कोठारी साहब जी, मन तो करता है पूरे परिवार को लेकर केसरगढ़ के सामने आकर आत्महत्या कर लूं
जब से मजीठिया वेज बोर्ड ने कर्मचारियों की तनख्वाह बढ़ाने का कहा व सुप्रीम कोर्ट ने उस पर मोहर लगा दी तब से मीडिया में कार्य रहे कर्मचारियों की मुश्किलें बढ रही हैं. इसी कड़ी में राजस्थान पत्रिका की बात बताता हूं। पहले हर तीन माह में डीए के प्वाइंट जोड़ता था लेकिन लगभग दो तीन वर्षों से इसे सालाना कर दिया गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए तनख्वा बढ़ी तो जहां 100 प्रतिशत की बढ़ोतरी होनी थी तो मजीठिया लगने के बाद कर्मचारियों की तनख्वाह में मात्र 1000 रुपए का ही फर्क आया। किसी किसी के 200 से 300 रुपये की बढ़ोतरी।
इसके बाद बारी आई सालाना वेतन वृद्धि की जो इंक्रीमेंट के साथ डीए आदि मिलाकर देखा जाए तो कम से कम भी 1500 रुपये के लगभग बढती थी। राजस्थान पत्रिका में सालाना वेतन वृद्धि जनवरी एवं जुलाई में होती है। आज सालाना वेतन वृद्धि के बढ़ी हुई सैलेरी मिली लेकिन सैलेरी लेकर हंसी आ रही थी व दुख हो रहा था। अब डीए भी बंद व तनख्वाह बढी मात्र 200 रुपए यानि एक माह का सोलह रुपए 67 पैसा और एक दिन का हुआ लगभग 22 पैसा।
इतना वेतन एक साथ बढ़ने से मैं तो धन्य हो गया। अब तो मेरे बच्चे हमारे शहर की सर्वोच्च शिक्षण संस्था में पढ सकेंगे। मैं छुट्टियों के दौरान घूमने के लिए विदेश भी जा सकूंगा। अपने लिए एक गाड़ी व घर भी ले सकूंगा। आखिर लूं भी क्यों ना सकूंगा। आखिर एक साल में 200 रुपए की वेतन वृद्धि जो हुई है जो मैंने कभी सपने में नहीं सोचा था। खैर व्यंग्य को छोड़ दें।
कोठारी साहब जी, मन तो करता है पूरे परिवार को लेकर केसरगढ़ के सामने आकर आत्महत्या कर लूं ताकि दूसरे भाईयों का शायद कुछ भला हो जाए मेरा तो जो होगा देखा जाएगा बाकि पूरा परिवार साथ में होगा तो पीछे की चिंता भी नहीं रहेगी। एक बात और यदि सैलेरी के लिए पैसे कम हो तो कर्मचारियों से कह देना वो शायद चंदा इकठा करके आपके ऐशो आराम की जिंदगी जीन का प्रबंध कर ही देंगे इतने बुरे भी नहीं है कर्मचारी।
इसके अलावा राजस्थान पत्रिका ने सैलेरी स्लिप भी देना बंद कर दी। क्या यह वही राजस्थान पत्रिका है जिसमें गुलाब कोठारी जी का संपादकीय छपता है। क्या यह वही राजस्थान पत्रिका है जिसके संस्थापक कुलिश जी ने उधार रुपए लेकर अखबार की शुरुआत की। लेकिन कुलिश जी ने कभी कर्मचारियों का बोनस नहीं रोका अब तो सरकार से मिलने वाली सुविधाएं खुद तो ले रहे हैं लेकिन कर्मचारियों को मिलने वाली सुविधाएं रोकने का प्रयास किया जा रहा है। यह सत्य भी कि यदि कुलिश जी उधार के पैसे से अखबार चला सकते हैं कर्मचारी उधार रुपए लेकर क्या अपना जीवन निर्वाह नहीं कर सकते क्योंकि सबको पता है कि पत्रिका के कर्मचारी को दिया उधार वो चुकाएगा कैसे।
यहां एक बात का ओर उल्लेख करना चाहता हूं कि वितरण विभाग में जो टैक्सियों का पेमेंट होता है उसमें टेक्सियों का बिल तो ज्यादा बनता है लेकिन उनके चैक को पत्रिका के वितरण विभाग के कर्मचारी साथ जाकर कैश करवाते हैं व उसमें से लगभग दो रुपये प्रति किलोमीटर का पैसा गुलाब जी के घर पहुंचता है जो हर ब्रांच से कम से कम 10 लाख बनता है। ये है इनकी सच्चाई।
एक पत्रिका कर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
surma bhopali
February 9, 2015 at 9:51 pm
सुरमा भोपाली (February 09, 2015) :
