Connect with us

Hi, what are you looking for?

वेब-सिनेमा

पैसे वाली पत्रकार हैं बरखा दत्त, फेसबुक लाइक तक खरीद लेती हैं!

Yashwant Singh : बरखा दत्त इन दिनों फेसबुक पर खूब सक्रिय हो गई हैं. उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर इस बाबत लिखा भी है. साथ ही कई कहानियां किस्से विचार शेयर करना शुरू कर दिया है. बरखा समेत ज्यादातर अंग्रेजी पत्रकारों की प्रिय जगह ट्विटर है. लेकिन सेलेब्रिटी या बड़ा आदमी होने का जो नशा होता है, वह फेसबुक पर भी ले आता है, यह जताने दिखाने बताने के लिए यहां भी मेरे कम प्रशंसक, फैन, फालोअर, लाइकर नहीं हैं. सो, इसी क्रम में अब ताजा ताजा बरखा दत्त फेसबुक पर अवतरित हुई हैं और अपने पेज पर लाइक बढ़ाने के लिए फेसबुक को बाकायदा पैसा दिया है. यही कारण है कि आजकल फेसबुक यूज करने वाले भारतीयों को बरखा दत्त का पेज बिना लाइक किए दिख रहा है. पेज पर Barkha Dutt नाम के ठीक नीचे Sponsored लिखा है.

Yashwant Singh : बरखा दत्त इन दिनों फेसबुक पर खूब सक्रिय हो गई हैं. उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर इस बाबत लिखा भी है. साथ ही कई कहानियां किस्से विचार शेयर करना शुरू कर दिया है. बरखा समेत ज्यादातर अंग्रेजी पत्रकारों की प्रिय जगह ट्विटर है. लेकिन सेलेब्रिटी या बड़ा आदमी होने का जो नशा होता है, वह फेसबुक पर भी ले आता है, यह जताने दिखाने बताने के लिए यहां भी मेरे कम प्रशंसक, फैन, फालोअर, लाइकर नहीं हैं. सो, इसी क्रम में अब ताजा ताजा बरखा दत्त फेसबुक पर अवतरित हुई हैं और अपने पेज पर लाइक बढ़ाने के लिए फेसबुक को बाकायदा पैसा दिया है. यही कारण है कि आजकल फेसबुक यूज करने वाले भारतीयों को बरखा दत्त का पेज बिना लाइक किए दिख रहा है. पेज पर Barkha Dutt नाम के ठीक नीचे Sponsored लिखा है.

इस Sponsored लिखे होने का मतलब हमको आपको सबको पता है. फेसबुक को पैसा देकर उसके जरिए जबरन पेज लाइक कराया जाना. सो, लगभग एक लाख लाइक के करीब पहुंचने वाला है बरखा का पेज. 84 हजार से ज्यादा लाइक तो उपरोक्त स्क्रीनशाट में दिख रहा है. अब जब आप ये पढ़ रहे होंगे, हो सकता है लाइक का आंकड़ा काफी आगे निकल गया होगा. अब ये नहीं पता मुझे कि उन्होंने पांच लाख लाइक खरीदने के लिए फेसबुक को पैसा दिया है या सिर्फ दो चार लाख. जो भी हो. हम हिंदी वाले तो इतने पैसे में कई दिन सुकून से खा पी सकते थे, घूमघाम सकते थे, घर परिवार को घुमा सकते थे. छुट्टी लेकर अपने ओरीजनल घर-गांव-देहात जा सकते थे क्योंकि हम हिंदी वाले थोड़ा कम कमाते हैं, इसलिए थोड़ा कम खर्च कर पाते हैं. कम ही हिंदी वाले होंगे जो फेसबुक पेज पर लाइक खरीदते होंगे, हां- दलालों, मालिकों, लायजनरों आदि इत्यादि की आधुनिक कैटगरी को छोड़कर.

Advertisement. Scroll to continue reading.

