Avinash Chanchal : फ्री गैस दे दिया, फ्री टॉयलेट दे दिया, फ्री टिकट दे दिया। पहले तो ये फ्री-फ्री का रट लगाना बंद करो। सरकार की कोई भी योजना/सब्सिडी/वेलफेयर फ्री या मुफ्त नहीं होती। वो हमारे-आपके पैसे से ही हमको मिलती है। तो कायदे से वो मुफ्तखोरी नहीं हमारा आपका अधिकार है। और ये जो देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान की बात कर रहे हो न, तो भाई नुकसान तो हजारों करोड़ रुपये पूंजीपतियों को कर्ज देने और उसे माफ कर देने में भी है। वो भी हमारी मेहनत का ही पैसा है, जिसे अंबानी-अडानी को दिया जा रहा है।
बाकी ये बताओ, कि महिलाओं को टिकट में पैसे नहीं देने की योजना में अगर 700 से 800 करोड़ रुपये लग रहे हैं तो तुम्हें देश की अर्थव्यवस्था की चिंता हो रही है और यही 3000 करोड़ की मूर्ति बना देने पर या फिर हजारों करोड़ रुपये के विज्ञापन पर सरकार पैसा खर्च कर दे तो उससे देश का विकास होने लगता है। ये कौन सा गणित है भाई?
और ये जो मर्द लोग अचानक से बराबरी का रोना शुरू कर दिये हैं…भाई आपको कभी मेट्रो से उतरकर चिंता होती है शेयर ऑटो या कैब लेने में? महिलाओं को होती है और वो चिंता या घबराहट हम मर्दों की वजह से ही होती है। जहां हम दस रुपये खर्च कर पहुंच जाते हैं वहां पहुंचने के लिये उनको 50-100 रुपये एक्स्ट्रा खर्च करनी पड़ती है।
तो पहले बराबरी का रोना बंद करो। समाज में, खुद में बराबरी की प्रैक्टिस शुरू करो, फिर करना ढ़ोग बराबरी का। और जबतक वो नहीं हो जाता, ऐसी योजनाओं जरुरी हैं। और जो महिलाएँ जेंडर जस्टिस की बात करते हुए कह रही हैं कि उनको नहीं जरुरत है इस भीख की। तो आप अपने लिये बोलिये सिर्फ। आपके पास पैसे हैं, आप प्रिविलेज्ड हैं। लेकिन आप ही सिर्फ महिलाएँ नहीं हैं।
इस शहर में आपसे ज्यादा संख्या उन महिलाओं की हैं, जो कामगार हैं, मजदूर हैं और गरीब परिवार से आती हैं। वे काम पे जाने के लिये मेट्रो का किराया अफोर्ड नहीं कर पाती, उनकी बच्चियां मेट्रो किराया नहीं होने की वजह से अच्छे कॉलेज में या कहिये तो कॉलेज में ही जा नहीं पाती हैं।
वो भी जाने दीजिए, मेरी कई दोस्त हैं, जिन्हें काम के बदले मिनिमम वेज तक नहीं मिलता। उनके महीने के बजट का बड़ा हिस्सा मेट्रो-कैब के किराये में चला जाता है। उनका सेविंग नहीं हो पाता। और इसमें उनका महिला होना बड़ा रोल प्ले करता है। और भाई कसम से, यही योजना अगर मोदी लाते तो उनको कितना बड़ा क्रान्तिकारी घोषित करते तुम्ही लोग। गैस सिलेंडर और टॉयलेट तो बड़ा क्रांतिकारी योजना है न तुम लोग के लिये। लेकिन केजरीवाल ला रहा है तो वो तो चुतिया है, उसका तो विरोध होना ही चाहिए।
बाकी जिनको लगता है वो सब्सिडी छोड़ भी सकती हैं। मेरी कई दोस्त हैं जिन्होंने कहा है नहीं लेंगी, कई हैं जिन्होंने कहा लेंगी और कई हैं जो अब चाय की जगह थोड़ा जूस भी पिला सकेंगी। तो मैं तो खुश हूं। आप अपना देख लो।
आईआईएमसी से मीडिया की पढ़ाई कर चुके सोशल एक्टिविस्ट अविनाश चंचल की एफबी वॉल से.
Shambhu chudhary
June 7, 2019 at 9:58 pm
Great article