मेरे नाम से समय समय पर सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाया जाते रहता है। इस मुल्क की संस्थाएँ इतनी फटीचर हो चुकी है आप उनसे संपर्क भी नहीं कर सकते कि कौन फैला रहा है और उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी चाहिए। ट्वीटर और फेसबुक पर नकली आईडी से मेरे नाम का इस्तमाल किया जा रहा है। तस्वीर लगाकर मेरे नाम से अनाप शनाप बातें कही जा रही है। ऑनलाइन दुनिया के गुंडाराज से किसे दिक्कत नहीं हो रही है? क्या ये वही हैं जिन्हें जंगलराज से दिक्कत हो रही है? ये कैसा घटिया समाज है जो मुझे अकेला छोड़ इस गुंडागर्दी को सह रहा है। मैं गिन रहा हूँ। देख रहा हूँ।
लोग इतने मूर्ख और बदहवास हो चुके हैं कि इसे आगे भी बढ़ाते हैं और हिंसक टिप्पणियाँ भी करते हैं। इससे पहले याकूब की फाँसी के समय चलाया गया कि मैंने माफी की याचिका पर साइन किया था। तब मूर्खों को सफाई देते देते थक गया कि इस पर मेरा साइन नहीं है। पूरी लिस्ट फ़र्ज़ी है। अब वही मूर्ख एक और पोस्ट फार्वर्ड कर रहे हैं। इसमें गौ माँस से संबंधित कुछ बात लिखी है। सोशल मीडिया पर मेरे नक़ली ट्वीट के ज़रिये इसे फैलाया जा रहा है। इस पर लिखा है कि मेरी पत्रकारिता पर थूकना चाहिए। मैं देख रहा हूँ लोग दंगाइयों पर थूकने की बात नहीं लिखते। दंगाइयों को गले लगाने के लिए तरह तरह की दलीलें खोज रहे हैं। लोग हत्यारों जातिवादियों पर नहीं थूक रहे हैं। मुझपर थूकने की पोस्ट पर टिप्पणी कर रहे हैं। वाह रे जागरूक लोग। देख रहा हूँ उन लोगों को भी जो ऐसी राजनीतिक तंत्र का समर्थन कर रहे हैं। बुज़दिल समाज निर्लज्जता को धर्म और हिंसा की दलीलों से ढंकता है।
अगर आप अपनी आँख न भी फोड़ें तो देख सकते हैं कि इस आईडी में रवीश ग़लत तरीके से लिखा है। वैसे मैंने ट्वीटर पर कई दिनों से लिखना छोड़ दिया है। मेरा आईडी है @ravishndtv लेकिन बेहद चतुराई से @ravihsndtv तो कभी @raviishndtv की आईडी से अफवाह फैलाते हैं। फोटोशाप के ज़रिये भी मेरे नाम से अफ़वाहें फैलाई जा रही हैं। फालतू और बेहूदे किस्म के लोग इस पर यक़ीन कर रहे हैं और मेरे बारे में अनाप शनाप लिख रहे हैं। मैंने अभी फेसबुक का खाता भी बंद कर दिया है। वहाँ भी नक़ली पेज बन रहे हैं। मेरा नाम लेकर सामाजिक तनाव भड़काने का षड्यंत्र हो रहा है। इन्हें पता है कि बहुत से लोग मूर्ख हैं और बेहूदे भी इसलिए उनकी बातों में आ जायेंगे। ऐसा मत होने दीजिये।
अगर हिन्दुत्व की इतनी पहरेदारी करनी है तो मेरे नाम से अफ़वाहें फैलाने की कोई जरूरत नहीं है। ये फैलाइये कि कितने लोगों को नौकरी मिल गई है। कितनों को मिलने वाली है। कितनों को रेल यात्रा के दौरान टिकट मिलने लगे हैं। कितने स्कूलों को विश्व स्तरीय बनाया जा चुका है। कितने अस्पतालों में राम राज्य आ चुका है। कोई भी हिन्दू हिन्दू होने के बाद भी ये सब तो चाहेगा ही लेकिन बात क्या है कि इन सब बातों की चर्चा नहीं हो रही। गौमांस को लेकर मेरे नाम से अफवाह फैलाने वाले कौन लोग हैं जो यह सब कर रहे हैं। कितनी बार सफाई दूँगा। कहाँ तक दूँगा। यह एक तंत्र है। जो आपको वहशी भीड़ में बदल रहा है। मैं देख रहा हूँ कि आप भीड़ बन रहे हैं।
