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internet.org मुहिम के पार्टनर हैं बीबीसी, टीओआई और आईबीएन

Dilip Khan : अगर बीबीसी, टाइम्स ऑफ इंडिया या IBN पर आप internet.org के पक्ष में ख़बर पढ़ते हैं तो राय बनाने से पहले एक बात का ध्यान रखिएगा। ये तीनों इस मुहिम के पार्टनर हैं। रिलायंस सर्विस प्रोवाइडर है। फेसबुक संस्थापक है। ज़करबर्ग ने तिरंगे से आपको प्रोफाइल पिक्चर रंगने का ऑप्शन दिया तो बिना सोचे रंग लिए क्या? तिरंगे की यूएसपी ठीक-ठाक है, फेसबुक ये जानता है। इंटरनेट डॉट ओआरजी को तीसरी दुनिया के मुल्कों में ही उतारने की कोशिश हो रही है। डिजिटल इंडिया और तिरंगे की पीठ पर सवार होकर आने से आप जल्दी मान जा रहे हैं तो इससे आसान रास्ता ज़करबर्ग के लिए और क्या होगा?

Dilip Khan : अगर बीबीसी, टाइम्स ऑफ इंडिया या IBN पर आप internet.org के पक्ष में ख़बर पढ़ते हैं तो राय बनाने से पहले एक बात का ध्यान रखिएगा। ये तीनों इस मुहिम के पार्टनर हैं। रिलायंस सर्विस प्रोवाइडर है। फेसबुक संस्थापक है। ज़करबर्ग ने तिरंगे से आपको प्रोफाइल पिक्चर रंगने का ऑप्शन दिया तो बिना सोचे रंग लिए क्या? तिरंगे की यूएसपी ठीक-ठाक है, फेसबुक ये जानता है। इंटरनेट डॉट ओआरजी को तीसरी दुनिया के मुल्कों में ही उतारने की कोशिश हो रही है। डिजिटल इंडिया और तिरंगे की पीठ पर सवार होकर आने से आप जल्दी मान जा रहे हैं तो इससे आसान रास्ता ज़करबर्ग के लिए और क्या होगा?

इंटरनेट डाट ओआरजी के पक्ष में huffpost पर भी स्टोरी छपी है. दरअसल Huffington Post ने कब का टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ टाइ-अप कर लिया है. पार्टनर है हफिंगटन और टाइम्स ऑफ इंडिया. इसलिए हफपोस्ट भी अभियान का पार्टनर जैसा ही है. डिजिटल इंडिया में फेसबुक की रुचि इंटरनेट डॉट ओआरजी मुहिम के चलते है। सारे विकासशील देशों में वो इसे लागू करना चाहते हैं।

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राज्यसभा टीवी के पत्रकार दिलीप खान के फेसबुक वॉल से.


इस मामले पर मुंबई की लॉ की छात्रा Bindiya Saheba Khan ने अपने फेसबुक वॉल पर एक पठनीय स्टेटस डाला है, जो यूं है:

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”आपको याद होगा कि कुछ महीनों पहले इसी फेसबुक के इंटरनेट डॉट ओआरजी को लेकर भारत में काफी विवाद खड़ा हुआ था. तकनीकी जानकार इसे देश में नेट न्यूट्रैलिटी के नियमों की अनदेखी बताते हैं. इसे ऐसे समझिए कि जब फेसबुक जैसी बड़ी कंपनी अपने विस्तृत प्लेटफॉर्म पर कुछ चुनी हुई कंपनियों के उत्पाद को अपने अरबों यूजरों तक पहुंचाएगी, तब छोटे लेकिन महत्वपूर्ण इनोवेटर्स के लिए बिना खर्च किए अपने उत्पाद लोगों तक पहुंचाना एक और भी बड़ा दु:स्वप्न बन जाएगा. मोदी के दौरे से कुछ ही दिन पहले चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी अमेरिका के टूर पर थे. उनसे भी इन सारी बड़ी कंपनियों के प्रमुख ऐसे ही मिले थे. जाहिर है इन कंपनियों को चीन का बड़ा बाजार भी चाहिए लेकिन चीन का रवैया बहुत अलग रहा. हमारे पड़ोसी और चिर प्रतिद्वंद्वी चीन ने फेसबुक को तो अपने देश में कदम तक नहीं रखने दिया है और अपनी खुद की सोशल नेटवर्किंग साइट वाइबो इस्तेमाल करता है. चीन ने दूसरी कंपनियों के लिए भी अपने नियमों में ढील नहीं बल्कि कड़ाई करने की ही बात की.”

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