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बिहार

IPS मनीष अग्रवाल को जबरन रिटायर कर देना चाहिए!

ताकि बड़े लोगों के दबावों के आगे झुकने वाले अधिकारी को सबक मिले और कानून हाथ में लेकर फिर किसी बेकसूर को धोखे से न गिरफ्तार करा सके…बाड़मेर के एसपी के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की मांग उठी..

पटना। राजस्थान के बाड़मेर में ‘इंडिया न्यूज’ के संवाददाता दुर्ग सिंह चौहान की गिरफ्तारी बाड़मेर एसपी मनीष अग्रवाल की अदूरदर्शिता और ऊपरी दबाव में लिए गए फैसले का नतीजा था। अब बाड़मेर एसपी मनीष अग्रवाल के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की मांग उठने लगी है। दबावों में काम करने वाले ऐसे ढीले-ढाले आईपीएस को जॉब से जबरन रिटायर किए जाने की भी पत्रकारों ने मांग की है.

इस बाबत जल्द ही ज्ञापन सौंपा जाएगा. दुर्ग सिंह की गिरफ्तारी मामले की सच्चाई ज्यों-ज्यों सामने आ रही है, बाडमेर एसपी पर कार्यवाई की मांग तेज होती जा रही है. राजस्थान के ही कई भाजपा नेता सहित वहां के विपक्षी नेताओं द्वारा की रही मांग दिल्ली तक पहुंच गई है. इधर देश भर के पत्रकारों ने बाड़मेर एसपी से यह मांग की है कि उनके वाट्सऐप पर वारंट की कॉपी किसने भेजी, वह उसका नाम व नंबर सार्वजनिक करें और यह बताएं कि सिर्फ वाट्सऐप मैसेज के आधार पर किसी को गिरफ्तार किया जा सकता है?

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दुर्ग सिंह के खिलाफ रची गई साजिश का पता इसी से चलता है कि उनके खिलाफ दीघा थाने में केस न कर कोर्ट में कम्पलेंट केस दर्ज कराया गया. साजिशकर्ताओं को यह आभास था कि अगर थाने में केस दर्ज होता है तो पटना पुलिस या उसके अधिकारी इसकी छानबीन कर मामले को सत्य पाये जाने के बाद ही गिरफ्तारी का आदेश कोर्ट से लेंगे जिससे उनकी साजिश सफल नहीं होगी.

कोर्ट में कम्पलेंट केस होने के कारण इसका पता न तो पटना पुलिस को चल सका और न ही वादी बनाए गए पत्रकार दुर्ग सिंह को. कोर्ट से भी दुर्ग सिंह को इस मामले में किसी तरह की नोटिस नहीं मिली कि वो जान सकें कि पटना में उन पर कोई मामला दर्ज हुआ है. आज तक कभी बिहार नहीं आए दुर्ग सिंह को इस मामले का पता तब चला जब बीते रविवार को उन्हें बाडमेर एसपी मनीष अग्रवाल ने अपने पास बुलाकर वाट्सऐप पर पटना कोर्ट से आए वारंट को दिखाते हुए उन्हें धोखे से तत्क्षण गिरफ्तार कर बाडमेर पुलिस की हिरासत में पटना के लिए रवाना कर दिया.

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वाट्सऐप पर भेजे गए वारंट की या केस की छानबीन भी वाडमेर एसपी ने नहीं की. जाहिर है कहीं न कहीं से उनपर ऊपरी दवाब जरुर था. यह बात सामने आ रही है कि इस मामले का मुख्य साजिशकर्ता दीघा निवासी दबंग बालू ठेकेदार संजय सिंह उर्फ संजय यादव है जो राजनीति में भी हाथ आजमा चुका है. संजय सिंह की पहुंच काफी ऊपर तक है. अंदरुनी सूत्र बताते हैं कि संजय सिंह के बालू व्यवसाय में एक महिला पुलिस अधिकारी सहित कई पुलिस अधिकारियों ने अपनी काली कमाई के पैसे लगा रखे हैं.