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सभी मुद्दे वे मुद्दे हैं जिन पर रवीश कुमार को बोलना चाहिए या प्राइम टाइम में चर्चा करनी चाहिए। सभी बोल भी लें लेकिन सभी मुद्दों पर सभी का बोलना तभी माना जाएगा जब रवीश कुमार बोलेंगे या प्राइम टाइम में चर्चा करेंगे । जैसे जब प्राइम टाइम और फेसबुक नहीं था उस टाइम के भी सभी मुद्दों का हिसाब कुछ लोग रवीश कुमार से लेते हैं । तब तो आप नहीं बोलते थे । मेरी बोलती बंद हो जाती है । मैं कैसे कहूँ कि तब भी मैं हज़ारों अखबारों में छपे सभी मुद्दों को नहीं पढ़ पाता था। मैंने प्रयास किया था कि सभी मुद्दों और विषयों को पढ़ा जाए लेकिन दाँत चियार दिया । काश ऐसा कर पाता तो कम से कम भारत में हज़ारों अखबारों और चैनलों की जरूरत न होती । अकेला रवीश कुमार सभी मुद्दों को बोल देता और राम की तरह तमाम पत्थरों को छूता हुआ अहिल्या बनाता चलता। सभी मुद्दे हल होकर लहलहा रहे होते। मुझसे सभी मुद्दों का हिसाब करने वालों के बाप दादा और नाना भी मिल जायें तो भी सभी मुद्दों को पढ़ नहीं पायेंगे । सोच नहीं पायेंगे और बोल नहीं पायेंगे।
हर दिन बड़ी संख्या में लोग इनबाक्स से लेकर कमेंट बाक्स में सभी मुद्दों की कसौटी पर मुझे कसते हैं। अखबारों में छपी ख़बरों का लिंक भेज देते हैं कि इस पर चर्चा करके दिखाओ। जो कर रहा हूँ कि जगह लोग लिंक भेज देते हैं कि क्या बात है इस पर चर्चा नहीं कर रहे। जो मुद्दा जिसके ज़हन में है वो उसी की मांग करता है। कुछ तो ऐसे होते हैं कि पढ़ते ही लगता है कि सामने होता तो कस के गुदगुदी कर देता । कई बार हम सभी मुद्दों पर स्टेटस नहीं लिख पाते क्योंकि उस पर सभी लिख चुके होते हैं। तो लाइक मार कर आँखें मार लेता हूं। कई बार चैनल में कोई किसी मुद्दे पर चर्चा कर देता है तो छोड़ देता हूँ। फिर भी लोग पूछते हैं कि आप क्यों चुप हैं। आप तो दलाल हैं। इस देश में एक पार्टी की तारीफ करते हुए आप लिखते रहें कोई दलाल नहीं कहेगा क्योंकि उस पार्टी के समर्थकों ने अपनी पार्टी की आलोचना करने वालों को दलाल बताने का ठेका ले रखा है। उस पार्टी की बेशर्मी से कई पत्रकार स्तँभकार चाटुकारिता कर रहे हैं कभी मैंने उनकी मरम्मत होते नहीं देखा। कोई उन्हें लेकर पत्रकारिता का संकट नहीं देखता। वहाँ तो देशभक्ति का साबुन रखा है कहीं से आइये और नहाकर देशभक्त बन जाइये।
