25 मार्च को दिल्ली में मज़दूरों पर जो लाठी चार्ज हुआ वह दिल्ली में पिछले दो दशक में विरोध प्रदर्शनों पर पुलिस के हमले की शायद सबसे बर्बर घटनाओं में से एक था। ध्यान देने की बात यह है कि इस लाठी चार्ज का आदेश सीधे अरविंद केजरीवाल की ओर से आया था, जैसा कि मेरे पुलिस हिरासत में रहने के दौरान कुछ पुलिसकर्मियों ने बातचीत में जिक्र किया था। कुछ लोगों को इससे हैरानी हो सकती है क्योंकि औपचारिक रूप से दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के मातहत है। लेकिन जब मैंने पुलिस वालों से इस बाबत पूछा तो उन्हों ने बताया कि रोज-ब-रोज की कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए दिल्ली पुलिस को दिल्ली के मुख्यमंत्री के निर्देशों का पालन करना होता है, जबतक कि यह केन्द्र सरकार के किसी निर्देश/आदेश के विपरीत नहीं हो।
‘आप’ सरकार अब मुसीबत में पड़ चुकी है क्योंकि वह दिल्ली के मजदूरों से चुनाव में किए वायदे पूरा नहीं कर सकती। और दिल्ली के मजदूर ‘आप’ और अरविन्द केजरीवाल द्वारा उनसे किए गए वायदे को भूलने से इनकार कर रहे हैं। मालूम हो कि बीती 17 फरवरी को, दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ लर्निंग के छात्रों ने खासी तादाद में वहां पहुंचकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया। इसके बाद, 3 मार्च को डीएमआरसी के सैकड़ों ठेका कर्मचारी केजरीवाल सरकार को अपना ज्ञापन देने गए थे और वहां उन पर भी लाठीचार्ज किया गया।
इस महीने की शुरुआत से ही विभिन्न मजदूर संगठन, यूनियनें, महिला संगठन, छात्र एवं युवा संगठन दिल्ली में ‘वादा न तोड़ो अभियान’ चला रहे हैं, जिसका मकसद है केजरीवाल सरकार को दिल्ली के गरीब मजदूरों के साथ किए गए उसके वायदों जैसे कि नियमित प्रकृति के काम में ठेका प्रथा को खत्म करना, बारहवीं तक मुफ्त शिक्षा, दिल्ली सरकार में पचपन हजार खाली पदों को भरना, सत्रह हजार नये शिक्षकों की भर्ती करना, सभी घरेलू कामगारों और संविदा शिक्षकों को स्थायी करना, इत्यादि की याद दिलाना और इसके बाद सरकार को ऐसा करने के लिए बाध्य करना। 25 मार्च के प्रदर्शन की सूचना केजरीवाल सरकार और पुलिस प्रशासन को पहले से ही दे दी गयी थी और पुलिस ने पहले से कोई निषेधाज्ञा लागू नही की थी। लेकिन 25 मार्च को जो हुआ वह भयानक था और क्योंकि मैं उन कार्यकर्ताओं में से एक था जिन पर पुलिस ने हमला किया, धमकी दी और गिरफ्तार किया, मैं बताना चाहूंगा कि 25 मार्च को हुआ क्या था। मुख्य धारा के मीडिया ने मजदूरों, महिलाओं और छात्रों पर पुलिस लाठीचार्ज को ब्लैक आउट कर दिया?
कई मजदूर संगठन अरविन्द केजरीवाल को उन वायदों की याद दिलाने के लिए पिछले एक महीने से दिल्ली में ‘वादा न तोड़ो अभियान’ चला रहे हैं जो उनकी पार्टी ने दिल्ली के मजदूरों से किए थे। इन वायदों में शामिल हैं नियमित प्रकृति के काम में ठेका प्रथा खत्म करना; दिल्ली सरकार में पचपन हजार खाली पदों को भरना; सत्रह हजार नये शिक्षकों की भर्ती करना और संविदा शिक्षकों को स्थायी करना; सभी संविदा सफाई कर्मचारियों को स्थायी करना; बारहवीं कक्षा तक स्कूली शिक्षा मुफ्त करना; ये वे वायदे हैं जो तत्काल पूरे किए जा सकते हैं। हम जानते हैं कि सभी झुग्गीवासियों के लिए मकान बनाने में समय लगेगा; फिर भी, दिल्ली की जनता के सामने एक रोडमैप प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इसी तरह, हम जानते हैं कि बीस नये कॉलेज उपलब्ध कराने में समय लगेगा; हालांकि केजरीवाल मीडिया से कह चुके हैं कि कुछ व्यक्तियों ने दो कॉलेजों के लिए जमीन दी है और उन्हें यह जरूर बताना चाहिए कि