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सियासत

‘हम लोग’ ऐसे बनाएंगे अजमेर को स्मार्ट ?

बहुत दिनों बाद इतवार को गौरव पथ जाना हुआ। जाना था पंचशील इसलिए इस रास्ते से निकलना ही था। यह वही गौरव पथ है जिसे नगर सुधार न्यास ने दस साल पहले बड़े गाजे बाजे से और जिसे देखकर अजमेरवासी गौरव किया करेंगे जैसे जुमलों के साथ तैयार करने का दावा किया था। गौरव पथ जिसे हर कोई अपनी सुविधा के नाम से पुकारता है परंतु गौरव पथ नहीं कहता। नवज्योति वाले इसे अपने पूर्वज दुर्गाप्रसाद चैधरी मार्ग के नाम से लिखते और पुकारते हैं और इस मार्ग पर रहने वाली जनता इसे आनासागर लिंक रोड कहती है। नवज्योति के अलावा बाकी अखबारों में इसे आनासागर सक्र्युलर रोड कहा जाता है। एक सड़क के चार नाम तो अपन बता चुके हैं। अब हालत भी सुन लीजिए। 

<p>बहुत दिनों बाद इतवार को गौरव पथ जाना हुआ। जाना था पंचशील इसलिए इस रास्ते से निकलना ही था। यह वही गौरव पथ है जिसे नगर सुधार न्यास ने दस साल पहले बड़े गाजे बाजे से और जिसे देखकर अजमेरवासी गौरव किया करेंगे जैसे जुमलों के साथ तैयार करने का दावा किया था। गौरव पथ जिसे हर कोई अपनी सुविधा के नाम से पुकारता है परंतु गौरव पथ नहीं कहता। नवज्योति वाले इसे अपने पूर्वज दुर्गाप्रसाद चैधरी मार्ग के नाम से लिखते और पुकारते हैं और इस मार्ग पर रहने वाली जनता इसे आनासागर लिंक रोड कहती है। नवज्योति के अलावा बाकी अखबारों में इसे आनासागर सक्र्युलर रोड कहा जाता है। एक सड़क के चार नाम तो अपन बता चुके हैं। अब हालत भी सुन लीजिए। </p>

बहुत दिनों बाद इतवार को गौरव पथ जाना हुआ। जाना था पंचशील इसलिए इस रास्ते से निकलना ही था। यह वही गौरव पथ है जिसे नगर सुधार न्यास ने दस साल पहले बड़े गाजे बाजे से और जिसे देखकर अजमेरवासी गौरव किया करेंगे जैसे जुमलों के साथ तैयार करने का दावा किया था। गौरव पथ जिसे हर कोई अपनी सुविधा के नाम से पुकारता है परंतु गौरव पथ नहीं कहता। नवज्योति वाले इसे अपने पूर्वज दुर्गाप्रसाद चैधरी मार्ग के नाम से लिखते और पुकारते हैं और इस मार्ग पर रहने वाली जनता इसे आनासागर लिंक रोड कहती है। नवज्योति के अलावा बाकी अखबारों में इसे आनासागर सक्र्युलर रोड कहा जाता है। एक सड़क के चार नाम तो अपन बता चुके हैं। अब हालत भी सुन लीजिए। 

रोड के बीचोंबीच बना शिवमंदिर आज तक ना तो शिफट हुआ और ना ही हटाया गया है। इससे कुछ कदम दूरी पर ही देवनारायण मंदिर है जो सडक के किनारे है जिसके कारण सड़क वहीं से सिकुडना शुरू हुई तो मानसिंह होटल के आगे तक उसी हालत में चलती चली गई। धार्मिक भावनाओं में बहे गुर्जर समाज ने उस समय विरोध किया जरूर था परंतु असली फायदा उठाया जी मॉल ने। गौरव पथ बन रहा था और जी मॉल भी। लम्बे चौडे बहुमंजिला जी मॉल ने पार्किंग के नाम पर आगे जगह छोड़ी जिसमें अब पार्किंग नहीं बल्कि कला के नाम पर बिना अनुमति की करतब बाजियां होती है, जो कई दफा चाकूबाजी और लातघूंसा बाजी बन चुकी है और रास्ता जाम कर चुकी है। ऐसे जाम तभी खुलते हैं जब सरकारी गाड़ी में सैर सपाटे को निकला सरकारी अफसर का कोई परिवार फंस जाता है। कथित पार्किंग स्पेस के बाहर जी मॉल आने वालों की कारें खड़ी हो जाती है। कोई माई का लाल उठाने वाला, टोकने वाला या रोकने वाला नहीं है। डिवाइडर के दूसरी तरफ सड़क तक बने पुराने मकानों से सड़क की हालत ऐसी हो जाती है आप दस की स्पीड से ही वहां से निकल पाते हैं। 

