मुंबई : पूर्व सेना प्रमुख जनरल अरूण कुमार वैद्य की हत्या पर बनी फिल्म द मास्टरमाइंड-जिंदा सुखा से जुड़ा विवाद अभी ठंडा नहीं हुआ है। सेंसर बोर्ड ने स्क्रीनिंग कमेटी के चार सदस्यों को हटा दिया है। इन चारों सदस्यों पर फिल्म को यूए सर्टिफिकेट दिलाने में लापरवाही बरतने का आरोप है। हालांकि, स्क्रीनिंग कमेटी का नेतृत्व करने वाली सेंसर बोर्ड की महिला अधिकारी के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया गया है जिससे स्क्रीनिंग कमेटी के ये सदस्य नाराज हैं।
पंजाबी भाषा में बनी इस फिल्म में जनरल वैद्य के हत्यारों हरजिंदर सिंह जिंदा और सुखदेव सिंह सुखा को महिमामंडित किया गया है। बावजूद इसके स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यों की सिफारिश पर फिल्म को प्रदर्शन के लिए जुलाई में यूए सर्टिफिकेट दे दिया गया था। लेकिन फिल्म का विरोध होने के कारण केंद्रीय गृह मंत्रालय की शिकायत पर फिल्म का सर्टिफिकेट रद्द करते हुए इसके प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने फिल्म के रोक के साथ-साथ स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यों पर मोहन सिंह सैनी, प्रेमरतन शर्मा, रेनु खानोलकर और गुरप्रीत कौर पर नजर टेढी कर दी है। सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी के मुताबिक इन चारों सदस्यों को हटा दिया गया है। इधर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की कार्रवाई पर प्रतिक्रिया देते हुए स्क्रीनिंग कमेटी के एक सदस्य ने कहा कि उन्हें बलि का बकरा बनाया गया है। नियमानुसार स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यों के एकमत होने के बावजूद सेंसर बोर्ड के अधिकारी उस पर आपत्ति जता सकते हैं। लेकिन इस फिल्म के मामले में महिला अधिकारी की भूमिका पर स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य ने संदेह जताया है। इस मामले में संेसर बोर्ड के अध्यक्ष का कहना है कि जब कमेटी के सदस्यों की एक राय होगी तो अधिकारी क्या कर सकता है।