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सियासत

मीडिया मालिकों ने बंधुआ मजदूर बना रखा है पत्रकारों को

देश में आज सबसे ज्यादा अगर शोषित है तो वह पत्रकार है। चाहे पत्रकार अखबार से जुड़ा हो या टेलिविजन से । पता नहीं कितने लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपने खून पसीने से अखबारी संस्थानों को सींच कर बड़ा किया लेकिन मुसीबत में वे उसे कोई मदद नहीं देते। अखबार -न्यूज़ चैनल के मालिकन जब चाहें, किसी को काम पर रख लेते हैं , जब चाहें उन्हें काम से निकाल देते हैं । इनके यहाँ इन न्यूज़ चैनल या अखबारों को टीआरपी दिलाने वाले, संवाददाता, रिपोर्टर या स्ट्रिंगर की कोई औकात नहीं। पत्रकार इनके लिए मात्र बंधुआ मजदूर से अधिक की हैसियत नहीं रखते। 

<p>देश में आज सबसे ज्यादा अगर शोषित है तो वह पत्रकार है। चाहे पत्रकार अखबार से जुड़ा हो या टेलिविजन से । पता नहीं कितने लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपने खून पसीने से अखबारी संस्थानों को सींच कर बड़ा किया लेकिन मुसीबत में वे उसे कोई मदद नहीं देते। अखबार -न्यूज़ चैनल के मालिकन जब चाहें, किसी को काम पर रख लेते हैं , जब चाहें उन्हें काम से निकाल देते हैं । इनके यहाँ इन न्यूज़ चैनल या अखबारों को टीआरपी दिलाने वाले, संवाददाता, रिपोर्टर या स्ट्रिंगर की कोई औकात नहीं। पत्रकार इनके लिए मात्र बंधुआ मजदूर से अधिक की हैसियत नहीं रखते। </p>

देश में आज सबसे ज्यादा अगर शोषित है तो वह पत्रकार है। चाहे पत्रकार अखबार से जुड़ा हो या टेलिविजन से । पता नहीं कितने लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपने खून पसीने से अखबारी संस्थानों को सींच कर बड़ा किया लेकिन मुसीबत में वे उसे कोई मदद नहीं देते। अखबार -न्यूज़ चैनल के मालिकन जब चाहें, किसी को काम पर रख लेते हैं , जब चाहें उन्हें काम से निकाल देते हैं । इनके यहाँ इन न्यूज़ चैनल या अखबारों को टीआरपी दिलाने वाले, संवाददाता, रिपोर्टर या स्ट्रिंगर की कोई औकात नहीं। पत्रकार इनके लिए मात्र बंधुआ मजदूर से अधिक की हैसियत नहीं रखते। 

अखबार या न्यूज़ चैनलों के मालिकान पत्रकारों को काम पर रखने के पहले जो एग्रीमेंट (अनुबंध) कराते हैं, उसमे वे क्लाज़ डालते हैं, जिससे कि वे अपने आपको अथवा संस्थान को स्वप्रायोजित नियमों की आड़ में सुरक्षित रख सकें। हमारी सुरक्षा या परिवार की सुरक्षा के साथ साथ हमारे सुरक्षित भविष्य की वे कोई गारंटी नहीं लेते हैं। क्यों, यह लोग अखबार के लिए प्रसार, विज्ञापन से लेकर खबर तक जिम्मेदारी उठाने वाले मीडिया कर्मियों को लेकर उदासीन रवैया अपनाये हुए हैं। वह बछावत बोर्ड रहा हो या फिर मजीठिया, सरकारों के पास भी इनके लिए कोई ठोस पॉलिसी नहीं ?

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यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि “समाज में यदि कोई मुसीबत में होता है या किसी का शोषण किया जाता है तो मिडिया द्वारा उक्त पीड़ित की आवाज को बुलंद कर उसे यथा संभव न्याय दिलाया जाता है और इस काम में महत्वपूर्ण भूमिका होती है वहां के स्थानीय पत्रकारों की लेकिन खुद पत्रकारों की उलझन की तरफ किसी का कोई ध्यान नहीं। वह खुद आये दिन पता नहीं कितनी तरह की मुसीबतों का सामना कर रहे हैं। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जिन्हें देख-सुनकर मन विचलित हो जाता है।

सवाल उठता है आखिर न्यूज़ चैनल या अखबारों को टीआरपी दिलाने वाले संवाददाता, रिपोर्टर या स्ट्रिंगरों के हितों की जिम्मेदारी है तो किसकी ? क्या इन सब बातों को लेकर हमे आज विचार करने की जरूरत नहीं है।

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 फेसबुक वॉल से 

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0 Comments

  1. baikunth shukla

    June 23, 2015 at 1:01 am

    bhai mai bhi 1 pidit patrakar hun….

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