एसआईटी जांच में भाजपा उपाध्यक्ष के भाई का आया नाम, वीडियो पाने के लिये कोई भी कीमत चुकाने की थी तैयारी, भाजपा की अंदरूनी सियासत गरमाई
भाजपा नेता एवं पूर्व गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद प्रकरण में एसआईटी जांच आगे बढ़ने के साथ ही चौंकाने वाले खुलासे सामने आते जा रहे हैं। अब तक की जांच से यह अनुमान लग रहा है कि यह प्रकरण केवल वसूली या ब्लैकमेलिंग से जुड़ा हुआ नहीं है बल्कि इसके तार भाजपा की अंदरूनी सियासत से जुड़े हुए भी हैं। इस खेल में कुछ बड़े लोगों के शामिल होने की आशंका भी जताई जा रही है। इसमें शामिल खिलाड़ी चिन्मयानंद के बहाने कहीं और निशाना साधने की तैयारी में थे, लेकिन मामला खुल जाने से उनकी सारी योजना नाकाम हो गई। अब एसआईटी को यह पता करना है कि इस कांड का असली खिलाड़ी कौन हैं तथा रिमोट किसके हाथ में है? मामला ताकतवर भाजपा नेताओं से जुड़ जाने के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या सच सामने आयेगा?
दरअसल, अब यह सवाल इसलिये भी उठने लगे हैं कि इस प्रकरण में यूपी भाजपा संगठन में फिलहाल सबसे ज्यादा ताकतवर माने जाने वाले राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष एवं प्रदेश उपाध्यक्ष जेपीएस राठौर के भाई डीपीएस राठौर का नाम सामने आया है। डीपीएस शाहजहांपुर में जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन भी हैं और जिले में भाजपा के बड़े नेताओं में गिने जाते हैं। एसआईटी ने उनके तथा एक अन्य नेता के खिलाफ जमानती धाराओं में मुकदमा दर्ज कर चार्जशीट में नाम शामिल किया है। पर, इस पूरे खेल से पर्दा उठने को लेकर संशय मंडराने लगा है। जेपीएस राठौर को प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल का खास माना जाता है, जिनकी पार्टी और सत्ता में बराबर पकड़ है।
एसआईटी ने डीपीएस राठौर के पास से स्वामी चिन्मयानंद से जुड़े अश्लील वीडियो बरामद की है। उनके पास से एक पेन ड्राइव और लैपटॉप मिला है, जिसे एसआईटी ने कब्जे में लेकर फोरेंसिक जांच के लिये भेज दिया है। एसआईटी ने आशंका जताई है कि इसमें से कुछ वीडियो डिलीट भी किये गये हैं। एसआईटी के मुताबिक इस पेन ड्राइव में स्वामी चिन्मयानंद से जुड़े अश्लील वीडियो हैं। दूसरी तरफ लैपटॉप में मौजूद वीडियो को डिलिट किये जाने की संभावना को देखते हुए एसआईटी उसे रिकवर करने के लिये फोरेंसिक टीम को सौंप दिया है। इस मामले में डीपीएस राठौर के करीबी भाजपा नेता अजीत सिंह भी एसआईटी के निशाने पर हैं। उनके खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है। अजीत ब्लैकमेलिंग के आरोपी विक्रम सिंह का साला है।
दरअसल, शुरुआत में स्वामी चिन्मयानंद का मामला अश्लील वीडियो और ब्लैकमेलिंग से जुड़ा लगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन में जब एसआईटी जांच में परते खुलनी शुरू हुईं तो फिर एक से बढ़कर एक चौंकाने वाले खुलासे होने लगे। पुलिस ने जब युवती और उसके साथी संजय को राजस्थान से बरामद किया, उसके बाद ही पूछताछ में यह जानकारी सामने आई थी कि इस प्रकरण शाहजहांपुर के कुछ बड़े भाजपा नेताओं की भूमिका भी संदिग्ध है। इन लोगों ने ही पीडि़ता और उसके साथियों को सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई थीं। जब एसआईटी ने डीपीएस राठौर के आवास पर छापा मारकर पेन ड्राइव और लैपटॉप बरामद किया तो इन नामों का खुलासा भी हो गया। कुछ और लोगों के भी इस मामले में शामिल होने की संभावना जताई जा रही है।