2013 के साल तक किसी ने दलाल, चाटुकार नहीं कहा। यह सब एक रणनीति के तहत हुआ। पत्रकारों को चुन कर एक नेता के विरोधी के रूप में पहचान की गई। दस बारह चुन लिये गए। बाकियों को समर्थक मान कर महान मान लिया गया। दस पत्रकारों को विरोधी बताने के लिए गाली देने वाली सेना लगी रही और उसकी आड़ में कई लोग उस नेता के समर्थन में दनादन लिखने लगे। उनके लिए खुला मैदान उपलब्ध करा दिया गया। सोशल मीडिया को भाड़े के लोगों के हाथ में दे दिया गया और वे ट्रेंड कराने के नाम पर साख पर हमला करने लगे। पत्रकारों से तटस्थता की मांग करने वाले इनके ट्वीटर हैंडल पर जाकर देखिये। ये कभी भी ऐसी खबरों को साझा तक नहीं करते जो उनकी पार्टी या नेता के ख़िलाफ जा सकती हो। ये लोग अपनी पार्टी के नेता की आलोचना बर्दाश्त ही नहीं कर सकते। एक ही रणनीति है। जो भी सवाल करे उसे दलाल बता दो। पत्रकार को तो सत्ता का विरोधी होना ही चाहिए। ये तो पत्रकारिता के आदर्श गणेशशंकर विद्यार्थी जी कह गए हैं।
मेरी पत्रकारिता औसत रही होगी लेकिन मैंने कभी दलाली नहीं की। हर दिन ये लोग आकर कभी कांग्रेस का तो कभी आम आदमी पार्टी तो कभी बीएसपी तो कभी सीपीएम का दलाल बताते हैं। इन दलों में भी ज़मीन आसमान का अंतर है। 19 साल बहुत संयम और डर से गुज़ारे कि कहीं कोई दाग न लग जाए। किसी ने कहा कि ज़मीन ले लीजिए। नहीं ली। आज लोग लिख देते हैं कि फलाने नेता से नोएडा में फ्लैट ले लीजिएगा। ऐसा कहने वालों ने अपने दलों से तो नहीं पूछा कि भाई चुनावों के लिए चंदा कहां से आ रहा है क्यों नहीं बताते। ये उन राजनीतिक दलों के भ्रष्टाचार को नहीं देखते। अरे भाई मेहनत की कमाई भी गुनाह है क्या। साल दर साल अपनी मेहनत से मेहनताना हासिल किया है। कुछ भी एक दिन या एक बार में नहीं मिला। पैसे के लिए नौकरियां नहीं बदलीं। किसी से पैसे नहीं लिया। किसी से फेवर नहीं मांगा। रिश्तेदार से लेकर तमाम मित्रों तक का भावनात्मक दबाव आया। इस चक्कर में कई मित्र साथ छोड़ गए कि सिर्फ अपना देखता है। अकेला हो गया। फिर भी लोग आसानी से दलाल कह देते हैं। राजनीति की कुछ धाराएं रणनीति के तहत ये करवा रही हैं। एक अस्पताल के लिए चला जाता हूं कि डाक्टर साहब देख लीजिए, गरीब है या सीरीयस है। उसके अलावा किसी की नौकरी या पोस्टिंग के लिए कभी किसी को फोन नहीं किया।
मेरे मित्र सलाह देते हैं कि क्यों टेंशन लेता हूं। चुप रहना चाहिए। इन्हें बढ़ावा मिलता है। पर इनका हौसला तो चुप रहने से भी बढ़ रहा है। जब भी कोई चुनाव नज़दीक आता है गाली देने वालों की फौज आ जाती है। ये किसकी शह पर हर बात में दलाल बोल आते हैं। मां बहन की गालियां देते हैं। मारने की धमकी देते हैं। कुछ लोग यह लिखने लगते हैं कि कुछ तो आपमें कमी होगी तभी इतने लोग गाली दे रहे हैं। अरे भाई कमी कैसे नहीं होगी। दुनिया की सारी समझ मेरे पास तो नहीं है। लेकिन उसकी आलोचना की जगह हिंसक भाषा से डराने की रणनीति के बारे में तो आप बोलते नहीं। मुझे तो सड़कों पर कोई गाली देते नहीं मिलता। सोशल मीडिया में ही सारे जागरूक भरे हैं क्या। और जो गाली दे रहे हैं उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता की प्रोफाइलिंग क्यों न हो। क्यों न माना जाए कि वे अपने दल या नेता की सदभावना या चाटुकारिता में ऐसी हिंसा कर रहे हैं। लोगों को डरा रहे हैं। लोग डर भी रहे हैं।