फेसबुक पर कुछ रोज पहले अपनी सक्रियता बढ़ाने के दौरान बरखा की लिखी गई वो शुरुआती पोस्ट जिसे फेसबुक को पैसा देकर Sponsored करवाने के बाद लाइक हासिल करने हेतु एफबी के जन-जन तक घुमवाया, ये है: ”प्रभा दत्त (बरखा दत्त की मां) के युद्ध मोर्चे पर रिपोर्टिंग हेतु जाने के अनुरोध को एचटी प्रबंधन ने ठुकरा दिया था”

फिलहाल अभी तक मैंने बरखा दत्त का फेसबुक पेज लाइक नहीं किया है जबकि पिछले कई रोज से फेसबुक बार बार मेरे आगे इस प्रायोजित विज्ञापन को मौलिक तरीके से पेश कर लाइक करने के लिए लपलपाते हुए ललचा रहा है. अगर ये पेज स्पांसर्ड न होता तो शायद मैं लाइक कर लेता, लेकिन खरीदे हुए या बिके हुए, जो कह लीजिए, पेज को लाइक देने का मतलब होता है कि आप फेसबुक की दुकान को पैसा देकर भारतीय मुद्रा को विदेश तो भेज ही रहे हैं, फर्जी तरीके से खुद को नामवर बताने जताने दिखाने के ट्रेंड को भी बढ़ावा दे रहे हैं.

Advertisement. Scroll to continue reading.

वैसे बहुत सारे हिंदी पट्टी वाले कह सकते हैं कि पैसा बरखा दत्त ने इमानदारी से कमाया है, उसे चाहे वो लाइक खरीदने में खर्च करें या घर में रखकर माचिस मारकर जला दें, आपको जलन कुढ़न खुजन क्यों है? तो भइया, मेरा जवाब भी सुनते जाइए. बरखा दत्त अगर कोई कंपनी होतीं, किसी कंपनी की मालिकन होतीं, कोई कारपोरेट होतीं, कोई पीआर एजेंसी होतीं, कोई प्रोडक्ट होतीं तो उनके प्रचार प्रसार पर मुझे कोई आपत्ति न होती. फेसबुक पर साड़ियों से लेकर योगासन तक के खूब स्पांसर्ड पेज टहलते रहते हैं और हम आप सब जाने-अनजाने उसे लाइक मारकर फेसबुक वाले से लेकर उसके क्लाइंट तक को खुश किया करते हैं.

पर जब कोई पत्रकार ऐसा करता है तो उससे यह अपेक्षा नहीं की जाती. कल को कोई जज साहब लाइक खरीदने लगें तो फिर हो गया काम. जिन चार स्तंभों की हम बात करते हैं, उसमें से प्रत्येक की गरिमा होती है. विशेषकर मीडिया तो ज्यादा जिम्मेदारी वाला या यूं कहिए ज्यादा जनता के करीब खंभा होता है. पर अगर इसी खंभे के लोग कारपोरेट सरीखा व्यवहार करने लगे तो रिलायंस के कस्टमर केयर एक्जीक्यूटिव और हमारे पत्रकारों के बीच फर्क क्या बचेगा. अंतत: जब दोनों का मकसद अपना हित साधन है, अपने कंपनियों का हित साधन है, तो काहे को एक खुद को चौथा खंभा माने और दूसरा देश का कारपोरेट घराना. सोचिए सोचिए. वइसे, पइसा प्रधान इस दौर में सोचने विचारने लिखने का काम भी आजकल पैसे ले देकर ही होते हैं, ऐसे में अगर आप नहीं सोचते हैं तो हम बुरा बिलकुल नहीं मानेंगे. 🙂   

Advertisement. Scroll to continue reading.

भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से. संपर्क: [email protected]


उपरोक्त पोस्ट पर बरखा दत्त ने अपनी तरफ से ट्वीटर पर सफाई दी / जवाब दिया. इस प्रकरण से संबंधित उनके सारे ट्वीट और उनकी सफाई का भड़ास4मीडिया पर प्रमुखता से प्रकाशन किया गया है जिसे आप नीचे दिए गए शीर्षक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं:

Advertisement. Scroll to continue reading.

फेसबुक अपनी तरफ से कर रहा मेरा प्रचार, मैंने एक पैसा खर्च नहीं किया : बरखा दत्त

1 Comment

1 Comment

  1. पंकज झा

    September 6, 2015 at 2:22 pm

    बिलकुल सहमत. सौ फीसदी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement