एक महत्वाकांक्षी महिला फर्जी पहचान पत्र बनाती है! मसूरी की आईएएस अकादमी में प्रवेश पाती है! आराम से छह महीने रहकर चली जाती है…और दूध के धुले अकादमी प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं लगती! वाह! स्टोरी में क्या मासूमियत है! लेकिन एक मासूम भी इस टुच्ची स्टोरी पर भरोसा नहीं करेगा बशर्ते वह मानसिक रूप से दिवालिया न हो या ऐसा करने के लिए ‘सॉल्ड आउट’ न हुआ हो, ठीक?
मीडिया ने पहले दिन से ही इस कहानी को खूब सजाया। ज्यों का त्यों। एकदम स्क्रिप्ट के मुताबिक़! मीडिया के बाद अब पुलिस और ज्यूडिशरी इस स्टोरी को ‘हकीकत’ बनाने के मिशन पर हैं। इसीलिए कहानी के एक अहम, लेकिन सत्तानुक्रम में बेहद कमजोर किरदार रूबी को कल यानी शनिवार को जेल भेज दिया गया! अब सवाल! कौन है वो स्क्रिप्ट राइटर जिसने ये स्टोरी फैब्रिकेट की? स्टोरी मीडिया में प्लांट की या कराई? कौन है वो जो मामला सामने आने पर अपनी गर्दन बचाना चाहता है? कथित फर्जी आईएएस रूबी को लाइब्रेरियन बनाने के लिए अकादमी में किसने रखा? रूबी के आरोप के मुताबिक़ लाइब्रेरियन बनाने की एवज में उससे 20 लाख (जिसमें से 5 लाख एडवांस भुगतान हो चुका) का सौदा करने वाला संस्थान का डिप्टी डायरेक्टर अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ? रूबी को चुप रहने के लिए डराने धमकाने या पांच करोड़ का ऑफर देने वाले कौन लोग हैं? आखिर दो दिन बाद ही ऐसा क्या हुआ कि शनिवार को देहरादून की एक अदालत में सिर झुकाकर रूबी ने गिरते पड़ते मूर्छित होते होते अपनी तमाम गलतियों को कबूल कर लिया? याद रहे दो दिन पहले ही रूबी को मुंह बंद रखने की ऑफर भरी धमकी मिलने की बात मीडिया में सामने आई थी। सवाल बहुत सारे हैं, लेकिन जवाब सिर्फ एक ही किरदार से मांगे जा रहे हैं! सच सामने आना चाहिए फिर जो भी दोषी हो सजा मिले। लेकिन अभी तक ऐसा होता नहीं दिख रहा।अब सुनने में आ रहा है कि मसूरी की लाल बादुर शास्त्री अकेडमी की छवि और उसके प्रशासकों को बचाने के लिए आईएस लॉबी सक्रिय हो गई है! लेकिन क्या कोई न्याय को बचाने के लिए सामने आएगा? मीडिया या वैकल्पिक मीडिया का समय शुरू होता है अब…!
मुकेश यादव के फेसबुक वॉल से