कोलकाता नगर निगम के चुनाव 18 अप्रैल 2015 को, बम धमाकों की गूंज, दहशत के माहौल से अपनी दास्तान लिख गये। कहने को इवीएम मशीनों में कोलकाता के 144 वार्डों के मतदाताओं का निर्णय बंद हो गया पर सच्चाई तो यह है कि लोकतंत्र के इस उत्सव के साथ जबरदस्ती, छिनताई, लूटपाट अर्थात लोकतेज का खुलेआम चीर हरण हुआ तथा लोकतेज के इस उत्सव में व्यवस्था के वर्दीधारी रक्षक पुलिस अधिकांश घटनाओं में मूक बनी हुई थी बिल्कुल ऐसा लग रहा था कि जैसे पुलिस अपनी वर्दी के फर्ज को लिये नहीं बल्कि सरकार के आदेश पर काम कर रही थी।
कोलकाता के 144 वार्डों के चुनाव में अगर 5 से 10 प्रतिशत वार्डों को छोड़कर शेष प्रायः सभी वार्डों में लोकतेज के मूल्यों का मजाक उड़ता दिखा जहां जनता के मत से सियासत की राह तय होनी चाहिए वहां दलबल, भुजबल, धनबल ने अपनी सारी हदें पार कर दी।
मतदाताओं में आक्रोश इस बात की गवाही दे रहा है कि अब आने वाले दिनों में वोट धमकाने या बम फोड़ने की घटनाओं से घर में नहीं रहेंगे बुलेट का जवाब लोग बैलेट से देंगे पर यह चुनाव मतदान की इस राह पर दहशत के बादल, गोली की गूंज और बम धमाकों के जो निशान छोड़ गया है उसमें जनता का असली निर्णय मतपेटियों की उन मशीनों से नहीं निकलेगा.. तब लोकतंत्र के घर पर गुण्डई का कारनामा अगर अपनी विजय का जश्न मनाता दिखे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
निगम किस पार्टी का बनेगा? यह सवाल महत्वपूर्ण फिर भी नहीं है पर जनता जिस उम्मीदवार के पक्ष में अपना मत देना चाहती थी क्या वो उम्मीदवार उसका प्रतिनिधि 28 तारीख को जब निर्णय आयेगा तब वो क्या जीत पायेगा? सवाल यह है कि लोकतंत्र में जब जनता अपनी इच्छा से मत देने के लिए स्वतंत्र नहीं है, तब आजादी की परिभाषा पर पुर्नविचार करना चाहिए। विचार इस बात पर भी होनी चाहिए कि हम 15 अगस्त, 26 जनवरी क्यों मनाते हैं। अगर आजादी के लगभग 7 दशकों की इस यात्रा में जनता के मताधिकार का यह मान भी सुरक्षित नहीं, तब आजादी के ढोल नगाड़े क्या उस जनता के सीने में नहीं चुभते जिसके मताधिकार को उसके सामने सियासत के गुण्डे लूट कर ले जाते हैं और वर्दीधारी रक्षक चुपचाप तकते रहते हैं।
स्वाधीन भारत की इस गुलामी पर सियासत क्या कभी विचार करेगी या जनता को मजबूर होकर मत देने की जगह हथियार उठाने होंगे, अंगारों की तरह सुलगते इस सच पर पानी के फव्वारे अब काम नहीं करेंगे। लोग समझ रहे हैं कि उनकी गरीबी, बेकारी भूखमरी की असली जड़ मतों की लूट है। जब वो अपने संवैधानिक अधिकार का ही प्रयोग नहीं कर पाते, तब सियासत की तमाम विसंगतियां उनको छलती है।
आइये, एक नजर बंगाल के राजनैतिक माहौल पर भी डालते हैं। यहां ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल की पूर्ण बहुमत की सरकार और उनका ही नगर निगम बोर्ड है। जैसा कि सब जानते हैं कि शारदा घोटाला, रोजबेरी घोटाला ममता बनर्जी की सरकार का बड़ा सरदर्द बना है। सीबीआई की जांच व प्रधानमंत्री मोदी से छत्तीस का आंकड़ा भी सियासत के तवे को गर्म करता रहा है। मुकुल राय से ममता की बेरुखी से ममता का संगठन अप्रभावी नहीं कहा जा सकता पर इतनी तमाम प्रतिकूलताओं के बाद भी अगर बंगाल भाजपा अपना प्रभाव उस रूप में नहीं दिखा पा रही तो यह भाजपा के कमजोर नेतृत्व व स्वार्थपूर्ण राजनीति तथा गुटबंदी के प्रमाणित करता सा दिखता है। भाजपा के कार्यकर्ता अगर नाराज दिखते हैं तो प्रदर्शन अच्छा कैसे हो सकता है?
