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इसे हिन्दी अखबारों की बेशर्मी मानें या नालायकी?

लगता है हिन्दी अखबार इस मुगालते में रहते हैं कि वे खबर नहीं छापेंगे तो दुनिया को पता ही नहीं चलेगा। गोदी मीडिया और मीडिया पर सरकारी दबाव के इस जमाने में हिन्दी वालों के कमजोर सूचना तंत्र और साधन संपन्नता की कमजोरी भी खुलकर सामने आ रही है। राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट का कल का फैसला बिल्कुल अलग और अनूठा है तथा पूरा मामला एक नए मोड़ पर पहुंच गया है। इसके साथ ही मीडिया पार्ट ने कल ही एक नया खुलासा किया। दोनों मिलाकर बड़ी खबर बनती है पर मैंने हिन्दी के जो भी अखबार देखे किसी में मीडिया पार्ट के खुलासे की खबर नहीं है। यह सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं रहने का भी नतीजा हो सकता है। पर सच यही है कि सरकार विरोधी एक बड़ी खबर हिन्दी अखबारों में नहीं है। अंग्रेजी अखबार इस लिहाज से बहुत सही हैं।

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शीर्षक से लेकर प्लेसमेंट तक में खेल करने के साथ पूरी खबर पी जाना हिन्दी वालों के ही वश का है। दूसरी ओर, सरकार समर्थक या कांग्रेस विरोधी खबरें लपक लेने की बेशर्मी भी वहां ज्यादा है। इन दिनों ऐसी दो खबरें चल रही हैं। पहली तो गुजरात से हिन्दी भाषियों को खदेड़े जाने और सरकारी मशीनरी के सुस्त पड़े होने की घटनाओं के बीच इस आशय की खबरें नहीं छप रही हैं कि सरकारी मशीनरी क्या करती रही या प्रशासन कैसे नाकाम रहा अथवा हिन्सा के आरोप में गिरफ्तार 450 लोग कौन हैं – बल्कि खबर यह छप रही है कि कांग्रेस बैक फुट पर है, राहुल गांधी अपने विधायक के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहे या यह कि हिन्दी भाषियों (के भागने) को खदेड़ने में कांग्रेस विधायक अल्पेश ठाकोर के भड़काने वाले बयान की भूमिका है।

दूसरी ओर, सरकार चुनौती देने के बावजूद उन्हें गिरफ्तार नहीं कर रही है। इसे लिखा जा रहा है कि कांग्रेस को अपने विधायक को गिरफ्तार करने की मांग करनी पड़ी। कांग्रेस बैकफुट पर है आदि। दो-तीन दिन जब गुजरात के कई शहरों में लोगों को धमकाया गया और राज्य छोड़ने के लिए मजबूर किया गया तब कोई खबर नहीं छपी। अब जो खबरें छप रही हैं उसके तेवर भी सरकार विरोधी बिल्कुल नहीं है जबकि इतने बड़े स्तर पर पलायन सबसे पहले सरकार और प्रशासनिक मशीनरी की लापरवाही है। दूसरी खबर केंद्रीय मंत्री औऱ पूर्व पत्रकार एमजे अकबर के मामले में है। केंद्रीय मंत्री के खिलाफ पहला आरोप लगे काफी समय बीत चुका है। मंत्री विदेश में हैं और उनके कल वापस लौटने की संभावना है। आज के जमाने में आज तक उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। ना सरकार की तरफ से कुछ नहीं कहा गया है। अकबर की कैबिनेट मंत्री सुषमा स्वराज ने इस संबंध में सवाल पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। पर यह सब अखबारों में नहीं है। या बहुत कम है।

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अखबारों में अन्य खबरों के साथ खबर यह चल रही है कि कांग्रेस अकबर के इस्तीफे की मांग क्यों नहीं कर रही है। राजनीतिक दृष्टि से यह मांग होनी चाहिए पर क्या, कैसी और कितनी राजनीति करनी है यह तो राजनीति करने वाला तय करेगा ना? अकबर को कांग्रेस ने ही सबसे पहले सांसद बनाया था। घूम-फिरकर वे भाजपा में पहुंच गए हैं और अब उनपर ये आरोप लग रहे हैं जो संभवतः उनकी तब की कार्रवाइयों से संबंधित हैं जब वे कांग्रेस में थे या जिसके बाद वे कांग्रेस से जुड़े। ऐसे में कांग्रेस अगर उनके इस्तीफे की मांग नहीं कर रही है तो वह उसकी मर्जी पर यब बताने की बजाय की भाजपा में अकबर को लेकर सन्नाटा है, निर्णय नहीं हो पा रहा है, विकल्प नहीं मिल रहा है आदि अखबार अपने पाठको को बता रहे हैं और जानना भी चाह रहे हैं कि कांग्रेस अकबर के इस्तीफे की मांग क्य़ों नहीं कर रही है।

इसी क्रम में टाइम्स ऑफ इंडिया में आज पहले पन्ने पर अकबर की खबर में नीचे एक रिपोर्टर के हवाले से यह सवाल पूछा गया है और उनका जवाब वही है जो ऐसे सवालों का होना चाहिए या होता है पर टीओआई ने इस खबर (और सवाल जवाब को भी) पहले पेज पर प्रमुखता से छापा है।

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वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की टिप्पणी। संपर्क : [email protected]

 

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