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जी हां यही वह मार्ग है जिस पर से और वही जी मॉल है जिसके सामने से रोजाना दिन में कम से चार दफा अजमेर नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया, नगर निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सीआर मीणा, नगर निगम के आयुक्त नारायण लाल मीणा, अजमेर विकास प्राधिकरण के जिम्मेदार अफसर और नेता निकलते हैं। थोड़ा सा आगे इसी मार्ग पर जी मॉल से आधा किलोमीटर आगे राजस्थान पत्रिका और उससे करीब डेढ किलोमीटर आगे दैनिक भास्कर का दफतर है। वहां के पत्रकारों को रोजाना इसी मार्ग से आना जाना है। जी मॉल के पहले इसी मार्ग पर आधा किलोमीटर पहले दैनिक नवज्योति के मालिक और प्रधान सम्पादक दीनबंधु चैधरी रहते हैं। किसी को भी तो यह ना बन रहा था तब दिखा और ना अब दिखाई दे रहा है। अखबारों ने खबरें जरूर छापी पर अफसरों ने क्या किया। जी मॉल बनाकर ही छोड़ा। 

यही क्यों ? इसी मार्ग की शुरूआत पर संभाग का सबसे बड़ा अस्पताल जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय है। अस्पताल एक प्रतिबंधित क्षेत्र होता है जहां के बाहर की सड़क से निकलते हुए आप गाडी का वाहन भी नहीं बजा सकते ताकि मरीज डिस्टर्ब ना हो। अस्पताल के ठीक सामने सड़क पर माताजी का मंदिर बन चुका है। नवरात्रा में अस्पताल की सड़क रोक दी जाती है। बड़े बड़े डेक और माइक पर रात भर भजन संध्या होती है। पुलिस का हर इंस्पेक्जर जरनल, पुलिस सुपरिन्टेन्डेट, यहां तक कि हाईकोर्ट के जज तक माताजी को ढोक देने वहां रूकते हैं। मंदिर बना था ऑटो वालों को अवैध तौर पर खड़े करने का संरक्षण देने के लिए, बन रहा था तब भी किसी को नहीं दिखा, अब भी किसी को नहीं दिख रहा है। अस्पताल के आगे रोज सुबह शाम घंटे घडि़याल बजते हैं। सड़क पर भक्तों की गाडि़यों का अतिक्रमण होता है परंतु यह सब रोकने वाले पुलिस, जज और प्रशासन के अफसर माता की मूर्ति के सामने हाथ जोड़े, आंखें बंद किए खडे़ रहते हैं तो बाहर सिपाही ‘अव्यवस्था’ फैलाने वालों को ठिकाने लगाने में जुटी रहती है। अस्पताल के चारों ओर शादी समारोह स्थल है जहां आए दिन बैंड बाजों, पटाखों, गीत संगीत की धूम मची रहती है, मरीजों की चिंता किसी को नहीं रहती। 

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अभी अपन मदारगेट, दरगाह बाजार, नया बाजार, नला बाजार, स्टेशन रोड, कचहरी रोड नहीं पहुंचे हैं। शहर में किसी जगह फुटपाथ है तो सिर्फ अंग्रेजों के बनाए मार्टिंन्डल ब्रिज पर। कभी वह फुटपाथ खाली रहता था आज उन पर सब्जी, पोस्टर, फल बेचने वालों का स्थायाी कब्जा है। नसीराबाद और श्रीनगर को जाने वाली रोडवेज बसों के स्टेंड है। बस स्टेंड है तो टेम्पो स्टेंड क्यों नहीं होगा ? टेम्पो अच्छा याद दिलाया। एक भी सिटी बस टेम्पो ड्राईवर वर्दी में नहीं मिलेगा। उनका कंडक्टर वर्दी तो छोडि़ए वह अपनी महिला सवारियों से ही द्विअर्थी अंदाज में बात करेगा। बीच सड़क और ऐन मोड पर टेम्पो सिटी बस का रूकना धर्म है, बगैर रूट के चलना तो आम बात है। दुपहिया वाहन चालक हेलमेट लगाए नहीं मिलेंगे। अभी दो दिन पहले की ही बात है। हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर आदेश कर दिया कि अजमेर में बने अवैध कॉम्लैक्सों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। मन मारकर निगम ने दो जगह  कार्रवाई की कोशिश ही की थी कि व्यापारी ‘अवैध निर्माण’ के खिलाफ कार्रवाई के विरोध में हड़ताल पर उतर आए। उनका कहना था, बन गया सो बन गया थोड़े पैसे लो और इन्हें नियमित करो। 

