Ashwini Kumar Srivastava : नोटबंदी पर सिर्फ नरेंद्र मोदी को ही शर्मिंदा नहीं होना चाहिए बल्कि थोड़ी शर्म तो उन अंध समर्थकों (भक्त कहने पर बुरा लग जायेगा) को भी आनी चाहिए, जिन्होंने अपनी अक्ल पर पत्थर रखकर उस वक्त हर तर्क या विश्लेषण को महज इसलिए खारिज कर दिया था….क्योंकि उन्हें लगता था कि नोटबंदी को गलत ठहरा कर या उसका विरोध करके उनके आराध्य मोदी का विरोध किया जा रहा है। और उनकी नजर में जो मोदी और उनकी नोटबन्दी का विरोध करे, वह राष्ट्रद्रोही है, काले धन का मालिक है…
मुझे याद है कि किस तरह मेरे ही कुछ मित्रों और रिश्तेदारों ने नोटबन्दी का विरोध करने पर मुझ पर कैसे-कैसे तंज कसे थे, किस तरह से मुझसे अनर्गल बहस करके शब्द बाणों से मुझ पर हमले किये थे। बजाय मेरे तार्किक विश्लेषण पर तर्क वितर्क करने के मुझसे व्यंग्यात्मक लहजे में यह पूछा जा रहा था कि नोटबंदी से मुझे कितने काले धन का नुकसान हुआ? मानों मेरे उस काल्पनिक नुकसान से उन्हें बड़ी खुशी हासिल हो रही हो।
जैसे ही नोटबंदी की घोषणा मोदी जी ने की तो मैंने उसी वक्त महज चंद मिनटों बाद अपनी फेसबुक वॉल पर नोटबंदी क्यों और कैसे घातक साबित होगी, इसका आर्थिक विश्लेषण करते हुए इसे तुगलकी फैसला लिखा था। फिर मुहम्मद तुगलक के राज का विस्तार से जिक्र करते हुए इसे उसी तरह का ऐतिहासिक आर्थिक ब्लंडर भी बताया था। यह भी लिखा था कि आज भले ही इसे मोदी समेत उनके समर्थक न मानें लेकिन इसके घातक नतीजे खुद ही जल्द इसे असफल करार दे देंगे।
उसी दौर की लिखी गईं पोस्ट में मेरा तब यह भी आंकलन था कि मोदी को जब भी याद किया जाएगा तो नोटबंदी के इसी कलंक के साथ, जैसे कि तुगलक को उसकी सिक्काबन्दी (चांदी/सोने के सिक्के बंद करने) के लिए आज भी कोसा जाता है। क्योंकि इतिहास बड़ा ही बेरहम होता है। वह भक्तों या समर्थकों की तादाद के आधार पर किसी की वाहवाही या निंदा नहीं करता।
ऐसा होता तो समूचे हिंदुस्तान में लंबे अरसे तक राज करने वाले मुहम्मद तुगलक और उसके वंश के मुरीदों की तादाद देखकर इतिहास उसे भी अशोक, विक्रमादित्य, ललितादित्य या अकबर की श्रेणी में रखता। जबकि इतिहास उसे हिंदुस्तान के असफल व एक तरह के सनकी/बेवकूफ शासकों में ही गिनता आया है। खुद जनता भी उसका उपहास हर बेवकूफाना फैसले को तुगलकी फैसला कहकर उड़ाती आयी है।
बहरहाल, भक्त कहो या अंध समर्थक कहो…या फिर मोदी जी के ऐसे प्रशंसक कहो, जिन्होंने मोदी जी को नेतृत्व देकर भारत और हिंदुओं की रक्षा का सारा भार अपने कंधे पर उठा लिया है….और जिसे हम जैसे वे देशद्रोही देख/समझ ही नहीं पा रहे, जिन्हें मोदी जी के फैसलों में कहीं से भी कुछ कमी नजर आ जाती है। अब मोदी तो इन समर्थकों के आराध्य हैं…और आराध्य केवल किसी अवतार या महापुरुष को ही बनाया जा सकता है…जाहिर है, कोई महापुरुष या अवतार किसी आम इंसान की तरह गलतियां तो नहीं ही कर सकता…
इसी कारण नोटबंदी तब भी गलत नहीं थी, जब मोदी जी ने रात 8 बजे आकर अचानक की थी…और आज भी गलत नहीं है, जब उसका नतीजा सिफर निकल कर आया है। यानी तब भी मैं भक्तों की नजर में देशद्रोही था…आज भी वही हूँ। लेकिन क्या करूँ, दिल है कि मानता नहीं इसलिए मोदी जी के कुछ फैसलों पर कभीकभार उंगली उठा देता हूँ। मेरा मानना है कि अब इतिहास ही बिल्कुल निष्पक्ष तरीके से नोटबंदी समेत मोदी के पांच बरस के हर काम-काज की समीक्षा कर पायेगा। जहां तक मेरी बात है तो मैं भी अब मिर्ज़ा ग़ालिब के इस एक शेर के साथ यह पोस्ट भी शेयर करके सब कुछ इतिहास पर ही छोड़ दे रहा हूँ..
