-शैलेंद्र सिंह-
हमारे देश में ईमानदार अधिकारियों का क्या हश्र होता है, यदि इस पर गौर करें तो लगता है कि भारतीय लोकतंत्र में ईमानदारी सबसे बड़ा अपराध है। यह स्थिति शर्मनाक तो है ही भयानक भी है बल्कि यह आतंकित करने वाली स्थिति है। यह न केवल भ्रष्टाचार बल्कि क्रूरता की पराकाष्ठा है। जिस देश में कानून के संरक्षक ही ऐसे हों उस देश का विकास कैसे सुनिश्चित हो सकता है।
हाल ही में कर्नाटक के कोलार जिले में रेत माफिया के खिलाफ अभियान चलाने वाले एक आईएएस अधिकारी डी के रवि को बेंगलुरू में अपने आधिकारिक फ्लैट में मृत पाया गया। डी के रवि एक ईमानदारी अफसर माने जाते थे। पुलिस इसे खुदकुशी का मामला मान रही है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने भी प्रथम दृष्ट्या इसे आत्महत्या ही माना है। वाणिज्यिक कर (प्रवर्तन) सहायक आयुक्त से पहले रवि कोलार के उप आयुक्त थे। इस दौरान उन्होंने बालू खनन माफिया के खिलाफ कई कड़े कदम उठाए थे, जिनकी बहुत प्रशंसा हुई थी। अपने ईमानदार प्रशासन को लेकर वह जनता के बीच भी खासे लोकप्रिय थे। हालांकि गत वर्ष अक्टूबर में उनका तबादला वाणिज्यिक कर (प्रवर्तन) सहायक आयुक्त के पद पर कर दिया गया था। इसके विरोध में तब विभिन्न संगठनों और नागरिक समूहों ने कोलार शहर भर में बंद का आह्वान किया था।
इस घटना के विरोध में कर्नाटक में जबर्दस्त रोष है और प्रतिरोध जारी है। खनन माफिया की ताकत का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ समय पहले दुर्गा शक्ति नागपाल को उत्तर प्रदेश सरकार ने सस्पेंड करके उनकी ईमानदारी की सजा दी थी। रेत माफिया के खिलाफ उनके अभियान से क्षेत्र में अवैध खनन पर लगाम लग गई थी। नागपाल को ग्रेटर नोएडा में अवैध रूप से सरकारी जमीन पर बनाई जा रही मस्जिद को तोड़ने का आरोप लगाकर सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया था। उनका निलंबन तब वापस हुआ जब उन्होंने माफ़ी मांगकर अखिलेश यादव के सामने घुटने टेक दिए। सितंबर 2013 में फिरोज़ाबाद में एक तहसीलदार को खनन माफिया के लोगों ने जेसीबी मशीन से कुचलने की कोशिश की।
मध्यप्रदेश के आईपीएस कैडर रहे नरेंद्र कुमार को खनन माफियों के खिलाफ कार्रवाई करने की सजा मौत के रूप में मिली। ऐन होली के दिन एक होनहार आईपीएस अफसर की मुरैना जिले के बामौर में उस वक्त हत्या कर दी गई जब वह खनिज से लदे एक ट्रेक्टर पर कार्रवाई की कोशिश कर रहे थे। नरेंद्र के पिता केशव देव का मानना था कि उनके बेटे की हत्या में राजनेताओं का हाथ है और पुलिस का रुख भी असहयोगात्मक है। उनका कहना था कि उन्हें एक्सीडेंट की गलत सूचना दी गई जबकि उनकी हत्या हुई थी। केशव देव ने कहा था कि जिस इलाके में उनका पुत्र पदस्थ था वहां के थाने वालों का रूख सहयोगात्मक नहीं था। नरेंद्र कुमार अवैध परिवहन में लगी गाडियों को पकडऱ थाने पहुंचाते थे और थाने वाले उसे छोड़ देते थे। नरेद्र की मां कुछ दिनों पहले उससे मिलने बामौर गई थीं तब उन्हें पता लगा था कि नरेंद्र की कार्यवाहियों से वहां प्रभावी खनन माफिया के लोगों में गहरी नाराजी थी।
केशव देव ने भाजपा के एक विधायक पर अंगुली उठाई और कहा कि मुख्यमंत्री को सब पता है। ध्यातव्य है कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की विभिन्न रिपोर्टों से निकले आंकड़ों के मुताबिक हिंदी पट्टी के पांच राज्यों झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पिछले पांच साल के दौरान सीधे तौर पर 3,200 करोड़ रु. के खनन राजस्व की हानि पाई गई है। खनन की दुनिया में एक चालू फॉर्मूला है कि अगर कहीं एक रुपए की खनन राजस्व हानि दिखती है, तो वहां कम से कम पांच रुपए का अवैध खनन होता है। इस हिसाब से पांच राज्यों में अवैध खनन का आकार कम से कम 15,000 करोड़ रुपए का है।
