार आता और पीटा जाता। यह प्रक्रिया तब तक चलती, जब तक सभी प्रदर्शनकारी अपना हाथ पैर नही तोड़वा लेते थे। इन रिपोर्टों ने पूरे यूरोप में अंग्रेज सरकार के खिलाफ गुस्सा भर दिया था।
कापड़ी की किताब कुछ उसी तरह का दस्तावेज बन गई है। 100 साल बाद भारतीय पढ़ेंगे की एक शासन, एक दौर वह भी आया था जब करोड़ों भारतीय भूख से मर जाने के डर से महानगरों से अपने गांवों की ओर पैदल और साइकिल से भाग रहे थे। रास्ते में पुलिस उन्हें रोककर लाठियों से पीट रही थी, कहीं उनके ऊपर कीटनाशक छिड़क रही थी! वहीं कुछ ऐसे लोग थे जो उनकी साइकिल की मुफ्त मरम्मत कर रहे थे, उन्हें कुछ खाने को दे देते थे।
किताब का नाम : 1232 : द लांग जर्नी होम
लेखक/संपादक : विनोद कापड़ी
प्रकाशक: हार्पर कोलिन्स
पेज : 232
मूल्य : 399 रुपये