“या-रब वो न समझे हैं न समझेंगे मिरी बात
दे और दिल उन को जो न दे मुझ को ज़बाँ और”
पत्रकार और उद्यमी अश्विनी कुमार श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.
Qamar Waheed Naqvi : सरकार के मूर्खतापूर्ण फ़ैसलों का विरोध करना ‘देशद्रोह’ नहीं है श्रीमान. यह जनहित का काम है, जिसे ‘अन्धभक्त’ कभी नहीं कर सकते! रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट आ जाने के बाद अब नोटबन्दी के समर्थक ‘भक्तगण’ कहाँ हैं? आख़िर सही कौन साबित हुआ? क्या वह लोग सही साबित हुए जो नोटबन्दी को मूर्खतापूर्ण फ़ैसला बता रहे थे या वह लोग सही थे जो नोटबन्दी के आलोचकों को ‘देश-विरोधी’ और ‘मोदी-विरोधी’ बता रहे थे?
नोटबन्दी पर मैंने अपने पहले ही लेख में लिखा था कि नोटबन्दी से काला धन ख़त्म नहीं हो सकता और अगर होगा, तो भी बहुत मामूली ही. क्योंकि काला धन कोई करेन्सी में रखता ही नहीं है. उसे तो कहीं न कहीं सम्पत्ति में, सोने-चाँदी, हीरे-जवाहरात में, शेयर बाज़ार में, या देश-विदेश में उद्योग-धन्धे में खपा दिया जाता है.
वैसे यह सोचना ही आर्थिक अज्ञानता और मूर्खता है कि कोई अपना काला धन अपनी तिजोरी में करेन्सी में रखेगा. क्योंकि ताले में या बोरे में बन्द रखी गयी करेन्सी की क्रय शक्ति हर साल मुद्रास्फीति के कारण घटती जाती है. इसे इस उदाहरण से समझिए कि यदि किसी ने दस साल पहले दस लाख रुपये के नोट अपनी तिजोरी में बन्द करके रख दिये, तो आज क्या उन दस लाख रुपयों का मूल्य वही होगा, जो दस साल पहले था? वह घट कर आधा भी नहीं रह जायगा! इसलिए कौन मूर्ख काले धन को करेन्सी में रखेगा? और जो लोग अरबों-खरबों के काले धन का धन्धा करते हैं, उन्हें आप इतना ही मूर्ख समझते हैं क्या कि वह काले धन को नोटों में रख कर बैठेंगे?
करेन्सी में काला धन केवल उतने समय के लिए यानी कुछ दिनों या महीनों के लिए रहता है, जब तक उसे कहीं खपाया न जा सके. इसलिए काले धन का बहुत छोटा हिस्सा ही करेन्सी में रहता है, यह सामान्य गणित है. नोटबन्दी के बाद जो लोग यह सामान्य-सा गणित, यह सच्चाई जनता को बता रहे थे, उन्हें ‘ग़द्दार,’ ‘देश-विरोधी,’ ‘आतंकवाद और नक्सलवाद समर्थक’ और जाने क्या-क्या कह कर गालियाँ दी जा रही थीं. कहा जा रहा था कि वह तो मोदी सरकार के हर क़दम का विरोध ही करेंगे, चाहे सरकार कितना भी अच्छा काम करे.
लेकिन अब सच्चाई सामने आ ही गयी और समय ने सिद्ध कर दिया कि कौन सच बोल रहा था और कौन झूठा था? रिज़र्व बैंक ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में साफ़-साफ़ बता दिया है कि पुरानी करेन्सी के 99.3% नोट रिज़र्व बैंक के पास वापस लौट आये हैं. यानी केवल कुल पुरानी करेन्सी का 0.7% हिस्सा ही बैंकों में वापस नहीं लौटा. मतलब यह कि 15.41 लाख करोड़ रुपये की पुरानी करेन्सी में से केवल दस हज़ार करोड़ रुपये की करेन्सी ही वापस नहीं लौटी.