राजस्थान विधानसभा के मानसून सत्र में पेश रिपोर्ट में अवैध खनन के कई मामलों का सीएजी ने खुलासा किया था। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के राजसमंद, अजमेर, उदयपुर और बाड़मेर जिलों में जून 2004 से जून 2008 के बीच अवैध खनन के कारण 38 करोड़ रुपये के राजस्व का नुक्सान होने के प्रमाण पाए गए. रिपोर्ट में भरतपुर, नागौर, बांसवाड़ा, सिरोही, उदयपुर, अजमेर, बालेसर, बूंदी, जैसलमेर, मकराना, निंबाहेड़ा और सीकर जिलों में अवैध खनन और राजस्व वसूली में सही नियमों का पालन ना होने के कारण करीब 100 करोड़ रु. के राजस्व के नुकसान की बात कही गई थी। खनन माफिया के अतिरिक्त अन्य जगहों पर भी इस तरह के हादसे होते रहे हैं। चतुर्भुज सड़क परियोजना के प्रोजेक्ट मैनेजर सत्येंद्र दुबे को बिहार में एक प्रोजेक्ट में हो रही गड़बड़ी के बारे में पीएमओ को अवगत कराने की सजा इन्हें मौत के रूप में दी गई। साल 2003 में नेशनल हाइवे अथोरिटी में प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहते हुए इन्होंने ये पत्र पीएमओ को लिखा था। पैट्रोल में मिलावट पर रोक लगाने वाले इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के मार्केटिंग मैनेजर शनमुघन मंजुनाथ की हत्या एक पैट्रोल पम्प के मालिक के बेटे द्वारा उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में कर दी गई थी। कर्नाटक में कॉऑपरेटिव विभाग में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर रहे महंतेश ने राज्य में चल रहे गैरकानूनी ढंग से कॉ-ऑपरेटिव सोसाइटी को भूमि आवंटन का खुलासा किया था। इसके बाद इनको कार से खींच पर इन पर लोहे की रॉड से हमला किया गया था।
हमले के पांच दिन बाद इनकी मौत हो गई थी। महाराष्ट्र में नासिक जिले के अपर जिलाधिकारी यशवंत सोनावरे को कुछ पेट्रोल माफियाओं ने नासिक के पास 26 जनवरी 2011 को आग के हवाले कर दिया था। उनका गुनाह सिर्फ इतना था कि उन्होंने एक ढाबे के पास रखे तेल टैंकर और ड्रम को लेकर खोजबीन की थी। गत माह ही जलीय जीवों का जीपीएस रीडिंग करने के लिए वन विभाग का अमला मुरैना जिले के कैंथरी-बरबासिन के चंबल घाट पर गई। अमला जब मौके पर पहुंचा तो घाट पर रेत माफिया द्वारा रेत का अवैध उत्खनन चल रहा था।
रेत ढोने के लिए घाट पर करीब एक दर्जन ट्रैक्टर थे और 15 से 20 माफिया के लोग भी मौजूद थे। जैसे ही वन अमले ने जलीय जीवों की जीपीएस रीडिंग लेने के लिए काम शुरू किया तो माफिया के 10-12 लोग माउजर व 12 बोर बंदूक के साथ वन विभाग के अमले की ओर बढ़े और फायरिंग करने लगे। ऐसे में टीम किसी तरह अपनी जान बचाकर वापस लौट आए। मध्य प्रदेश के रायसेन जिले की सिलवानी तहसील के जंगलों से कुछ लोग तीन गाडिय़ों में लकड़ी भरकर ले जा रहे थे। इस बात की सूचना वन अमले को लगी, तो रेंजर आरकेएस चौधरी कुछ गार्ड्स को लेकर वहां जा पहुंचे। वन अमले को देखकर गाडिय़ों में मौजूद दर्जनभर लोगों ने अमले पर हमला कर दिया। इसी दौरान एक बदमाश ने रेंजर पर बंदूक से गोली दाग दी। रेंजर को गंभीर हालत में भोपाल के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया।
