आधुनिक युग में सोशल मीडिया को एक अहम स्थान हासिल है। लेकिन निजी, राजनीतिक और धार्मिक लड़ाइयों की जंग भी विभिन्न सोशल मीडिया साइट्स पर शुरू हो गई है जिससे सोशल मीडिया को लोग अब शोषण मीडिया के रूप में भी देखने लगे हैं।
पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला कालेज की एक छात्रा से कथित गैंगरेप बारे जो कुछ भी सोशल मीडिया के जरिए उछाला गया है, उससे यह तो तय हो गया है कि भविष्य में इस तरह की बड़ी अफवाहें देश की शांति भंग कर सकती हैं। हिमाचल प्रदेश इस कोरी अफवाह का दंश झेल चुका है। एक काल्पनिक पात्र के जरिए जिस तरह से धर्मशाला में गैंगरेप और उसके बाद काल्पनिक पीड़िता की मौत की अफवाह सोशल मीडिया पर फैलाई गई है वह प्रदेश के लिए किसी बड़े कलंक से कम नहीं है।
इस काल्पनिक घटना की तुलना दिल्ली के निर्भया कांड से करने वालों की तादाद मात्र 3-4 दिनों में ही सोशल मीडिया पर इतनी हो गई कि उसका लाभ शरारती तत्वों ने खूब लिया। हालांकि पुलिस की जांच के बाद जो कुछ सामने आया, उससे यही लगता है कि यह मामला कहीं न कहीं कांगड़ा जिला के एक बड़े राजनेता की छवि को खराब करने से ही जुड़ा था। इसके पीछे कांगड़ा जिला के ही एक राजनेता के बेटे का हाथ होने की सूचना है।
लेकिन सोशल मीडिया के ऐसे दुरुपयोग से हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला शहर और वहां के प्रतिष्ठित कालेज की देश भर में खूब बदनामी हुई है। पर्यटन सीजन में ऐसी मनगढ़ंत घटना सोशल मीडिया पर वायरल होने का असर वहां के पर्यटन कारोबार पर भी पड़ा है।
गैंगरेप की इस मनगढ़ंत घटना ने कई दिनों तक प्रदेश सरकार, पुलिस, मीडिया, सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों को ऐसे काम पर लगाए रखा जो कि हुआ ही नहीं था। शरारती तत्वों ने हर रोज एक नई अफवाह को सोशल मीडिया पर डालकर भ्रम फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
यहां तक कि आई.जी.एम.सी. शिमला में महीनों पुरानी बस दुर्घटना की एक फोटो जिसमें मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह एक घायल युवती का कुशलक्षेम पूछ रहे हैं, उसे भी शरारती तत्वों ने इस घटना के साथ जोड़ दिया। सोशल मीडिया पर इस फोटो के साथ लिखा गया कि गैंगरेप की पीड़िता ने आई.जी.एम.सी. शिमला में दम तोड़ दिया। हालांकि पुलिस ने सोशल मीडिया पर गैंगरेप की मनगढ़ंत खबर वायरल करने वालों की पहचान कर उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई शुरू कर दी है लेकिन आज सवाल यह है कि अभिव्यक्ति की आजादी के भी कुछ दायरे और एक सीमा होनी चाहिए जिससे कि सोशल मीडिया पर गलत सूचनाएं शेयर करने वालों पर अंकुश लगाया जा सके।
लेकिन यह तभी संभव हो पाएगा जब इस बारे में हमारी विधान पालिका अपने संविधान में जरूरी संशोधन कर आई.टी. एक्ट को मजबूती प्रदान करेगी। धर्मशाला की घटना के बाद सोशल मीडिया पर ही आज यह सबसे बड़ी बहस का विषय बन चुका है क्योंकि शरारती तत्वों ने सोशल मीडिया जैसे बहुउपयोगी औजार को दिशाहीन करने की कोशिश की है।
