नई दिल्ली : सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कमेंट करने के मामले में लगाई जाने वाली आईटी एक्ट की धारा 66-ए का भविष्य (आज) मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट तय करेगा। सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े इस विवादास्पद कानून के दुरुपयोग की शिकायतों के बाद इस कानून के खिलाफ याचिका दायर की गई थी।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2013 में महाराष्ट्र में शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे पर कानून की छात्रा श्रेया सिंघल ने सोशल मीडिया में कथित तौर पर आपत्तिजनक पोस्ट किया था। इस मामले में दो छात्राओं को गिरफ्तार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके बाद कुछ गैर सरकारी संगठनों ने भी इस एक्ट को गैरकानूनी बताते हुए खत्म करने की मांग की थी। इस मसले पर लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट ने 27 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। कुछ दिन पहले यूपी में मंत्री आजम खान पर पोस्ट करने वाले छात्र को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर ऑफेंसिव पोस्ट करने पर सरकारी अधिकारियों द्वारा व्यक्तियों के खिलाफ इस कानून का दुरुपयोग करने की ढेरों याचिकाओं दायर की गई थीं, जिस पर जस्टिस जे चेलामेश्वर और रोहिंटन एफ नरीमन की पीठ अपना फैसला देगी। एनजीओ, मानवाधिकार संगठनों और कानून के छात्रों ने याचिकाकर्ताओं ने सवाल उठाया कि आईटी एक्ट की धारा 66 ए नागरिकों की वाक एवं अभिव्यक्ित की स्वतंत्रता के मूलभूत अधिकार का उल्लंघन करती है। केंद्र सरकार ने इस प्रावधान को लागू रखने का तर्क देते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि इंटरनेट का प्रभाव अधिक विस्तृत होता है। इस लिए टीवी या प्रिंट माध्यम की तुलना में इस पर अधिक अंकुश लगाने की जरूरत है।
हालांकि, सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भी इस एक्ट पर कई बार सवाल उठाए थे, जबकि केंद्र सरकार ने एक्ट को बनाए रखने की वकालत की थी। केंद्र ने कोर्ट में कहा था कि इस एक्ट का इस्तेमाल गंभीर मामलों में ही किया जाएगा। केंद्र सरकार ने कहा था कि सोशल मीडिया पर राजनीतिक मुद्दे पर बहस या किसी तरह के विरोध में कमेंट पर इस प्रावधान के तहत कारवाई नहीं की जा सकती। 2014 में केंद्र ने सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी कर कहा था कि ऐसे मामलों में बड़े पुलिस अफसरों की इजाजत के बिना कारवाई न की जाए।