Sanjay Tiwari : इंटरनेट पर आजादी की दुहाई के दिन फिर से लौट आये हैं। फेसबुक अगर नयी तैयारी से मुफ्त सेवा देने के लिए कमर कसकर दोबारा लौटा है तो उसी फेसबुक पर उसकी इस मुफ्त सेवा का मुखर विरोध भी शुरू हो गया है। अच्छा है। जनता के हक हित और आजादी की मांग तो होनी ही चाहिए लेकिन आजादी की यह दुहाई थोड़ी बचकानी है। जिन दिनों फेसबुक मैदान में उतरा ही था उन दिनों भी कहा गया था कि यह प्राइवेसी में बहुत बड़ी सेंध लग रही है। लेकिन सेंध क्या? फेसबुक ने तो पूरा पनारा ही खोल दिया। क्या हुआ प्राइवेसी का? यह जानते हुए कि आपकी प्राइवेसी को सचमुच खतरा है फिर भी क्या बिना फेसबुक एकाउण्ट बनाये रह सकते हैं आप?
और फेसबुक तो बहुत बाद में आता है। उसके पहले आता है वह प्लेटफार्म जहां खड़े होकर आप फेसबुक ट्विटर का तामझाम फैलाते हैं। एन्डरॉयड। जो कि दुनिया के अस्सी फीसदी से ज्यादा स्मार्टफोन एन्डरॉयड पर चल रहे हैं। आपको मुफ्त सेवा देनेवाली गूगल बदले में आपसे कहां कहां से क्या क्या ले रही है, कभी ख्याल आया क्या? कभी आपने सोचा कि गूगल ने सर्च इंजन के बाद सबसे ज्यादा पैसा एण्डरॉयड के विकास पर ही क्यों खर्च किया?
यह मार्केट इकोनॉमी है साहब और यहां कुछ भी मुफ्त नहीं होता। न तो वालस्ट्रीट में बैठे पूंजीपति मूर्ख हैं और न ही सिलिकॉन वैली में मंहगी पगार लेनेवाले कोई जनक्रांति कर रहे हैं। क्या गूगल, क्या माइक्रोसॉफ्ट और क्या फेसबुक। आप सबके लिए मोहरे हैं। वे जैसा चाहेंगे चाल चलेंगे और आपको उन्हीं की मर्जी के मुताबिक अपनी आजादी की सीमारेखा भी तय करनी पड़ेगी। पिंजरे में बंद तोता पिंजरे में कितनी उछलकूद करके टांय टांय कर ले, उछलकूद करने से वह आजाद नहीं हो जाता। उसे खाने के लिए एक लाल मिर्ची मिल जाती है। बस।
वरिष्ठ वेब जर्नलिस्ट संजय तिवारी के फेसबुक वॉल से.