Gopal Agrawal-
उन दिनों मैं युवजन सभा में राजनीतिक प्रशिक्षु की तरह था। नरोरा (बुलन्दशहर) में कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक के समाचार प्रमुखता से छप रहे थे। फोटो चयन करीब सभी समाचार पत्रों ने बैठक के दृश्य या प्रधानमंत्री के बजाय नौका में अकेले बैठे युवातुर्क चन्द्रशेखर का प्रकाशित किया था। 45 वर्ष बाद आज भी वह फोटो मेरे मष्तिस्क में फिक्स है। बैठक में चापलूसी भरे भाषणों से पृथक युवातुर्क की गर्जन व नौकाविहार करते हुए उनका चित्र उस समय की कांग्रेस के महाकुंभ जैसी भीड़ में पृथक व्यक्तिव की ओर इंगित कर रहा था। 25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा से उस विद्रोही हृदय का सब्र टूट गया। लोकतन्त्र व समाजवाद की हिलोरों ने ज्वालामुखी बन वह बांध फोड़ दिया। चन्द्रशेखर जी गिरफ्तार कर लिए गये।
वर्ष 1955 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस के आबाड़ी अधिवेशन में “समाजवादी ढॉचे के समाज” का प्रस्ताव पास कराया था। समाजवादी नेता अशोक मेहता ने इस प्रस्ताव का स्वागत करते हुए कहा कि इससे कांग्रेस पार्टी सोशलिस्ट पार्टी के नजदीक आई है। बाद में अशोक मेहता सहित बहुत से समाजवादियों ने कांग्रेस की सत्ता में समाजवादी समाज की स्थापना में गति समझी। युवा चन्द्रशेखर भी कांग्रेस में चले गये। परन्तु उन्हें वहॉ समाजवादी शब्द का उच्चारण होता तो मिला किन्तु वातावरण में समाजवाद नहीं था। उनका विद्रोही युवा दिल सच्चाई कहने से नहीं चूकता था। जल्दी ही चन्द्रशेखर युवातुर्क की उपाधि से राष्ट्रीय राजनीति में छा गये।
इतिहास साक्षी है कि समाजवादी लहरों को कोई भी बांध रोक नहीं पाया। 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नरायन के नेतृत्व में चल रहे आन्दोलन के प्रति चन्द्रशेखर का समर्थन इंदिरा गांधी को अखरने लगा। हद तो तब हो गयी, जब आपात काल की घोषणा का चन्द्रशेखर ने मुखर विरोध किया। वे कैद कर लिए गये। 19 माह जेल में रहे। फरवरी 1977 में चुनावों की घोषणा पर उन्हें रिहा किया गया। उन्हें देश की उस समय बनी सबसे बड़ी पार्टी “जनता पार्टी”का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया।
सत्ताधारी व भारत के सबसे बड़े राजनीतिक दल की अध्यक्षता चन्द्रशेखर के लिए उपलब्धि नहीं थी। उनका मन तो भारत में समाजवादी व्यवस्था का समाज बनाने और गरीबों को उनका हक दिलाने के लिए बेचैन था। उन्होंने निर्णय ले लिया, समाचार पत्र विस्मय से लिख रहे थे, लोग कौतुहल में थे, सत्ताधारी दल का मुखिया भारत का पैदल भ्रमण करेगा। चन्द्रशेखर “देश की पद यात्रा” पर निकल पड़े। उनकी उत्सुकता गांव, किसान, मजदूर व गरीबों की समस्या समझने में थी। जहॉ जाते, मसीहा की तरह पुकारे जाते। इससे पहले गुलाम या आजाद भारत में गरीब के दरवाजे सत्ता कभी नहीं आई। “आंखें रंगड़ते नर-नारी व बच्चों ने बास की चौखट के अन्दर खुदरे फर्श की टूटी चारपाई पर हिन्दुस्तान की सत्ता को बैठे देखा।”
उन्हीं दिनों तिहाड़ जेल में आपातकाल के दौरान जिस बैरक में चन्द्रशेखर को कैद रखा गया था, उस बैरक में भी वे गये। उन्होंने कहा था कि पुलिस द्वारा नागरिकों के साथ थर्ड डिग्री का व्यवहार बंद कर देना चाहिए। आचार्य नरेन्द्र देव की इच्छा व भविष्यकल्पना के अनुरूप एक दिन वह भारत का भाग्य विधाता बने। प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल संक्षिप्त रहा परन्तु प्रभावशाली रहा। देश ने पारंपरिक आडम्बर तोड़ता ऐसा प्रधानमंत्री देखा, जो क्षण क्षण साधारण मानव का एहसास कराता हुआ देश को बुलन्दियों पर पहुंचाने के लिए उत्सुक था।
17 अप्रैल को उनकी 88वीं जयन्ती पर उनके विचारों को पढ़ने व अनुसरण करने का संकल्प ही हमारी महत्वकांक्षा की पूर्ति है। समाजवादी सिद्धान्तों को गढ़ने व उन पर चल कर दिखाने वाले खॉटी समाजवादी नेता ने 8 जुलाई 2007 को इस संसार से विदा ले ली परन्तु अपने विचारों का प्रकाश पुंज हमारे लिए छोड़ दिया।
यूं तो चन्द्रशेखर के जीवन व दर्शन को जब-जब भी पढ़ा जाएगा नित्य नई प्ररेणा व मन में रोमांच उपजेगा। उनकी जयंती से एक सप्ताह पूर्व इसी आशय से उपरोक्त लाइनों को लिखा गया है कि 17 अप्रैल को समाजवादी विशेषतौर से युवा व राजनीतिक में रूचि रखने वालों के लिए उनकी जयन्ती के अवसर पर उनकी याद व उनसे जुड़ी बातों को पढ़ने, समझने व बहस के लिए अवसर मिल सके। 17 अप्रैल को जगह जगह गोष्ठियों हों तथा चन्द्रशेखर के व्यक्तिव व समाजवादी सिद्धान्तों के विषय में हम अपना ज्ञानवर्द्धन कर राजनीति में अपनी मंजिल को विचारों के मार्ग से ढूंढे।
गोपाल अग्रवाल संपर्क : [email protected]