बिहार कैडर से आईपीएस अधिकारी मनोजे नाथ जिन्हें इनके साथी सबसे अच्छे डीजीपी के रूप में जानते थे का तबादला 39 साल के करियर में 40 बार किया गया। तीन बार तो नाथ से जूनियर अधिकारियों को प्रमोशन दे दिया गया। हद तो तब हो गई जब बिहार में नीतीश कुमार के राज में एक साल के अंदर चार बार तबादला किया गया। गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी राहुल शर्मा को अपने इलाके में सांप्रदायिक घटना को होने से रोकने की सजा उन्हें अपनी प्रोफाइल से नीची प्रोफाइल पद पर तबादला करके दी गई।
गुजरात दंगों के बाद भावनगर में इनकी पोस्टिंग बतौर जिला एसपी हुई थी। इन्होंने हिंदुओं के एक समूह पर फाायरिंग कर दी थी, क्योंकि यह भीड़ शहर में मौजूद मदरसे पर हमला करने जा रही थी। इसके बाद उन्हें अहमदाबाद पुलिस कंट्रोल रूम में डीसीपी बना दिया गया। बीस साल के करियर में इनका 12 बार तबादला हुआ। यूपी कैडर के आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर जो कि समाज में हो रहे गैर कानूनी कामों पर नजर रखते थे का 18 साल के कार्यकाल में 22 बार तबादला हुआ। एक साक्षात्कार में इन्होंने कहा था कि मैं समाज के लिए कुछ अच्छा करना चाहता हूं लेकिन छोटे से समय के बाद ही तबादला मेरी इन कोशिशों पर रोक लगा देता है। हरियाणा कैडर के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका को उनकी ईमानदारी की सजा उनके कार्यकाल से दोगुनी बार तबादले के रूप में मिली।
22 साल के कार्यकाल में इनका 44 बार तबादला किया गया। खेमका ने हरियाणा सरकार के जमीन आबंटन के भ्रष्टाचार के एक मामले को उजागर किया था जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा का नाम सामने आया था। लेकिन अब बीजेपी सरकार ने उन्हें केंद्र में रखकर पुरस्कृत किया है। तुर्की की कंपनी फर्नास फर्नास कंस्ट्रक्शन ने 2200 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट हासिल करने के लिए जो पेपर दिए थे इनमें से कुछ फर्जी थे। सीबीआई इसकी जांच कर रही है और नोएडा की इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड (ईआईएल) में कार्यरत सीनियर इंजीनियर शशांक यादव इस केस की जांच में मदद कर रहे थे। शशांक कंपनी में सीबीआई के प्वाइंट परसन थे। सारे दस्तावेज़ और सबूत शशांक ही सीबीआई को दिखा रहे थे। जांच की प्रक्रिया अंतिम दौर में थी. चूंकि कागज़ात शशांक ने दिए थे इसलिए उनका और उनके साथी का बयान दर्ज होना था।
दूसरी ओर बिहार के एक आईएएस अधिकारी आनंद वर्धन सिन्हा 2005 से अब तक एडवाइजर इन प्लानिंग बोर्ड के पद पर ही काबिज हैं। सिन्हा एक ही पद पर इतने लंबे समय तक बने रहने वाले पहले नौकरशाह हैं। उन्होंने यह पद तब संभाला था, जब बिहार में साल 2005 में राष्ट्रपति शासन लागू था। जाहिर है यह संभवतः लाभ वाला पद नहीं है और सिन्हा को इसके आलावा और कहीं भेजने लायक नहीं समझ जाता। तो यह हाल है हमारे देश में ईमानदार अफसरों और व्हिसल ब्लोअर्स का। यहां भू माफिया, खनन माफिया, कोल माफिया, तेल माफिया, टोल माफिया, जंगल माफिया, शराब माफिया और न जाने कितने कितने तरह के माफिया सक्रिय हैं जिनपर प्रशासन का कोई वश नहीं है। राजनीतिज्ञों से इनकी सांठ गांठ सर्वविदित है। ये माफिया लगातार फल फूल रहा है और इसी कारण अपने मंतव्यों के आड़े आने वाले अफसरों, समाज कर्मियों, मानवाधिकार कर्मियों, पत्रकारों व व्हिसल ब्लोअर्स को ठिकाने लगाने में उन्हें किसी किस्म की परेशानी नहीं होती। आखिर कानून के संरक्षक हमें क्या सन्देश दे रहे हैं।
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