मैं इस पर लिखूंगा। कई बार लिखा है और बता रहा हूं। ट्वीटर और फेसबुक पर पांच लाख लोग भी आकर मेरे खिलाफ लिखने लगे तब भी मैं परवाह नहीं करता। सवाल अपनी परवाह का नहीं है। मैं आपकी परवाह करता हूं इसलिए लिख रहा हूं। आप ज़ुबान बंद करने की किसी भी प्रक्रिया का साथ देंगे तो एक दिन आपकी ज़ुबान बंद हो जाएगी। जैसे हर दिन मुझे बीस चिट्ठियां आती हैं। सबमें एक से एक दर्दनाक तकलीफ होती है। सब उसी प्रिय नेता को लिख भी चुके होते हैं जिसके नारे लगाते लगाते उनके गले बैठ गए थे। ऐसे बेआवाज़ लोगों में एक दिन आप भी शामिल होने वाले हैं। इसलिए आपका फर्ज़ है कि आप हमारे बोलने की रक्षा करें। आप नहीं करेंगे तो ये मेरा लोड नहीं है। मुझे कोई चिन्ता नहीं है बोलूं या न बोलूं। एक कमज़ोर और बुज़दिल समाज से मैं ज़्यादा उम्मीद भी नहीं करता। मेरे बारे में राय ही बनानी है तो निकालिये 19 साल की रिपोर्टिंग और एंकरिंग के वीडियो। फिर मूल्यांकन कर बताइये कि किस पार्टी की दलाली की है।
सत्ता की चाटुकारिता करने वाले हर दौर में रहे हैं। अब तो प्रधानमंत्री तक अपनी पसंद के पत्रकार और चैनल चुन कर इंटरव्यू देते हैं। पत्रकारों से हिसाब मांगने वाले यह नहीं पूछते कि डेढ़ साल में खुला प्रेस कांफ्रेंस क्यों नहीं हुआ। रैली के लिए दो घंटे का टाइम है तो क्या चार घंटे की प्रेस कांफ्रेंस नहीं हो सकती। यह भी उनका बनाया नहीं है। उनसे पहले भी यही होता रहा है। प्रधानमंत्री ही नहीं कुछ मुख्यमंत्रियों की भी यही हालत है। किस पार्टी में पत्रकारिता से लोग नहीं गए हैं। इसी की पब्लिक आडिट कर लीजिए। बीजेपी, कांग्रेस, आप, जेडीयू, तृणमूल सबका कीजिए। कई गुंडे लिखते हैं कि मुझे कांग्रेस या नीतीश राज्य सभा भेज देंगे। अरे भाई जिनको कांग्रेस बीजेपी या तृणमूल ने राज्य सभा में भेजा है उनसे तो जाकर हिसाब करो। पहले उनसे पूछो न कि आपने पत्रकारिता को क्यों बेचा। मेरे लिए क्या राज्यसभा वर्जित है। मुझे तो करनी भी नहीं है ये गंदी राजनीति। जिसके भीतर दंगाई, गुंडे और कालाबाज़ारियों को पनाह मिलती हो। चाहे कोई भी दल हो सबके यहां ये कैटगरी हैं। आप पाठक या दर्शक तो उन दलों से दिल लगाए रहते हैं। और मुझे दलाल कहने के लिए सोशल मीडिया पर भीड़ तैनात किया जाता है।
मैं यह बात सफाई में नहीं लिख रहा। वर्ना मूर्खों की कमी नहीं जो कहेंगे कि कुछ तो है कि आप सफाई दे रहे हैं। अब मुझे भी यक़ीन हो चला है कि मैंने देश के सभी मुद्दों के साथ इंसाफ़ नहीं किया। सभी मुद्दे मेरे बिना दम तोड़ रहे हैं। अनाथ हैं। मेरा हर विषय पर बोलना जरूरी है तभी मेरी प्रतिबद्धता साबित होगी। मैंने देश के सभी मुद्दों के साथ जो नाइंसाफी की है उसके लिए माफी माँगता हूँ। प्रायश्चित भी करना चाहता हूँ। अब से ऑनडिमांड, ललकारने या धमकाने पर सभी मुद्दों पर चर्चा नहीं करूंगा। मैं सभी मुद्दों पर खुद को साबित नहीं कर सकता। कई पार्टियों का दलाल तो बता ही दिया गया हूँ फिर भी उन्हीं बताने वालों को मुझी से उम्मीद रहती है कि सभी मुद्दों पर चर्चा कर या स्टेटस लिखकर पत्रकार साबित करूँ।