नोटबन्दी के तुरन्त बाद मैंने यही लिखा था कि यह बेवक़ूफ़ी भरा विचार है कि नोटबन्दी से काला धन ख़त्म हो जायेगा. आज सच्चाई यह है कि न काला धन पकड़ में आया और न ‘कैशलेस इकॉनॉमी’ में कोई उल्लेखनीय सफलता मिली. नोटबन्दी के पहले जहाँ 15.41 लाख करोड़ की करेन्सी चलन में थी, वहीं जून 2018 के रिज़र्व बैंक के आँकड़ों के मुताबिक़ अब 19.3 लाख करोड़ की करेन्सी चलन में है. तो फिर नोटबन्दी से क्या मिला?
आजतक न्यूज चैनल के न्यूज डायरेक्टर रह चुके वरिष्ठ पत्रकार क़मर वहीद नक़वी की एफबी वॉल से.
Abhishek Parashar : 99.3 फीसद नोट, नोटबंदी के बैंकों में वापस आ गए. सरकार कह रही है कि नोटबंदी के जो भी मकसद थे उसे पूरा कर लिया गया. लेकिन यह आंकड़ा बताता है कि भारत चोरों का देश बन चुका है. सरकारी और निजी क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों को पता है उन्हें रिटायरमेंट के बाद का सारा इंतजाम नौकरी के दौरान ही कर लेना है. क्योंकि हमारी सरकार ने यह सोचना छोड़ दिया है कि उसके नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा की भी जरूरत है. एक खुशहाल परिवार, राष्ट्र निर्माण की सबसे बड़ी ईकाई है लेकिन हम तनाव पैदा कर रहे हैं.
हिंदू युवा की भृकुटी तनी हुई है, वह नहीं दिखने वाले किसी खतरे के सच होने की बात को मान चुका है. वह तैयारी कर रहा है देश को बचाने की. भीड़ में भी वहीं शामिल है. सरकार मान चुकी है, जो उन्हें वोट देते हैं, उनकी हैसियत कीड़े और मकोड़े से ज्यादा नहीं है. उन्हें कुछ नहीं भी दो, तो भी वह खुश रहेंगे. बस उन्हें बताते रहो खतरा बगल में है और यह कहानी सभी सरकारों की है. पुराने नोट इसलिए बैंकों में वापस आ गए कि बैंकों के मैनेजर और कर्मचारी भ्रष्ट थे. उन्होंने 10 या 20 फीसद का कट लिया और नोट बदल डाले. निजी क्षेत्र में हालत और भी खराब है. सरकार टैक्स छूट के नाम पर करोड़ों रुपये देती है, लेकिन सामाजिक सुरक्षा के नाम पर वह बिदक जाती हैं. सीएसआर जैसे फंड का इस्तेमाल रिटायरमेंट के बाद पेंशन देने में क्यों नहीं किया जा सकता, यह सरकार आपको कभी नहीं बताएगी लेकिन वह आपको यह जरूर बताएगी कि देश खतरे में हैं.
प्रतिभाशाली पत्रकार अभिषेक पराशर की एफबी वॉल से.
Girish Malviya : रिजर्व बैंक ने कल जो अपनी एन्युअल जनरल रिपोर्ट जनता के सामने पेश की है यदि उस पर भरोसा करें तो मोदी जी के चार सालों में देश की बदहाल हुई अर्थव्यवस्था की सच्ची तस्वीर निकल कर सामने आ जाती है, इस रिपोर्ट में यह तो सिद्ध कर ही दिया गया है कि नोटबन्दी पूरी तरह से फेल हो गयी है, लेकिन उसे एक तरफ भी रख दे तब भी इस रिपोर्ट मोदी सरकार के नेतृत्व में देश के बर्बाद होने वाले भविष्य की भयावह तस्वीर उभर रही है…
देश का बिका हुआ मीडिया कभी इस तरह के विश्लेषण पेश नही करता है इसलिए यही पर एक नजर डाल लीजिए…
सबसे बड़ा आश्चर्यजनक तथ्य तो यह सामने आया है कि मोदीं सरकार के आखिरी तीन सालों में सरकारी बैंकों के एनपीए में 6.2 लाख करोड़ की वृद्धि हुई है रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी ) का कुल सकल एनपीए 31 मार्च, 2018 तक बढ़कर 10,35,528 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जो 31 मार्च, 2015 को 3,23,464 करोड़ रुपये था…
