आदरणीय यशवंत भाई नमस्कार, लम्बे समय से भड़ास को वाच करता रहा हूँ व काफी सोचने के पश्चात आपको ये पत्र लिखने के लिए अपने आपको मानसिक रूप से तैयार कर पाया हूँ। मैं (संदीप अग्रवाल) समाचार मंत्रा डॉट कॉम पोर्टल चलाता हूँ। डीडीए फ्लैट्स जीटीबी इन्क्लेव में रहता हूँ। काफी लम्बे समय तक प्रिंट मीडिया से भी जुड़ा रहा। दरअसल आजकल जीटीबी इन्क्लेव थानाध्यक्ष व कुछ स्थानीय छुटभैय्ये किस्म के नेताओं का कोप भाजन बना हुआ हूँ जिनकी वजह से एक छोटे से गाड़ी पार्किंग के डिस्प्यूट में मेरे ऊपर एक 61 वर्षीय महिला द्वारा 354 व 27 आर्म्स एक्ट व कुछ अन्य मारपीट की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर मुझे मानसिक, शारीरिक व आर्थिक रूप से परेशान किया जा रहा है व मेरी हत्या की कोशिश तक की जा रही है। मैं विस्तार से इस घटना का जिक्र करना चाहूंगा…
दरअसल मैं फ्लैट संख्या 1347 में रहता हूँ जबकि फ्लैट संख्या 1414 मेरे निकट परिचित पत्रकार का है। यहाँ एक ख़ास बात ये है कि पार्किंग ना होने के कारण सभी रेजिडेंट्स अपनी गाड़िया सड़क पर ही पार्क करते हैं किन्तु 1414 में पार्किंग होने के कारण मैं अपनी गाड़ी उसी पार्किंग में खड़ी करता था। दिनांक 3 जून 2014 को पार्किंग की सफाई के कारण मैंने अपनी गाड़ी कुछ देर के लिए सड़क पर खड़ी कर दी तो पड़ौस में फ्लैट संख्या 1417 रहने वाले डी डी ए कर्मी श्री रघुनाथ झा द्वारा मेरा सरेआम गिरेबान पकड़कर अपने भाई व मिसेज के साथ मिलकर जबरदस्त मारपीट की गयी व मेरी शेव्रोले बीट गाड़ी को पूरी तरह से तोड़ फोड़ दिया गया जिसकी एफआईआर मेरे द्वारा रात्रि 9 : 03 पर दर्ज करा दी गयी। यहाँ ये भी उल्लेखनीय है कि गत वर्ष भी इन सज्जन के द्वारा गाड़ी पार्किंग को लेकर अपने इन्हीं परिजनों के साथ मिलकर मेरे साथ मारपीट की गयी थी जिसकी कंप्लेंट मेरे द्वारा की गयी थी।
3 जून 2014 को मेरी एफआईआर के आधा घंटा बाद थानाध्यक्ष द्वारा डीडीए कर्मी की 61 वर्षीय पत्नी की तरफ से मेरे विरूद्ध 354 सहित अन्य मारपीट की धाराओं में एक पूर्णतया गलत तरीके से मुकदमा दर्ज किया गया। इसमें मेरे द्वारा दिनांक 19 जून को अग्रिम जमानत ले ली गयी। इस दौरान मैं लगातार पुलिस स्टेशन भी अपने कार्य से जाता रहा किन्तु जाँच की बात कहकर मुझे गिरफ्तार करने से इनकार कर दिया गया। एसएचओ का खेल देखिये। अग्रिम जमानत मिलते ही मेरे ऊपर 27 आर्म्स एक्ट लगा दिया गया। यहाँ ये भी ध्यान देने योग्य है कि मेरे पास किसी भी प्रकार का कोई भी वैध या अवैध असलहा या हथियार नहीं है। मेरे द्वारा गिरफ्तारी की बात कहने पर एसएचओ का कहना है कि जाँच चल रही है, अब मैं देखता हूं कि तुम कितने मीडिया वालों को बुलाते हो। उच्चाधिकारिओं से संपर्क करने पर भी कोई राहत मिलती प्रतीत नहीं हो रही है। मुझे पुलिस द्वारा, खुंदक खाकर उलटी सीधी धाराओं में फंसाया जा रहा है।
दिनांक 5 अगस्त को उक्त महिला द्वारा फर्जी मुक़दमे वापस लेने की एवज में 5 लाख रुपये की मांग भी की गयी जिसकी ऑन रिकॉर्ड शिकायत मेरे द्वारा पुलिस से की गयी। उक्त महिला मेरी माँ की आयु की है। गत दो तीन दिनों से यहाँ का एक छुटभय्या नेता (जो कि किसी भी फ्लैट के बनने पर उगाही करता है) मेरे घर के पास कुछ असामाजिक तत्वों को लाकर मेरे घर को इंगित करके पहचान भी करवा रहा है। यशवंत भाई आज तक मेरे खाते में भगवान की दया से कोई भी चारित्रिक या सामाजिक पाप नहीं है। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस स्थिति का सामना कैसे करूँ। दरअसल थानाध्यक्ष की असली रंजिश पत्रकार मित्र का फ्लैट बनने के दौरान गत वर्ष पैसों की डिमांड को पूरा ना करना रहा है। थानाध्यक्ष का कहना है कि या तो आत्महत्या कर लो वरना एनकाउंटर में मार दिए जाओगे। इस दौरान भारी मानसिक तनाव के कारण पोर्टल का कार्य भी नहीं देख पा रहा हूँ।
मार्ग दर्शन व सहयोग की अपेक्षा में
आपका
संदीप अग्रवाल
मोबाइल नंबर 9818950977
दिनांक : 09/08/2014
सिकंदर हयात
August 12, 2014 at 11:51 am
हम भी इसी तरह कांग्रेस के एक दूसरी पंक्ति के मुस्लिम नेता की महिला कार्यकर्त्ता की गुंडागर्दी का शिकार होए थे बेहद तनाव भागदौड़ और मुकदमेबाजी करके मेने अपने परिवार को बचाया था वार्ना हमारा भी यही हाल होता जो अग्रवाल साहब का हो रहा हे मेरा सॉफ्टवेयर इंजिनियर भाई तो उन हालात में कुछ डिप्रेशन में चला गया था बड़ी मुश्किल से और अपना बेहद समय खराब करके मेने कोई हादसा होने से बचाया था
सिकंदर हयात
August 12, 2014 at 12:01 pm
इन हालात में मेने महसूस किया की आम और शरीफ आदमी की आदमी ताकत कई गुणा बड़ सकती हे और वो इन गुंडों -इन दबंगो से तब ही लोहा ले सकता हे जब वो अपने अंदर जेल जाने की शर्म हया और डर निकाल फेंके अब देखे तो जेल से निकल कर ही यशवंत भाई प्रेमचंद की कहानी कैदी के आइवान की तरह हो गए ” जिसे जेल की दीवारो ने और भी खूंखार बना दिया ” तो ये फंडा हे लेकिन मुझे जेल की 2 बातो से बहुत ही डर लगता हे एक तो गंदे टॉयलेट से दूसरा सुना हे की जेल में ”हो — ” टाइप के केदियो से