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सियासत

लोकपाल के नाम पर सत्ता में आए और सवाल उठाने पर लोकपाल की ही छुट्टी कर दी!

आम आदमी पार्टी में मची भयानक कलह के बाद भी हालांकि पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पार्टी में “आल इज़ वेल”  है, लेकिन हर रोज़ हम सभी को जो देखने और सुनने को मिल रहा, उससे तो यही लगता है की केजरी हम सभी को बार बार “अप्रैल फूल” ही बना रहे हैं. हालांकि केजरी को अब इसकी ज़रूरत नहीं होनी चाहिए थी क्योंकि वह तो पहले ही हम दिल्ली वासियों को अप्रैल फूल बना कर ही दिल्ली की सत्ता पर क़ाबिज़ हुए हैं। 

<p>आम आदमी पार्टी में मची भयानक कलह के बाद भी हालांकि पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पार्टी में "आल इज़ वेल"  है, लेकिन हर रोज़ हम सभी को जो देखने और सुनने को मिल रहा, उससे तो यही लगता है की केजरी हम सभी को बार बार "अप्रैल फूल" ही बना रहे हैं. हालांकि केजरी को अब इसकी ज़रूरत नहीं होनी चाहिए थी क्योंकि वह तो पहले ही हम दिल्ली वासियों को अप्रैल फूल बना कर ही दिल्ली की सत्ता पर क़ाबिज़ हुए हैं। </p>

आम आदमी पार्टी में मची भयानक कलह के बाद भी हालांकि पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पार्टी में “आल इज़ वेल”  है, लेकिन हर रोज़ हम सभी को जो देखने और सुनने को मिल रहा, उससे तो यही लगता है की केजरी हम सभी को बार बार “अप्रैल फूल” ही बना रहे हैं. हालांकि केजरी को अब इसकी ज़रूरत नहीं होनी चाहिए थी क्योंकि वह तो पहले ही हम दिल्ली वासियों को अप्रैल फूल बना कर ही दिल्ली की सत्ता पर क़ाबिज़ हुए हैं। 

जिस लोकपाल और उसके अधिकारों के मुद्दे पर शोर हंगामा करते हुए केजरीवाल ने दिल्ली के सत्ता के गलियारे की सीढ़ियां चढ़ी, अब खुद उसको और उसकी महत्ता को एक झटके में ही अपने पैरों तले कुचलते देर न लगायी। जिसका कारण सिर्फ और सिर्फ यह था की “आप” के आंतरिक लोकपाल एडमिरल रामदास ने खुद को दिए अधिकारों को समझना और उसपर काम करने का प्रयास मात्र करने की जुर्रत दिखाना आरम्भ कर दिया था, जो की किसी भी सूरत में केजरी और उनके चहेतों को गवारा नहीं था। तो फिर क्या था पलक झपकते ही लोकपाल की छुट्टी करके उन्हें घर बैठा दिया गया। 

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अगर लोगों को याद हो की केजरी के जन आंदोलन का मुख्य नारा ही “लोकपाल-लोकपाल” था जिसकी गूंज जंतर मंतर से लेकर रामलीला मैदान तक पहुंची और फिर देश के कोने कोने तक, जिसका परिणाम केजरी और उनकी टीम को सत्ता की चाबी का  बड़ी आसानी से मिल जाना हुआ। 

हर बात पर लोकपाल की दुहाई देने वाले केजरीवाल पर जब उन्ही के लोकपाल ने सवाल उठाने की जुर्रत की तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। वाह रे केजरीवाल, क्या यही है आपकी लोकतंत्र व्यवस्था ? क्या आपने लोकपाल और उसके अधिकारों का मुद्दा उठा कर दिल्ली वालों को सिर्फ अप्रैल फूल नहीं बनाया ?

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अपने आंतरिक लोकपाल एडमिरल रामदास को हटाने से पहले आप की राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद अन्ना आंदोलन और बाद में “केजरी धूम” की रीढ़ की हड्डी रहे योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी में अपमानित करके राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निकाले जाने की खबर भी दिल्ली वालों के साथ धोखा और विश्वासघात ही कहा जाएगा।  राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद प्रशांत भूषण को तो पार्टी की राष्ट्रीय अनुशान कमेटी से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। 

इनके इलावा पार्टी के दो अन्य प्रमुख सहयोगी प्रोफेसर आनंद कुमार और अजित झा को भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।  इन सभी का दोष यही था की इन्होने पार्टी प्रमुख  यानी अरविन्द केजरीवाल पर सवाल उठाये, और उन्हें  “एक आदमी एक पद” का उदाहरण स्थापित करते हुए पार्टी के संयोजक पद त्यागने की सलाह दे डाली, परन्तु सत्ता से बेहद प्रेम करने वाले  केजरी, भला कहाँ इन बातों को हज़म कर पाते, उन्हें तो पूरी पार्टी का रिमोट सिर्फ अपने हाथों में ही चाहिए, वो किसी और को यह अधिकार कैसे दे सकते है।  सो उन्होंने पार्टी विधायकों, राष्ट्रीय  कार्यकारिणी के सदस्यों एवं कार्यकर्ताओँ के सामने खुल्लम खुल्ला ये ऑफर रखा की या तो “उन्हें चुन लो या मुझे” अब भला किस कार्यकर्ता या कार्यकारीणी के  सदस्य की ये हिम्मत होती की वो केजरी के सामने योगेन्द्र या प्रशांत को चुन लेता।  फिर वही हुआ जिसका सभी को अनुमान था केजरी की विजय और योगेन्द्र, प्रशांत की पराजय। इस वाक़या से भी केजरी की पार्टी की लोकतंत्र व्यवस्था की डर्टी पिक्चर सामने आई और साथ ही सामने आया केजरी के लोकतंत्र में विश्वास का ढोंग।  ये भी एक जीता जागता उदाहरण था टीम केजरी द्वारा दिल्ली की जनता को “अप्रैल फूल” बनाने का। 

