भाजपा अपनी इज्जत बचाए….भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद और उनके कालेज की एक छात्रा के मामले ने भाजपा की छवि को धूल में मिलाकर रख दिया है। जो पार्टी अपनी चाल, चेहरे और चरित्र पर गर्व करती थी, क्या अब वह कहीं अपना मुंह दिखाने लायक रह गई है? वह छात्रा साल भर से चिन्मय पर आरोप लगा रही है कि उसके साथ वह बलात्कार और मारपीट करता रहा है लेकिन जब तक उसने इन बातों को इंटरनेट पर जग-जाहिर नहीं किया, न तो उप्र की पुलिस ने कोई सुनवाई की और न ही उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोई ध्यान दिया।
जब सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया तो चिन्मय के खिलाफ कार्रवाई शुरु तो हुई लेकिन उसे बीमारी के बहाने अस्पताल में आराम फरमाने भेज दिया गया है और दूसरी तरफ पीड़िता के साथ क्या हुआ, वह आप जानें तो आप चकित रह जाएंगे। बलात्कारी अस्पताल में है और बलात्कार—पीड़िता जेल में है। पीड़िता पर जो आरोप है, उसके कुछ प्रमाण पुलिस जरुर पेश करेगी लेकिन वे आरोप क्या हैं ? वे मजाक हैं। पीड़िता और उसके तीन साथियों को जेल में इसलिए डाला गया है कि वे चिन्मय से पैसे मूंडने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने पैसे मूंड लिये हैं, यह आरोप उन पर नहीं है।
उधर चिन्मय पर जो आरोप लगाया गया है, जरा आप उसकी चतुराई देखिए। चिन्मय पर उप्र की पुलिस ने जो आरोप लगाया है, वह बलात्कार का नहीं है बल्कि ‘शारीरिक संबंधों के लिए सत्ता के दुरुपयोग’ का है। याने चिन्मय ने बलात्कार किया है या नहीं, यह पता नहीं लेकिन उन्होंने सिर्फ सत्ता का दुरुपयोग किया है। क्या यह मजाक नहीं है?
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ एक तरफ ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान चला रहे हैं और दूसरी तरफ उनकी सरकार बलात्कारी बचाओ अभियान चला रही है। यह कितने शर्म की बात है कि एक संन्यासी मुख्यमंत्री है और उसकी नाक के नीचे हिंदू धर्म का संन्यास-जैसा पवित्र आश्रम सारी दुनिया में बदनाम हो रहा है।
हिंदुत्व पर गर्व करने वाली मोदी सरकार का हिंदुत्व क्या यही है? प्रधानमंत्री को अपनी छवि, भाजपा की छवि, भारत की छवि और संन्यास की छवि की रक्षा करनी हो तो उन्हें इस मामले में तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। यदि चिन्मय से यह पाप हुआ है तो उसे उसको स्वीकार करना चाहिए और अदालत सजा दे, उसके पहले खुद को खुद कठोरतम सजा दे डालनी चाहिए और यदि वे निर्दोष हैं तो अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए उन्हें आमरण अनशन करके अपनी जान की बाजी लगा देनी चाहिए।
लेखक डा. वेद प्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.
आसिम अज़हर
September 30, 2019 at 11:42 am
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