भाजपा के राज्य नेतृत्व के अंदर जीत की भूख नहीं दिखी। अगर कमाण्डर जोशीला , आक्रामक व रोबीला न हो तो सेना भी फिर ढीली पड़ जाती है। नगर निगम चुनाव में राज्य नेतृत्व की अदूरदर्शिता साफ दिखी। जितने हंगामे हुए कार्यकर्ताओं के मनोबल पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा। उसका परिणाम नगर निगम के चुनाव परिणामों में साफ दिखेगा। जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे तब बंगाल में ऐसी चर्चा थी कि अबकी बार निगम भाजपा का भी हो सकता है पर इस हवा की गति को भाजपा नेतृत्व नहीं थाम सका और न ही वो यह लक्ष्य बना सका कि उसको जीतना है। भाजपा के प्रत्याशियों के चयन में गुटबाजी का प्रभाव दिखा जो राज्य नेतृत्व के साथ सटे रहते थे, उनकी चाल चली पर इस वजह से जीत की योग्यता वाले उम्मीदवार कही पीछे भी छूटे। अगर हालात यह रहे तो भाजपा बंगाल का वर्तमान संगठन 2016 के विधानसभा में भी कुछ खास नहीं कर पायेगा और ममता जिस तरह से निगम में आयेगी, वहाँ कुछ कम से पर आ तो जायेगी ही।
भाजपा अगर यह कहे कि धाँधली की वजह से उनकी सीटें नहीं आईं तो जितना यह सत्य है उतना यह भी सत्य माना जायेगा कि सांगठनिक क्षमता व आक्रामक नेतृत्व की वजह से भी उसकी सीटें न आना। भाजपा को बंगाल के बारे में गंभीरता से सोचना होगा और तृणमूल के नेताओं से भाजपा के नेताओ को यह सीखना होगा कि वो अपने कार्यकर्ताओं को मार खाने के लिए अपने हाल में नहीं छोड़ते बल्कि उनकी सार सम्हाल करते हैं। जबकि भाजपा में कार्यकर्ताओं को इस बात पर आक्रोश भी दिखा है कि वो बूथों पर मार खा रहे होते हैं उधर उनके नेता पुलिस प्रशासन को शांतिपूर्ण चुनाव के लिए बधाई व आभार ज्ञापित कर रहे होते हैं।
कोलकाता नगर निगम वार्ड 22 के परिणाम पर सबकी नजर है। वहाँ भाजपा प्रत्याशी श्रीमती मीना देवी पुरोहित की तृणमूल प्रत्याशी दिनेश बजाज से सीधी टक्कर थी। इस वार्ड में भी दखलन्दाजी के समाचार थे। मीना पुरोहित को अपने दम पर संघर्ष करते देखा गया पर इस सुरक्षित वार्ड को सुरक्षित करने के लिए भाजपा के बड़े नेताओं व आसपास के वार्ड से कोई ऐसा सहयोगात्मक माहौल नहीं दिखा। अगर यह सीट भाजपा खोती है तो उसमें कसूर मीना पुरोहित का नहीं बल्कि भाजपा संगठन का माना जायेगा।
इस चुनाव में वार्ड 25 गोलीकाण्ड से चर्चित रहा और वो गोली भी पुलिस के एसआई को लगी जो अब तक अस्पताल में जीवन से संघर्ष कर रहे हैं। यद्यपि अभियुक्त पकड़े आ चुके हैं पर उनकी चेन कहां तक जा रही है इस सुराग को अभी तक खुलेआम नहीं किया जा रहा है बाबजूद इसके कयासों के कोयले राजनीति के तवे को गर्म कर रहे हैं।
वार्ड नं. 24, 9, 27, 17, 20, 18 में भी अराजकता के माहौल की खबरें आई थीं। इस चुनाव में निर्वाचन आयोग के अधिकारी की उदासीनता, अर्कमण्यता व अयोग्यता पर भी सवाल खड़े किये गये क्योंकि मीडिया के सामने वो एक साधारण सवाल वोट प्रतिशत का सटीक जबाव देने में असमर्थ दिखे। निर्वाचन आयोग के सामने धांधली के कई अभियोग दायर किये गये तथा एक शिकायत वोट देने के बाद प्रतीक चिन्ह वाली स्याही के निशान पर भी थी जिसको पानी से धोने पर वो साफ हो गयी थी। कुल मिलाकर कोलकाता नगर निगम चुनाव गुण्डई की राजनीति, अकर्मण्य प्रशासन और मतदाताओं व कुछ कार्यकर्ताओं के आक्रोश का गवाह बना।
संभावना है कि निगम फिर तृणमूल के कब्जे में जा रहा है। भाजपा दो अंकों में आ सकती है और इसका सारा श्रेय भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं को ही मिलेगा। नेताओं को नहीं क्योंकि असली लड़ाई तो भाजपा कार्यकर्ताओं ने ही लड़ी है। कांग्रेस अपना अस्तित्व वार्ड नं. 45 से संतोष पाठक के रूप में सुरक्षित रखती दिख रही है पर कई वार्डों में कड़ी टक्कर का माहौल बनाने में कामयाबी दिखी है। जहां तक माकपा का सवाल है, पस्त हौसलों में फिर जान दिखी है पर कोई चमत्कार नहीं दिखा पायेगी।
नगर निगम के परिणाम आने वाले विधानसभा चुनावों पर कैसा और कितना असर डालेगें, ये वक्त बतलायेगा पर ममता दीदी ने अब तक अपने दुर्ग को सुरक्षित रखा है। हालात और संभावनाओं से बस इतना तो कहा ही जा सकता है।
रवि कान्त पाण्डेय संपर्क : [email protected]