पंकज चतुर्वेदी-
सम्माननीय एवं प्रिय दोस्तो,
यशस्वी कवि वीरेन डंगवाल की ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ राजकमल प्रकाशन {Rajkamal Prakashan Samuh} ने आज जारी कर दी है।
संपूर्ण कविताओं के संचयन ‘कविता वीरेन’ के अनुसार उन्होंने अपने रचनात्मक सफ़र में कुल 227 कविताएँ लिखीं। इनमें-से उनकी ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ के लिए मैंने मूलतः 110 कविताएँ चुनी थीं, जिनके सम्बन्ध में सम्माननीया भाभी जी श्रीमती रीता डंगवाल {Rita Dangwal} ने अनुमोदन किया। उनकी इच्छा और निर्देश के मुताबिक़ इनमें ‘मेरा बच्चा’ और ‘गोली बाबू और दादू’ शीर्षक दो कविताएँ और जोड़ी गई हैं। इस तरह वीरेन डंगवाल की ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ में कुल कविताओं की संख्या 112 है। कहने की ज़रूरत नहीं कि उनके समग्र काव्य-सृजन का लगभग आधा भाग यहाँ प्रस्तुत है। इससे भी ज़्यादा संतोष और गरिमा की बात यह है कि उनकी सबसे प्रसिद्ध और उत्कृष्ट रचनाएँ इस संचयन में शामिल हैं।
इसके बावजूद कविताओं के चयन में सिर्फ़ उनकी शोहरत का ध्यान नहीं रखा गया, बल्कि कोशिश की गई है कि विरल अंतर्वस्तु पर एकाग्र अत्यन्त सारवान् कविताएँ छूटने न पाएँ। प्रत्येक श्रेष्ठ रचना मशहूर हो जाए, ज़रूरी नहीं है। इस मुश्किल को वीरेन से बेहतर कौन जानता था, जिन्होंने ये ख़ूबसूरत पंक्तियाँ लिखीं :
‘कवि का सौभाग्य है पढ़ लिया जाना
जैसे खा लिया जाना
अमरूद का सौभाग्य है’
कविता के विशेषज्ञ और प्रेमी मित्र देख सकते हैं कि ‘माथुर साहब को नमस्कार’, ‘कुमार सम्भव की आत्महत्या पर’, ‘रॉकलैंड डायरी’, ‘कानपूर’, ‘परिकल्पित कथालोकान्तर काव्य-नाटिका…. क्षेपक-1 एवं क्षेपक-2’ और ‘रामपुर बाग़ की प्रेम कहानी’ जैसी अपेक्षया कम चर्चित, मगर बेहद मार्मिक, मूल्यवान् और दुर्लभ कविताएँ यहाँ सम्मिलित हैं।
अन्ततः मुझे उम्मीद है कि जिन काव्य-प्रेमियों के पास परिस्थितिवश वीरेन जी के समग्र सृजन में जाने का अवकाश नहीं होगा, फिर भी जो एक ही जिल्द में विविध रंगों में उनके सर्वोत्तम से संबोधित रहना और सार-रूप प्रिय कवि को अपने सिरहाने रखना चाहेंगे, उनके लिए यह चयन बेशक़ीमत और अपरिहार्य साबित होगा।
वीरेन डंगवाल सरीखे उत्कृष्ट और अनूठे कवि की ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ तैयार करना मेरे निकट निश्चय ही कठिन काम था; मगर इसे करने के लिए भाभी जी श्रीमती रीता डंगवाल और उनके दोनों बेटों, प्रशान्त {Prashant Dangwal} और प्रफुल्ल {Prafulla Dangwal} ने मुझे योग्य माना और मेरे फ़ैसलों को स्वीकृति प्रदान की, अतएव उनके प्रति एक सजल आभार हमेशा मेरे मन में रहेगा।
वीरेन जी की ‘प्रतिनिधि कविताओं’ की इस अमूल्य प्रस्तुति के लिए मैं राजकमल प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक अशोक महेश्वरी, संपादकीय निदेशक सत्यानन्द निरुपम {Satyanand Nirupam} एवं प्रमुख समकालीन कवि-मित्र आर. चेतनक्रांति {R Chetan Kranti} के प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ।
160 पृष्ठों की इस किताब के सुन्दर और गरिमामय पेपरबैक संस्करण की क़ीमत मात्र 99 रुपये है और यह राजकमल प्रकाशन की वेबसाइट के साथ-साथ अमेज़ॉन पर भी ऑनलाइन ऑर्डर के लिए उपलब्ध है। दोनों के लिंक कमेंट बॉक्स में दिए जाते हैं।
आत्मीय अभिवादन के साथ!