मजीठिया के बहाने उदयपुर में गद्दारो का पर्दाफाश हो गया। एक अपराध देखने वाला और दूसरा खुद के संपादक बन्ने का सपना देखनेवाला जमीन घोटालेबाज सिर्फ इस खातिर कोर्ट नहीं गया क्योको ऐसा करने से कमाई के सब रस्ते बंद पड़ जाते। अब ये गद्दार मालिको के खबरी बन गए है। पल पल की खबर उस काले बाबा को परोसते है जो मालिको के रोज मजीठिया लाल तेल की मालिश करता है। सुनने में आया हे की दोनों पत्रकार ने अपने आलिशान मकान खड़े कर लिए है। मार्किट में लोग पूछते है की इनके पास इतना माल कहा से आया। इन्होंने ही नगर विकास न्यास में सेटिंग कर करा कर अख़बार को 20 प्लॉटों में पटनेर्शिप, 8 कॉम्पलेक्सों में फ्लेट,11 मार्बल माइंस में निवेश करवाया। एक भूतपुर्व जी ऍम और राजसमन्द में ब्यूरो प्रमुख से कार सेवा करवाने वाला संपादक भी मिला हुआ है। सबसे खास बात ये की इनमे से एक ने धर्म विषेश के कर्मचारियों को लामबंद करके मजीठिया के लिए कोर्ट जाने से रोका। सुनने में आ रहा है कि सेठ ने पुराने adhikari ko मोटी रकम देकर भेज था यह कम्युनल कार्ड खेलने के लिए।
abhiyan chalayein
February 9, 2015 at 10:30 pm
Kyon na sabhi newspaper mein strike ki jaye.
Ek saath. Sabhi akhbaron mein.
Phir akhbar malik hi nahin, puri duniya sunegi. Wo bhi gaur se.
Bhadas din tay kare. Sabhi mediakarmi saath dein…
Pathkon ko nuksan hoga, lekin wo electronic media aur social media ki khbron se kaam chala lenge.
सुधीर, भोपाल
February 9, 2015 at 10:46 pm
राजस्थान पत्रिका में मजीठिया नहीं देने और कर्मचारियों खासतौर पर संपादकीय कर्मचारियों की दुर्गति के लिए भुवनेश, गोविन्द और हरीश की तिकड़ी जिम्मेदार है। तीनो ने कभी भी पत्रिका के मेधावी लोगो को आगे नहीं आने दिया। तीनो एकाधिक बार पत्रिका को लात मार कर जा चुके है, पिछले कुछ वर्षों से सिवाय बकलोली के कोई काम नहीं करते है। इनके लेख और कई कई किलोमीटर लंबी टिप्पणियॉ पढ़कर कई कई दिनों तक हंसी नहीं रूकती। मैंने तो मॉर्निंग wakers को गुलाबी,भुवनि,चतुर और पाराशरी ठहाके लगते देखा है।
ऊपर से ये विभिन्न संस्करणों में मेल भेज कर रिपोर्ट मंगवाते है कि उनकी दो कोडी की टिपण्णी छपी भी की नहीं। कई बार सर्वाजनिक मंचो पर इन्हें गुल्लू उर्फ़ गुलगुले के पाँव छुते देखा गया है। कहने का मर्म ये है कि दिल दुखता है,मन खट्टा हो जाता है,इन जैसे नालायको और नाकाबिल लोगो के राज में काम करते हुए। मालिक की tokaloji में मदमस्त इन अड़ियल टट्टुओं को क्या पता कि हमने अपना पेट काट कर,बच्चों की गुल्लक का,बीवी की बून्द बून्द कर जमा की गयी बचत का पैसा मजीठिया का केस करने में लगाया है। हम तुम्हारे अपने ही भाई थे जिन्का खून तुमने सालो तक पत्रिका परिवार का ढोंगी राग अलापते हुए चूस लिया। तुम ऎसी में दिन रात सेठ के झंडू बाम लगाने और डाबर लाल तेल की मालिश में लगे रहे,,,हम हक़ के लिए जार जार रोते रहे। अब हर आसु कीमत मांग रहा है।
तुलसी हाय गरीब की
कबहु न निष्फल जाय
मरे बैल की चाम सु
लोह भसम होइ जाय।
आज सेठ की….में घुसकर बेठे हो और अपने साथियो की पैरवी नहीं कर रहे हो,,,,आनेवाला कल तुम्हे कभी माफ़ नहीं करेगा। ये इस गरीब,उसके बूढ़े-बीमार माँ बाप और आर्थिक रूप से लाचार बच्चों का शाप हे की तुम् तीनो कभी सुखी नहीं रह पाओगे।
alka
February 10, 2015 at 11:34 am
Tokumal San jagah milte hain. Raise logon KO too itna jalil Karo ki inke baccho KO bhi pata chal jaaye ki inki kya auokaat hai.