हर आरोप जो केजरीवाल पर सुबह टी वी और सोशल मीडिया पर चेपा जाता है शाम होते होते दम तोड़ देता है या बैताल की तरह पुन: उलटकर बीजेपी कांग्रेस पर चिपक जाता है । कल सुबह सुर्ख़ियों में था कि केजरीवाल के मुख्यमंत्री आवास का दो महीने का बिल एक लाख से कुछ ज़्यादा आया है, मामला चटपटा था और प्रथम दृष्टिया “आपियन्स” को बेचैन करने वाला था ।
ख़ैर विधानसभा में बजट सत्र में फँसे होने के बावजूद आप का स्पष्टीकरण आ गया । मुख्यमंत्री आवास में दो अलग कनेक्शन हैं । एक आवासीय और दूसरा कार्यालय के लिये ( जनता/शिकायतियों से भेंट मुलाक़ात के लिये बने हाल समेत)। आवासीय मीटर का एवरेज पन्द्रह हज़ार के आसपास था जो दिल्ली में तीन चार कमरों वाले किसी भी घर का गरमी में आ ही जाता है । बाकी का सारा कार्यालय वाले मीटर का था पर टी वी चैनल अपनी ही रट चलाते रहे ख़ैर ….
शाम तक सूचना आ गई कि देश के वित्त मंत्री की कोठी का बिल इसी अवधि में कोई चार लाख और प्रधानमंत्री का कोई इक्कीस लाख रु आया है । महाराष्ट्र में तो हर महीने किसी भी मंत्री का बिल सवा डेढ़ लाख से कम नहीं है । दिल्ली में एल जी साहब का बिल भी मुख्यमंत्री से ज़्यादा निकला जबकि वे जनता दरबार नहीं लगाते और शीला दीक्षित समेत भूतपूर्व मुख्यमंत्रियों के ख़र्चों से केजरीवाल की कोई तुलना संभव ही नहीं !
प्रधानमंत्री के घर के 21 लाख के बिल की सूचना सोशल मीडिया में फ़्लैश होते ही भक्तगण ग़ायब मोड में निकल गये। किसी भांट टीवी चैनल ने यह comparison नहीं चलाया, न चलाने की हिम्मत है पर सोशल मीडिया पर यह रात में चल पड़ा !
अब जब इंडियन एक्सप्रेस के अंबानी के हाथ बिकने की ख़बर आ रही है सही सूचनाओं के लोगों तक पहुँचने का माध्यम सिर्फ सोशल मीडिया बचेगा, जिस पर भी गिद्धों की आँख लगी है। बहुत चुनौती भरे वक़्त में सत्य की रक्षा का भार सचेतन समाज पर आ रहा है, वह भी तब जबकि जाति, धर्म, निजी स्वार्थ अपराधियों को समाज के ख़िलाफ़ लड़ने वाले भाड़े के सैनिक बड़ी संख्या में मुहैया करा देते हों !
शीतल पी सिंह के एफबी वाल से