वो जमीनें कहां हैं और राज्य सरकार इन कॉलेजों का निर्माण कब शुरू करने जा रही है। ऐसा नहीं है कि केजरीवाल ने अपने किसी वायदे को पूरा नहीं किया। उन्होंने दिल्ली के फैक्टरी मालिकों और दुकानदारों से किए वायदे तत्काल पूरे किए! और उन्होंने ठेका मजदूरों के लिए क्या किया? कुछ भी नहीं, सिवाय केवल सरकारी विभागों के ठेका मजदूरों के बारे में एक दिखावटी अन्तरिम आदेश जारी करने के, जो कहता है कि सरकारी विभागों/निगमों में काम करने वाले किसी ठेका कर्मचारी को अगली सूचना तक बर्खास्त नहीं किया जाएगा। हालांकि, कुछ दिनों बाद ही अखबारों में खबर आयी कि इस दिखावटी अन्तरिम आदेश के मात्र कुछ दिनों बाद ही दर्जनों होमगार्डों को बर्खास्त कर दिया गया! इसका साधारण सा मतलब है कि अन्तरिम आदेश सरकारी विभागों में ठेका मजदूरों और दिल्ली की जनता को बेवकूफ बनाने का दिखावा मात्र था। इन कारकों ने दिल्ली के मजदूरों के बीच संदेह पैदा किया और इसके परिणामस्वरूप विभिन्न ट्रेड यूनियनों, महिला संगठनों, छात्र संगठनों ने केजरीवाल को दिल्ली की आम मजदूर आबादी से किए गए अपने वायदों की याद दिलाने के लिए अभियान चलाने के बारे में सोचना शुरू किया।
इसलिए, 3 मार्च को डीएमआरसी के ठेका मजदूरों के प्रदर्शन के साथ वादा न तोडो अभियान की शुरुआत की गयी। उसी दिन, केजरीवाल सरकार को 25 मार्च के प्रदर्शन के बारे में औपचारिक रूप से सूचना दे दी गयी थी और बाद में पुलिस प्रशासन को इस बारे में आधिकारिक तौर पर सूचना दी गयी। पुलिस ने प्रदर्शन से पहले संगठनकर्ताओं को किसी भी प्रकार की निषेधाज्ञा नोटिस जारी नहीं की। लेकिन, जैसे ही प्रदर्शनकारी किसान घाट पहुंचे, उन्हें मनमाने तरीके से वहां से चले जाने को कहा गया! पुलिस ने उन्हें सरकार को अपना ज्ञापन और मांगपत्रक सौंपने से रोक दिया, जोकि उनका मूलभूत संवैधानिक अधिकार है, जैसेकि, उन्हें सुने जाने का अधिकार, शान्तिपूर्ण एकत्र होने और अभिव्यक्ति का अधिकार।
लाठीचार्ज, गिरफ्तारी के अगले दिन 4 स्त्री साथियों को जमानत मिल गयी और 13 पुरुष कार्यकर्ताओं को दो दिन के लिए सशर्त जमानत दी गयी। आई पी स्टेट पुलिस थाने को जमानतदारों और गिरफ्तार लोगों के पते सत्यापित करने के लिए कहा गया। पुलिस गिरफ्तार कार्यकर्ताओं को 14 दिन की पुलिस हिरासत में लेने की मांग कर रही थी। प्रशासन की मंशा साफ है : एक बार फिर कार्यकर्ताओं की पिटाई और यंत्रणा। पुलिस लगातार हमें फिर से गिरफ्तार करने और हम पर झूठे आरोप मढ़ने की कोशिश में है। जैसा कि अब पुलिस प्रशासन की रिवायत बन गयी है, जो कोई भी व्यवस्था के अन्याय का विरोध करता है उसे ‘माओवादी”, ”नक्सलवादी”, ”आतंकवादी” आदि बता दिया जाता है। इस मामले में भी पुलिस की मंशा साफ है।
जाहिर है कि केजरीवाल घबराया हुआ है और उसे कुछ सूझ नहीं रहा। और इसीलिए उसकी सरकार इस तरह के कदम उठा रही है जो उसे और उसकी पार्टी को पूरी तरह नंगा कर रहे हैं। वह जानता है कि दिल्ली की ग़रीब मेहनतकश आबादी से किये गये वादे वह पूरा नहीं कर सकता है, खासकर स्थायी प्रकृति के कामों में ठेका प्रथा खत्मा करना, क्योंकि अगर उसने ऐसा करने की कोशिश भी कि, तो वह दिल्लीं के व्यापारियों, कारखाना मालिकों, ठेकेदारों और छोटे बिचौलियों के बीच अपना सामाजिक और आर्थिक आधार खो बैठेगा। ‘आप’ के एजेंडा की यही खासियत है : यह भानुमती के पिटारे जैसा एजेंडा है (साफ तौर पर वर्ग संश्रयवादी एजेंडा) जो छोटे व्यापारियों, धनी दुकानदारों, बिचौलियों और प्रोफेशनल्स/स्वरोजगार वाले निम्न बुर्जुआ वर्ग के अन्य हिस्सों के साथ ही झुग्गीवासियों, मज़दूरों आदि की मांगों को भी शामिल करता है।