अगर संजय सिंह के बीते तीन माह के कॉल रिकार्ड की छानबीन की जाए तो कई चौंकाने वाले सत्य सामने आ सकते हैं. दुर्ग पर केस करने वाला राकेश पासवान इसी संजय सिंह के पोकलेन का ड्राईवर है. इस मामले में संजय सिंह सहित दो लोग राकेश पासवान की तरफ से गवाह भी बने हैं. इधर परिवादी राकेश पासवान के पिता दशरथ पासवान ने मीडिया के सामने साफ खुलासा किया है कि उनका बेटा बीते दो माह से अपने गांव टेटुआ में है और उसने कभी किसी पर कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया है, न ही उनका परिवार किसी दुर्ग सिंह को जानता है.

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बहरहाल मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद इस हाई्र प्रोफाइल मामले की जांच पटना के जोनल आईजी एन एच खान ने शुरु कर दी है. आशंका जतायी जा रही है कि इस मामले में बलि का बकरा राकेश पासवान ही बनाया जा सकता है. ऊपरी पहुंच के कारण मुख्य साजिशकर्ताओं पर आंच नहीं आएगी.

दुर्ग सिंह राजपुरोहित गिरफ्तारी मामले में एक वाट्सऐप मैसेज ही सारी साजिशों के सच का खुलासा कर देगा. परिवादी कभी अदालत में नहीं गया तो फिर कोर्ट में परिवाद-पत्र कैसे दायर हो गया. जब कोर्ट से दुर्ग सिंह की गिरफ्तारी का नॉन बेलेबल वारंट जारी हुआ तो तो उस वारंट को तामिला हेतु पटना पुलिस को क्यूं नहीं भेजा गया? सीधे बाडमेर के एसपी मनीष अग्रवाल के वाट्सऐप पर वारंट की कॉपी कैसे गई और किसने भेजा. सूत्रों के अनुसार बाडमेर एसपी को वारंट की कॉपी भेजे जाने के उपरांत उन पर काफी ऊपर के स्तर से दुर्ग सिंह को तुरंत गिरफ्तार कर पटना भेजने का दवाब डाला गया.

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बीते 10 जुलाई को ही बाडमेर एसपी का पदभार ग्रहण करने वाले युवा एसपी मनीष अग्रवाल तब इतने दबाव में आ गए कि उन्होंने दुर्ग सिंह को फोन कर बुलाया और उन्हें वहीं धोखे से गिरफ्तार करा बाडमेर पुलिस द्वारा ही सड़क मार्ग से पटना भेज दिया. नियमानुसार कोर्ट से निर्गत किसी तरह का वारंट पहले एसएसपी कार्यालय के लीगल सेक्शन में भेजा जाता है जहां से उस पर तामिला हेतु उस वारंट को संबंधित थान को भेज दिया जाता है.

यह मामला दीघा थाने से संबंधित था पर वारंट सीधे बाडमेर एसपी के वाट्सऐप पर कैसे चला गया. सवाल यह भी कि आखिर वारंट की कॉपी कोर्ट से निकाली गई या एसएसपी कार्यालय से! और इसे निकाल कर बाडमेर भेजने वाला शख्स कौन है. यह भी जांच का महत्वपूर्ण विषय है.

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अगर बाड़मेर एसपी से यह जानकारी ली जाए कि उन्हें वारंट की कॉपी किसने वाट्सऐप पर भेजा तो सारी सच्चाई्र खुद ब खुद सामने आ जाएगी. इधर विश्वस्त सूत्रों के अनुसार मीडिया में बयान देने के बाद से ही इस कांड का परिवादी राकेश पासवान लापता है. आशंका जतायी जा रही है कि इस मामले की साजिश रचने वालों ने राकेश पासवान को कहीं भूमिगत कर दिया है.

पत्रकार दुर्ग सिंह के परिजनों का आरोप है कि बाडमेर की ही एक भाजपा नेत्री और यूटीआई की चेयरपर्सन प्रियंका चौधरी की साजिश का नतीजा है दुर्ग की गिरफ्तारी पर प्रियंका चौधरी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि ‘इनसे उनका कोई लेना-देना नहीं, अगर दुर्ग के परिवार वाले चाहें तो मैं उनकी मदद को तैयार हूं।’ इतना तो तय है कि इस सारे मामले की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी बाडमेर एसपी और और उनका वाट्सऐप है जो सारी साजिशों की सच्चाई को पल भर में खोल कर रख देगा.

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लेखक विनायक विजेता बिहार के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

https://www.youtube.com/watch?v=NVFUrux8L5A

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