एसआईटी ने डीपीएस को हिरासत में लेने के बाद कई घंटों तक कड़ी पूछताछ की। कुछ सवालों के जवाब डीपीएस नहीं दे पाये। बाद में एसआईटी ने उन्हें छोड़ दिया, लेकिन उनका नाम मुकदमे में शामिल कर लिया। फिलहाल उन पर और अजीत पर जमानती धारायें लगाई गई हैं, जिसके चलते इन दोनों को गिरफ्तार नहीं किया गया है। गौरतलब है कि पीडि़त युवती ने जब 24 अगस्त को सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड कर स्वामी चिन्मयानंद से जान का खतरा बताकर गायब हो गई थी, तब भी यह दोनों नेता उनके संपर्क में थे। डीपीएस इसी दौरान राजस्थान के दौसा भी गये थे। डीपीएस ने दौसा जाने की बात पर सफाई देते हुए कहा कि वह कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के कहने पर प्रशासन का सहयोग करने के लिये दौसा गये थे, लेकिन एसआईटी को लग रहा है कोई गलतफहमी हो गई है।
एसआईटी जांच में यह भी सामने आया था कि दोनों भाजपा नेता स्वामी चिन्मयानंद से जुड़े अश्लील वीडियो को पाने के लिये कोई भी कीमत देने को तैयार थे। उन्होंने युवती और उसके साथियों से कहा था कि वह वीडियो दे दें तथा मुंहमांगी कीमत ले लें। इसके बाद ही युवती के तीनों साथी संजय, सचिव और विक्रम को स्वामी चिन्मयानंद से मोटी रकम वसूलने का विचार आया। इस मामले में एक और भाजपा नेता तथा ददरौल के पूर्व विधायक डीपी सिंह भी एसआईटी के रडार पर हैं। इनके भी इस मामले से जुड़े होने की आशंका एसआईटी को है। जांच टीम ने पूर्व विधायक डीपी सिंह को भी सम्मन भेजकर पूछताछ के लिये बुलाया है। हिडेन चश्मे की तगातार तलाश की जा रही है। एसआईटी ने एक आरोपी की मामी की निशानदेही पर नाले से युवती से जुड़ी कुछ चीजें बरामद की थी।
एक तरफ से अश्लील वीडियो और वसूली का मामला है तो दूसरी तरफ कई भाजपा नेताओं के नाम आ जाने के बाद यह मामला अब पार्टी की आंतरिक सियासत में होने वाली उठापटक से भी जुड़ता जा रहा है। भाजपा की सियासत को नजदीक से जानने-समझने वालों को पता है कि शाहजहांपुर की राजनीति में स्वामी चिन्मयानंद और कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना का अलग-अलग खेमा है। दोनों खेमा एक दूसरे के धुरविरोधी माने जाते हैं। दोनों खेमों के बीच लगातार एक दूसरे को शह-मात देने का खेल लंबे समय से चलता आ रहा है। शाहजहांपुर में जिसे भी अपनी राजनीति चमकानी हो, उस के लिये इनमें से किसी एक दरवाजे पर मत्था टेकना अनिवार्य माना जाता है। बिना यहां से आशीर्वाद मिले, जिले की राजनीति में पनपना मुश्किल माना जाता है।
खैर, इसी बीच शाहजहांपुर से ताल्लुक रखने वाले तथा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष जेपीएस राठौर भी पिछले कुछ सालों में भाजपा की राजनीति में तेजी से ऊपर चढ़ रहे हैं। पहले इन्हें सुरेश खन्ना खेमे का करीबी माना जाता था, लेकिन उत्तर प्रदेश के संगठन महामंत्री सुनील बंसल के आगमन के बाद जेपीएस का पद-कद तेजी से उत्तर प्रदेश की राजनीति में बढ़ा। वह शाहजहांपुर में तीसरे खेमे का नेतृत्व करने लगे थे। बताया जाता है कि विद्यार्थी परिषद के दौर की पहचान जेपीएस के बहुत काम आई। बंसल का वरदहस्त प्राप्त होने के बाद जेपीएस प्रदेश में तेजी से बड़े भाजपा क्षत्रप के रूप में स्थापित हो रहे थे। पार्टी से जुड़े महत्वपूर्ण कार्यक्रमों की बागड़ोर जेपीएस राठौर के हाथ में थी।
इस वरदहस्त का ही परिणाम है कि जेपीएस खुद राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे महत्वपूर्ण विभाग के अध्यक्ष बने तो अपने भाई डीपीएस राठौर को जिला सहकारी बैंक का अध्यक्ष बनवा लिया। अपने भाई के प्रभाव के चलते डीपीएस भाजपा युवा मोर्चा से लेकर मेन बाडी में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। वर्तमान में स्वामी और खन्ना खेमे के समानांतर जेपीएस राठौर ने अपना खेमा मजबूत कर लिया था। अब यह कोई ढंका-छुपा तथ्य नहीं है कि प्रदेश की सियायत में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रदेश संगठन मंत्री सुनील बंसल खेमा एक दूसरे का विरोधी माना जाता है। सीएम जहां भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति अपनाते हैं, वहीं सुनील बंसल और उनके लोगों पर तमाम तरह के आरोप लगते रहे हैं। चाहे सरकारी वकीलों की नियुक्ति का मामला हो या फिर टिकट बंटवारे का, बंसल खेमा अक्सर विवादों में रहा है।