यानी सारा घाटा मोदीं सरकार के समय ही सामने आया है रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार बैंकिंग प्रणाली में मार्च, 2018 के अंत तक कुल एनपीए और पुनर्गठित कर्ज कुल ऋण के 12.1 प्रतिशत पर पहुंच गई हैं जो बेहद खतरनाक स्तर है भविष्य को लेकर रिजर्व बैंक का कहना है कि बैंकों को अभी गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की समस्या से निजात नहीं मिलने वाली है केंद्रीय बैंक ने कहा कि मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों के मद्देनजर चालू वित्त वर्ष में बैंकों का डूबा कर्ज और बढ़ेगा…
आरबीआई ने सरकार को महंगाई के मोर्चे पर भी चेताते हुए कहा कि आने वाले दिनों में महंगाई ऊपर जाने की आशंका है और इसके लिए तैयारी और सावधानी दोनों की जरूरत है। उसने महंगाई पर काबू पाने के लिए तत्काल कदम उठाने की सलाह देते हुए कहा कि वर्तमान में देश का व्यापार घाटा पांच साल के उच्चतम स्तर पर पहुंचकर 18 अरब डॉलर हो गया है। इसी तरह बीते जुलाई में थोक महंगाई सूचकांक की दर बढ़कर 5.09% पहुंच गई जबकि साल 2017 की जुलाई में यह दर महज 1.88% पर थी…
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि और तेल बाजार में मांग व आपूर्ति में हो रहे बदलाव का सबसे अधिक प्रभाव देश के व्यापार घाटे पर होने वाला है ऐसी आशंका है कि चालू वित्त वर्ष में GDP के 2.8 प्रतिशत पर चालू खाता घाटा पुहंच जाएगा कल ही रुपया 42 पैसे टूटा है और 70.52 प्रति डॉलर के रेकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया है, एक लीटर पेट्रोल की कीमत 85.60 रुपये तक पुहंच गयी हैं…
लेकिन इस संदर्भ में एक बात ओर गौरतलब है कि 2013-14 में तेल की औसत कीमतें 2017-18 की तुलना में दुगुनी से भी अधिक थीं, पर तब व्यापार घाटा 13.4 बिलियन डॉलर ही रहा था लेकिन वर्तमान में आयात में तेज उछाल के कारण इस साल जुलाई में मासिक व्यापार घाटा पांच साल का रिकार्ड तोड़ते हुए 18.02 बिलियन डॉलर तक जा पहुंचा है…
व्यापार घाटे में वृद्धि तेल और सोने-चांदी से इतर वस्तुओं के आयात के बढ़ने से हो रही है. साल 2013-14 में इस श्रेणी में व्यापार घाटा सिर्फ 0.4 बिलियन डॉलर रहा था, जो पिछले वित्त वर्ष में 53.3 फीसदी के स्तर तक पहुंच गया. बीते सालों में हमारे आयात की मात्रा तेजी से बढ़ रही है, पर निर्यात में मामूली इजाफा हो रहा है…
इसीलिए इस बढ़ते व्यापार घाटे की पूरी जिम्मेदारी मोदी सरकार की ही है इसके लिए नेहरू जी जिम्मेदार नही है और न ही बैंकिंग व्यवस्था को डुबो देने का का आरोप उन पर लगाया जा सकता है देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर देने की पूरी जिम्मेदारी आपकी है मोदी जी…
आर्थिक मामलों के जानकार गिरीश मालवीय की एफबी वॉल से.
Yashwant Singh : नोटबंदी फेल वाली न्यूज से ध्यान भटकाने के लिए मोदीजी एंड कंपनी ने अरबन नक्सल का खेल खेला… इसलिए अब नोटबंदी वाली खबर पर कंसंट्रेट करें. आंकड़े आ चुके हैं. मोदीजी और उनके भक्तों का गुब्बारा फूट चुका है. देश के करोड़ों गरीबों की रोजी-रोटी छीनने के अपराधी हैं ये लोग.
नोटबंदी फेल हो जाने की खबर को आगे बढ़ाएं-फैलाएं….गोदी मीडिया ये न छापेगा न दिखाएगा… वह फिलहाल गोद में बैठकर ”अरबन अरबन नक्सल नक्सल” का जाप करेगा, जब तक आका कोई नया आदेश न जारी कर दें….
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से.
इन्हें भी पढ़ें-देखें…
The Telegraph का आज का पहला पेज फिर जबरदस्त है, जरूर देखें
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रवीश कुमार ने पूछा- क्या चौकीदार जी ने अंबानी के लिए चौकीदारी की है?
https://www.youtube.com/watch?v=UmK1ihBhbN0