बिना आरबीआई से अनुमति के विदेश ले गए बौद्धिक संपत्ति, ओशो के विदेशी संन्यासियों ने फर्जी हस्ताक्षर कर संपति पर डाला डाका
मुंबई। ओशो के नाम से मशहूर रजनीश ने पूरे देश को अपने विचारों से झकझोर कर रख दिया था। एशिया से लेकर पश्चिमी देशों तक उनके इतने भक्त बने कि अमेरिकी राष्ट्रपति सहित 21 देशों की सरकारें हिल गर्इं। अब इसी ओशो के 800 करोड़ के करीब बौद्धिक संपत्ति का विवाद हाईकोर्ट में चल रहा है। उनकी मृत्यु के बाद उनके ही 6 विदेशी भक्तों ने इस संपत्ति पर डाका डालते हुए ओशो की फर्जी हस्ताक्षर के जरिए लूट कर विदेश ले गए हैं।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुलिस को ओशो (आचार्य रजनीश) की वसीयत की सत्यता जानने के लिए यूरोपियन यूनियन को पत्र लिखने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह निर्देश एक मामले की सुनवाई के दौरान दिया है, जिसमें ओशो के ही एक शिष्य ने संपत्ति की लूट को भारत वापस लाने के लिए वसीयत की सत्यता को कोर्ट में चैलेंज किया है।
गौरतलब हो कि ओशो की मौत 19 जनवरी 1990 को पुणे में हुई थी। दुनियाभर में उनके लाखों अनुयायी हैं। ओशो अपने पीछे इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी (बौद्धिक संपत्ति) का भारी खजाना छोड़ गए हैं। इनमें नौ हजार घंटे के प्रवचन, 1870 घंटे के भाषण और करीब 850 पेंटिंग शामिल हैं। उनके वक्तव्यों पर आधारित 650 किताबें 65 भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। इस बौद्धिक संपत्ति से सालाना करोड़ों डॉलर की आमदनी होती है। याचिकाकर्ता ओशो के शिष्य योगेश ठक्कर (स्वामी प्रेम गीत) का आरोप है कि ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन के छह ट्रस्टियों ने देश से बाहर कंपनियां और ट्रस्ट बना रखे हैं। इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स की रॉयल्टी बिना आरबीआई से अनुमति लिए गैर-कानूनी तरीके से वहां ट्रांसफर की जा रही है।
पुणे आर्थिक अपराध शाखा को दिए थे जांच के आदेश
ठक्कर ने वर्ष 2012 में शिकायत की थी। पुणे के कोरेगांव पुलिस स्टेशन में वर्ष 2013 में ओशो आश्रम के छह विदेशी शिष्यों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। अपनी शिकायत में उन्होंने कहा है कि जिस वसीयत को वर्ष 2013 में यूरोपियन कोर्ट के समक्ष पेश की गई थी, वह वास्तव में ओशो द्वारा नहीं की गई है।
बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ में सुनवाई के दौरान ठक्कर के वकील ने बताया कि ओशो की मौत के 23 वर्ष बाद इस वसीयत को यूरोपियन कोर्ट में पेश किया गया गया, जबकि उनकी मौत भारत में ही हुई थी। जिन लोगों के खिलाफ ठक्कर ने शिकायत दर्ज कराई है, उनके पास ओशो की पेंटिंग, आॅडियो, वीडियो और किताबों के अधिकार प्राप्त हैं।
ओशो की बौद्धिक संपत्ति आरबीआई के फॉरेन एक्सचेंज के अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर अवैध रूप से स्वीट्जरलैंड और अमेरिका ले गए हैं। ओशो के 6 विदेशी शिष्यों ने फर्जी हस्ताक्षर कर वसीयत बनाई है। इसकी सत्यता जांच कर विदेश में गई संपति को वापस लाने के लिए मुंबई हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। मेरा एक ही उद्देश्य है कि भारतीय संपत्ति भारत में आनी चाहिए। इसके कारण प्रति वर्ष भारत को लगभग लाखों डॉलर का नुकसान हो रहा है।
-योगेश ठक्कर, याचिकाकर्ता
ओशो की वसीयत पर मौजूद उनके दस्तखत और किताबों में मौजूद उनके दस्तखतों को मिलान के लिए वर्ष 2013 में हैंड राइटिंग एक्सपर्ट को भेजा गया था। उन्होंने उम्मीद जताई थी कि इसकी रिपोर्ट जल्द ही मिल जाएगी। उन्होंने कोर्ट को बताया कि ओशो के केयर टेकर एलेक्जेंडर अलिशा के पास उनकी वसीयत की असली प्रति का फटा हुआ हिस्सा मौजूद है और फिलहाल इसकी एक डुप्लीकेट कॉपी यहां पर भी मौजूद है।
– संगीता शिंदे , सरकारी वकील
800 करोड़ इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी की कीमत
9000 घंटे आडियो टेप (हिंदी और मराठी)
1,870 घंटे वीडियो (हिंदी और मराठी)
80 देशों में 65 भाषाओं के बीच 650 पुस्तकें
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19 जनवरी 1990 – ओशो की मृत्यु
1989- बोगस मृत्यु पत्र बनाने का दावा
2012- पुणे पुलिस कमीशन को पत्र
2013- ट्रस्टियों के खिलाफ कोरेगांव पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज
2018- एक महीने में आर्थिक अपराध शाखा को रिपोर्ट देने का आदेश
लेखक उन्मेष गुजराथी दबंग दुनिया अखबार के मुंबई एडिशन के स्थानीय संपादक हैं. यह खबर इसी अखबार के आज के एडिशन में बतौर लीड न्यूज पब्लिश की गई है.
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