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सियासत

बनारस की लवंडई और ग़ाज़ीपुर की अक्‍खड़ई का मिलन!

Abhishek Srivastava : बनारस की लवंडई और ग़ाज़ीपुर की अक्‍खड़ई आपस में मिल जाए तो वही होता है जो आज आम आदमी पार्टी के साथ हुआ है। ग़ाज़ीपुर के निवासी और बीएचयू छात्रसंघ के कभी महामंत्री रह चुके छात्र नेता उमेश कुमार सिंह ने मौके पर जो लंगड़ी मारी है, वह कल होने वाली नेशनल काउंसिल की बैठक से पहले रात भर में ही खेल को बिगाड़ने की कुव्‍वत रखता है। उमेशजी की सोहबत में अरविंद केजरीवाल बनारस से चुनाव तो लड़ आए, लेकिन एक बात नहीं समझ पाए कि मुंह में पान घुला हो तो बनारसी आदमी अमृत को भी लात मार सकता है। अगर ग़ाज़ीपुर का हुआ तो खिसिया कर सामने वाले के मुंह पर थूक भी सकता है।

<p>Abhishek Srivastava : बनारस की लवंडई और ग़ाज़ीपुर की अक्‍खड़ई आपस में मिल जाए तो वही होता है जो आज आम आदमी पार्टी के साथ हुआ है। ग़ाज़ीपुर के निवासी और बीएचयू छात्रसंघ के कभी महामंत्री रह चुके छात्र नेता उमेश कुमार सिंह ने मौके पर जो लंगड़ी मारी है, वह कल होने वाली नेशनल काउंसिल की बैठक से पहले रात भर में ही खेल को बिगाड़ने की कुव्‍वत रखता है। उमेशजी की सोहबत में अरविंद केजरीवाल बनारस से चुनाव तो लड़ आए, लेकिन एक बात नहीं समझ पाए कि मुंह में पान घुला हो तो बनारसी आदमी अमृत को भी लात मार सकता है। अगर ग़ाज़ीपुर का हुआ तो खिसिया कर सामने वाले के मुंह पर थूक भी सकता है।</p>

Abhishek Srivastava : बनारस की लवंडई और ग़ाज़ीपुर की अक्‍खड़ई आपस में मिल जाए तो वही होता है जो आज आम आदमी पार्टी के साथ हुआ है। ग़ाज़ीपुर के निवासी और बीएचयू छात्रसंघ के कभी महामंत्री रह चुके छात्र नेता उमेश कुमार सिंह ने मौके पर जो लंगड़ी मारी है, वह कल होने वाली नेशनल काउंसिल की बैठक से पहले रात भर में ही खेल को बिगाड़ने की कुव्‍वत रखता है। उमेशजी की सोहबत में अरविंद केजरीवाल बनारस से चुनाव तो लड़ आए, लेकिन एक बात नहीं समझ पाए कि मुंह में पान घुला हो तो बनारसी आदमी अमृत को भी लात मार सकता है। अगर ग़ाज़ीपुर का हुआ तो खिसिया कर सामने वाले के मुंह पर थूक भी सकता है।

उमेश सिंह अरविंद के बहुत करीबी हैं। चाहते तो करीबी बने रह सकते थे। बहुत फायदा होता। छात्र राजनीति में बीस साल की तपस्‍या कामयाब हो जाती। उनकी फि़तरत ही हालांकि उलटी है। इसी फि़तरत के चलते बीएचयू में आज से बीस साल पहले महामंत्री रहने के बावजूद एबीवीपी से बग़ावत कर के अपना संगठन खड़ा कर लिए। बाद में अरविंद की ‘अच्‍छाई’ से प्रभावित होकर उनके साथ हो लिए। जब पार्टी में संकट आया, तो समाजवादी मन व्‍यक्तिवाद के विरोध में अपने आप यादव-भूषण की ओर झुक गया। आखिरकार उन्‍होंने सब कुछ दांव पर लगाकर एक बार फिर बग़ावत का टेप बजा डाला।

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जिस तरह हर स्टिंग नकली नहीं होता, उसी तरह स्टिंग करने वाला हर आदमी दलाल नहीं होता। इस स्टिंग से अरविंद केजरीवाल का कुछ बिगड़े न बिगड़े, भूषण-यादव का कुछ बने न बने, लेकिन एक बात फिर से साबित हो चुकी है कि दिल्‍ली की नाव आखिरकार बनारस के घाट पर ही डूबती है। ‪#‎AAPKaSting‬

पत्रकार और एक्टिविस्ट अभिषेक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से.

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