कुछ समय पहले तक बंसल का हस्तक्षेप सरकार और संगठन दोनों में बराबर माना जाता था। परंतु पिछले कुछ समय में ईमानदार छवि, काम और मेहनत की बदौलत योगी आदित्यनाथ का कद शीर्ष नेतृत्व की नजर में बढ़ा है। इसकी बानगी है कि शीर्ष नेतृत्व योगी आदित्यनाथ की पसंद माने जाने वाले स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी, जबकि बंसल की पसंद माने जाने वाले वर्तमान परिवहन मंत्री अशोक कटारिया पिछड़ गये। अपनी पंसद का अध्यक्ष बनवाने के साथ योगी ने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरीं और बंसल की बेहद नजदीकी बेसिक शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल तथा वित्त मंत्री राजेश अग्रवाल को भी मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा कर उनके खेमे को दोहरा झटका दिया।
सत्ता के गलियारों में चर्चा आम होने लगी कि अब योगी आदित्यनाथ को फ्री हैंड दे दिया गया है। इस बात को तब और बल मिला जब योगी ने डिप्टी सीएम केशव मौर्या के विभाग पीडब्ल्यूडी में हुई गड़बड़ी की जांच कराने का आदेश दिया। इसके बाद से ही योगी आदित्यनाथ कई दूसरे खेमों के निशाने पर थे। भ्रष्टाचार के मामले में अपने ही मंत्रियों के कामों की जांच कराने के आदेश देने के बाद योगी आदित्यनाथ बहुतों की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ योगी की लड़ाई उनके खुद के सहयोगियों के साथ ब्यूरोक्रेसी के भ्रष्ट लोगों को भी रास नहीं आ रही है। मायावती और अखिलेश राज में जमकर लूटने वाले नौकरशाह हाथ बंध जाने से परेशान हैं। गड़बड़ी सामने आने पर हो रही कार्रवाई ने अधिकारियों को और ज्यादा बेचैन कर रखा है।
अब जब स्वामी चिन्मयानंद मामले में बंसल खेमे के खास और संगठन में ताकतवर जेपीएस राठौर के भाई का नाम सामने आया है तो सवाल उठना लाजिमी है। क्योंकि पिछले दिनों शाहजहांपुर दौरे पर गये सीएम योगी स्वामी चिन्मयानंद के मुमुक्ष आश्रम भी गये थे। इससे संदेश गया कि स्वामी चिन्मयानंद का खेमा यूपी में सत्ता के शीर्ष स्तर पर मजबूत है तथा मुख्यमंत्री से नजदीकी भी है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि स्वामी को झटका देने के साथ योगी पर निशाना साधने की तैयारी थी। इसीलिये चिन्मयानंद से जुड़े अश्लील वीडियो को किसी कीमत पर खरीदने की कोशिश की गई। अब इस अनुमान में कितनी सच्चाई है यह तो एसआईटी जांच के बाद ही सामने आयेगा, लेकिन इस सवाल का जवाब अब भी नहीं मिल पाया है कि अश्लील वीडियो में डीपीएस राठौर को इतनी दिलचस्पी क्यों थी? क्यों वीडियो पाने के लिये डीपीएस राजस्थान तक जाने को मजबूर हुए? क्यों वह लगातार पीडि़ता और उसके साथियों के संपर्क में थे? क्या वह स्वयं वीडियो पाने का प्रयास कर रहे थे या फिर उन्हें इसके लिये कहीं से निर्देश मिला हुआ था? सवाल यह भी है कि स्वामी के वायरल हुए वीडियो को किसने लीक किया?
लखनऊ के तेजतर्रार पत्रकार अनिल सिंह की रिपोर्ट.
रंगरेज़
December 10, 2019 at 7:19 am
हो सकता है किसी अधिकारी ने इस clip को जान बूझ कर viral किया हो जिससे योगी का दबाव बनने से पहले ही इसप्र जांच का दायरा डाला जाए।
हो यह भी सकता है कि जिस विडियो को साक्ष्य बताया जा रहा है वह तो मालिश का है, उसी के 40 अलग अलग हिस्से किए गए हैं। स्वामी जी को भांग पिला कर यह मालिश की गई और वीडियो बनवा ली गा