भाई जब आप दंगाइयों, दलालों, गुंडों, घूसखोरों को लाइन में लगकर वोट देते हैं, उनमें माँ भारती के भविष्य का चेहरा देखते हैं तो आपको क्या सही में लगता है कि दलाल कहे जाने से मैं शर्म से मर जाऊँगा। जितना वायरल करना है ट्रेंड करना है करो। अगर समाज को ऐसे ही बेआवाज़ मरना है तो वो फैसला करे। पत्रकारिता को एक लात में बाहर कर दिया जाने वाला पत्रकार ही नहीं बचायेगा। लोग भी इम्तहान दें। आखिर मेरे सवालों से इतनी घिग्गी क्यों बंध जाती है सबकी। मैं नहीं कहता कि मैं ही सबसे बड़ा ईमानदार हूं। समझौते भी किये हैं। जैसे आप अपनी ज़िंदगी में करते हैं। मुझे दलाल कहने वाले और दलालों को वोट देकर नेता बनाने वाले ठीक ही कहते होंगे। अब मैं भी मान लेता हूं। कब तक कहता रहूंगा कि मैंने किसी की दलाली नहीं की। जनता का यही फैसला है तो मान लेता हूं कि हां मैं दलाल हूं।
उपरोक्त दोनों पोस्ट एनडीटीवी के जाने माने पत्रकार रवीश कुमार के ब्लाग ‘कस्बा‘ से साभार लेकर यहां प्रकाशित किए गए हैं.
Ravi Shankar
September 18, 2015 at 5:39 pm
Sir, aap Ko dalal bolne wala khud dalal hoga.
Sanjeev
September 18, 2015 at 5:44 pm
राजनीती हमेशा से ही अपनी भ्रष्टता की पर्कास्ठा पर रही है पर अंतर यही है की आज विस्तार जायदा मिलता है वो तमाम तो पहले तलवार दे कर निकल दिए जाते थे आज सोशल मीडिया पर तैनात कर दिए गए है और ये अशिक्षित लोग नहीं है बल्कि मूढ़ है |
बिना रीढ़ वाले जो सर पर टिका लगा लेने के बाद खुद को देशभक्त और बाकि को देशद्रोही का प्रमाणपत्र देते घूमते है |
ये खुद को किसी के भक्ति के चरम तक ले जाते है और जब भरम टूटता है तो किसी दुसरे की मूर्ति अपने अंतर्मन में गाड़ना सुरु कर देते है ये वो लोग है जो बिना किसी की भक्ति किये अपना अस्तित्व ही स्वीकार नहीं कर पाते |
RAJ KUMAR
September 19, 2015 at 6:40 am
Mr. Ravis kumar, bahut jaldi apna aapa kho diya, bade secular logo ki jamat ke dhurandhar bane phir te the, congress ke raj me ndtv v uske patrkar bandhu, kisi ko bhi bhagva gunde v kamunal hone ka certificate banth dete the tab aapko dard nahi hota tha, ho sakta h aap dalal nahi ho lekin aap ki reporting ek tarphi rah ti h, kal rat prime time me, aap subhas chandra bose par sawal khade kar dete ho lekin nehru par chhup? dusro par sawal khada karne wale itne jaldi Ashishth ho jaye, Achhi bat nahi h , dusro ko gali dene wale gali khane ki himat rakho
dhanjee
September 20, 2019 at 3:38 pm
ohhh….