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नैतिकता के लम्बे लम्बे दावे करने वाले केजरीवाल और उनके सिपहसालारों की यूँ तो कई कहानियाँ आपके सामने आ चुकी हैं जिससे नैतिकता की उनकी अपनी परिभाषा पूरी तरह धूमिल होती दिखी। तरह तरह के ऑडियो टेप्स जिसमे नैतिकता की दुहाई देने वाले केजरी जी अनैतिकता की सीमा लांघते हुए सुने जा सकते हैं, पता नहीं हमे आगे इस टीम केजरी से और क्या सुनने और देखने को मिले।  

लेकिन अब एक ताज़ा मामला केजरी के सबसे विश्वासपात्र सहयोगी माने जाने वाले कुमार विश्वास का आया है , जिसमे उन पर आरोप लगाया जा रहा है की हाल में हुए लोक सभा चुनाव के दौरान अमेठी में उनका  आम आदमी पार्टी नेता और कवि, कुमार विश्वास पर पार्टी की एक महिला कार्यकर्ता से अनैतिक संबंध का आरोप लगा है। हालांकि अभी इस बाबत कोई वीडियो रिकॉर्डिंग या किसी भी अन्य प्रकार के साक्ष्य सामने नहीं आये हैं , लेकिन जिस अंग्रेजी अखबार ने इसका खुलासा किया उसका दावा है की उसके पास केजरी और कुमार के बीच हुए इमेल्स की प्रतिलिपि है जिससे इस बात की पुष्टि होती है की चुनाव के दौरान विश्वास पर अजय वोहरा नामक एक व्यक्ति ने ये आरोप लगाए थे जिस पर केजरी ने जांच का आश्वासन भी दिया था जिसकी वजह से केजरी और विश्वास के बीच मतभेद भी हुए थे। 

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इस आरोप में कितना दम है ये तो नहीं कहा जा सकता लेकिन अपने और केजरी के बीच चुनाव के दौरान मतभेद की बात तो खुद विशवास भी कई बार खुले तौर पर बोल चुके हैं, विश्वास ने तो ये तक कहा था की किसी वजह से हमारे मतभेद हुए और हम दोनों के बीच लगभग दो महीने तक बात चीत भी बंद थी फिर हमारी पत्नियों ने हमारे बीच सुलह करवाई।  विश्वास जी अब इस बात का खुलासा आप खुद ही कर दें तो अच्छा होगा की आपके और केजरी के बीच दो माह तक बात बंद  होने और नाराज़गी की वजह क्या अमेठी काण्ड ही तो नहीं था जिसमे केजरी ने बिना आपसे बात किये आपके विरुद्ध “महिला कार्यकर्ता से अनैतिक सम्बन्ध बनाने” के आरोप की जांच की बात की थी। 

अगर विशवास के विरुद्ध आरोपों में ज़रा भी सच्चाई है तो ये भी दिल्ली की जनता के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात है।  क्योंकि ये वही केजरी-सरकार है जो पहले अन्ना आंदोलन और फिर अपने पूरे   चुनाव अभियान में दिल्ली वासियों को महिला सुरक्षा और उनके सम्मान का पाठ पढ़ाते सुनाई देते थे,  फिर अब क्या कहेंगे केजरी जी, अब तो आपके सबसे घनिष्ठ मित्र और आपकी पार्टी के सर्वोच्च नेता कुमार विश्वास पर ही अपने ही पार्टी की महिला कार्यकर्ता के साथ अनैतिक सम्बन्ध बनाने का आरोप लगा हो। दिल्ली वासियों की तो दुआ यही है की विश्वास पर लगे ये आरोप सही न हो, वरना उन पर से  भी दिल्ली वासियों का विश्वास उठ जाएगा.,

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वैसे, ना जाने आगे हम दिल्ली वासियों को “आप” और आपके लोगों के कौन कौन से कारनामो से रूबरू होना होगा। जन आंदोलन से निकली आपकी राजनीति की लड़ाई तो अपने मंज़िल तक पहुँच गयी लेकिन इस पूरे समय में आपने जो लम्बे लम्बे वादे दिल्ली वासियों से किये और जितने हसींन सपने उन्हें दिखाए वो सब तो कहीं पीछे छूटते दिखाई दे रहे हैं, अब तो आपका एक ही मुख्य मुद्दा दीखता है और वो है “पार्टी बचाओ-सरकार चलाओ”, केजरी जी दिल्ली वासियों ने आपको और आपके तथाकथित उच्च विचारों को पूजना शूरु कर दिया था, लेकिन उन्हें क्या मालुम था की उन्हें तो सिर्फ मुंगेरी लाल के हसींन सपने दिखाए जा रहे हैं, न कोई लोकतंत्र, न कोई नैतिकता और न ही कोई लोकपाल व्यवस्था, ये तीनो ऑप्शन ग़लत थे, सही जवाब तो चौथा ऑप्शन था “अप्रैल फूल” का। 

लेकिन अब बहुत हुआ केजरी जी, अब आप कुछ तो ख्याल हम दिल्ली वासियों और हमारी समस्याओं का कर लें ताकि कुछ तो हमारी दिल्ली का भी भला हो सके। हम दिल्ली वासियों का आपसे विनर्म निवेदन है केजरी जी की  “नो मोर अप्रैल फूल प्लीज”   

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(संपर्क : 9910336442)

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