यह कुछ बानगियां हैं उस शहर की जिसे अमेरिका के बराक ओबामा ने स्मार्ट सिटी बनाने का वादा किया है। प्रशासन स्मार्ट सिटी के नाम पर रोजाना पचास साठ समोसे तोडने में लगा है। इस माहौल में अजमेर के कुछ कथित जागरूक, बुद्धिजीवी, प्रबुद्ध लोग इकट्ठा हुए हैं। नई दिल्ली के अरविंद केजरीवाल उनके प्रेरणा पुरूष हैं और चार महीने बाद अगस्त की शुरूआत में अजमेर नगर निगम के चुनाव हैं। उन्हें लग रहा है कि जब केजरीवाल दिल्ली पर कब्जा कर सकते हैं तो हम निगम पर क्यों नहीं। बीजेपी और कांग्रेस वाले इनमें शामिल नहीं है। उनका दावा है कि अच्छे, ईमानदार, साफ छवि के लोग निगम चुनाव में खड़े किए जाएं या उन्हें समर्थन दिया जाए ताकि शहर सुधरे। 

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हम लोग से जुड़े ज्यादातर ऐसे हैं जो अब तक सिर्फ ज्ञापन देने, मुलाकात करने तक सीमित रहे हैं। ज्यादातर ने अपने घरों के बाहर आठ से दस फीट लम्बा रैम्प और अपने मकान के बाहर छोटा सा गार्डन बनाकर सरकारी सड़क को संकरा करने का योगदान बखूबी दिया हुआ है। कुछ ऐसे भी हैं जो आज नेता हैं परंतु कुछ समय पहले जब सरकारी नौकरी में थे तो पचास रूपए मिले बगैर फाइल आगे नहीं खिसकाते थे। बगैर पैसा मिले वह काम ही नहीं करते थे जो करने का सारी जिंदगी वेतन उठाते रहे। जी मॉल और माताजी मंदिर के सामने से खुद भी गुजरते हैं परंतु वह इन्हें समस्या नहीं लगती। टेम्पो, सिटी बसो, तारागढ़ या सरवाड़ जाने वाली अवैध टैक्सियों या इनसे जुड़ी और समस्याओं की जानकारी खुद भी रखते हैं परंतु इनके लिए कहते नहीं है। पिछले दिनों हुए अवैध निर्माणों को नियमित करने के व्यापारियों के आंदोलन पर हम लोग ने आज तक जुबान नहीं खोली। ऐसे कैसे कोई आपको वोट और सपोर्ट देगा ?  

आपको पता है अजमेर में कभी भी इतवार या तीज त्यौहार के अवकाश वाले दिन सफाई नहीं होती। नियम और ठेका दिन में दोनों समय सफाई का है परंतु रोस्टर पर अवकाश की जगह सामूहिक साप्ताहिक अवकाश का नया नियम सिर्फ अजमेर में ही है। परंतु यह हम लोग वालों को नहीं दिखता। अच्छा है अजमेर नगर निगम के अफसरों को रेलवे, रोडवेज, अस्पताल, पानी या बिजली की नौकरी का मौका नहीं मिला वरना वहां भी वह रोस्टर की जगह एक दिन का सामूहिक अवकाश का नियम लागू कर देते तब रविवार और अवकाश के दिन अजमेर में ना रेल, बस चलते, ना पानी बिजली आते और उस दिन इलाज भी नहीं होता। हम लोग के बैनर तले चुनाव लड़ने लड़ाने वालों के लिए यह समस्या नहीं है या उनके ध्यान में नहीं आ रही है या फिर वे जानबूझकर उपेक्षित कर रहे हैं। धन्य है स्मार्ट अजमेर के स्मार्ट भावी नेता।  

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मीडिया विश्लेषक राजेंद्र हाड़ा संपर्क : 9549155160/9829270160  

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