देश में लोकसभा चुनावों से पहले ही सोशल मीडिया के दुरुपयोग का दौर शुरू हो गया था। तब से लेकर आज तक राजनीतिक दलों से जुड़े लोग सोशल मीडिया पर एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। देश के लिए फख््रा बने कई बड़े राजनेताओं के विषय में आपत्तिजनक सामग्री सोशल मीडिया पर वायरल हुई है। सोशल मीडिया पर कहीं हिन्दुत्व की लड़ाई लड़ी जा रही है तो कहीं मुस्लिम धर्म का प्रचार हो रहा है तो कहीं ईसाई धर्म को दुनिया का श्रेष्ठ धर्म बताने की कोशिश हो रही है परन्तु जो कुछ भी सोशल मीडिया पर दिखाया जा रहा है उनमें से अधिकतर सामग्री का तथ्यों से दूर-दूर तक का भी नाता नहीं है।
भारत के इतिहास को लेकर भी रोजाना कई तरह की पोस्ट सोशल मीडिया पर डाली जा रही हैं जिससे आज की युवा पीढ़ी को भ्रम में डाला जा रहा है क्योंकि सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में हर कोई मोबाइल और कम्प्यूटर की आंख से ही दुनिया को देखने और समझने की कोशिश कर रहा है परन्तु इस पर डाली जा रही जानकारी में कितनी सच्चाई है, इसका पता लगाने की कोशिश बहुत कम लोग कर पाते हैं।
इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि सोशल मीडिया आज के युग का सबसे उपयोगी औजार भी है लेकिन इस औजार का प्रयोग कोई गलत उद्देश्य के लिए न करे, इस विषय में अब चौकस रहने की जरूरत है। हालांकि कांगड़ा पुलिस इस बारे में कानून के सीमित दायरे के बावजूद भी अफवाहें फैलाने का काम सोशल मीडिया के जरिए करने वाले कुछ युवकों के खिलाफ मामले दर्ज कर चुकी है जिसकी कडिय़ां लगातार एक बड़े राजनेता के साथ ही जुड़ती जा रही हैं परन्तु गैंगरेप की अफवाह का समर्थन जिन हजारों लोगों ने सोशल मीडिया पर किया है, वे भी इस घटना का सच सामने आने पर खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। वहीं दिल्ली के निर्भया कांड के साथ इसको जोड़कर सरकार पर हमला बोलने वाले नेता व सामाजिक कार्यकत्र्ताओं का भी सोशल मीडिया के प्रति विश्वास टूटा है।
पंजाब केसरी से साभार
Sudarshi
May 31, 2015 at 11:55 am
ऐसी घटना दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन इससे सोशल मीडिया का दोष नहीं है। यह तो एक प्लेटफार्म है जिसका इस्तेमाल कभी गलत लोग कर लेते हैं। इसे शोषण नहीं कहा जा सकता। सोशल मीडिया आम पाठकों के हाथ में ऐसा हथियार है जिससे वह मीडिया वालों की दादागरी का जवाब दे सकता है। अब लोग सोशल मीडिया पर अपनी बात दमदारी से रख रहे हैं। वह सब कुछ शेयर कर रहे हैं जो हमारा पक्षपाती मीडिया नहीं दिखाता है। वर्तमान में मीडिया कितना पूर्वाग्रह से ग्रस्त है इसे सभी समझ रहे हैं। मीडिया की वह विश्वसनीयता नहीं रही जो कभी हुआ करती थी। लोग पूर्वाग्रस्त लेखन को लोग नकार रहे है।फेसबुक पर ओमथानवी जैसे पत्रकार को लोगों ने गालियां देदे कर कुछ समय के लिये अवकाश लेने पर मजबूर कर दिया। वास आये हैं तो संयत भाषा के साथ। इसलिये पहले आप मीडिया की निष्पक्षता के लिये कुछ कहें उसके बाद ही सोशल मीडिया को कोसें।