Raj Parikshit Singh : जितेंद्र चतुर्वेदी जी हमारे बचपन के मित्र हैं। होश संभाला तो पहला नाम जितेंद्र का ही आता है दोस्ती में। पेशे से या शौक से जो भी समझिये, ये बहुत ही सारगर्भित पत्रकार हैं। लेकिन विडम्बना देखिये जिस रात हम लोग दीया जलाकर अपने जीवन के अंधकार को दूर कर रहे थे, 25-26 की उसी रात को जितेंद्र के बहन बहनोई का लखनऊ में एक्सीडेंट हो जाता है।
इस एक्सीडेंट व शहर के जाने माने अस्पताल की लापरवाही की वजह से इनके 6 वर्ष की मासूम भांजी की उसी रात अंततोगत्वा मृत्यु हो जाती है।
लेकिन घूसखोर पत्रकारिता और बड़े नाम के अस्पताल के पैसे की सेटिंग से वास्तविक खबर को दबा के मनगढ़ंत खबर बना के छाप दी जाती है। अस्पताल और अखबार दोनों बड़े नाम वाले हैं। खुद जितेन्द्र चतुर्वेदी की आप बीती पढ़िए और शेयर करिये।
Jitendra Chaturvedi : 25-26 अक्टूबर की रात मेरे बहन और बहनोई के साथ दुर्घटना हुई। उसमें उन लोगों ने अपनी छह साल की बच्ची और मैंने अपनी भांजी को खो दिया। 27 अक्टूबर को इसी घटना पर दैनिक जागरण के लखनऊ संस्करण ने खबर छापी। वह तथ्यात्मक रूप से गलत है। कैसे? उसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं। अगर संभव हो तो इसे आगे बढाए ताकि #खबरों में ही सही, उस मासूम के साथ न्याय हो सके।
1- दैनिक जागरण के मुताबिक पीड़ित परिवार को जिस कार ने टक्कर मारी उसने अस्पताल पहुचाया। यह सही नहीं है। पीडित परिवार को राहगिरों ने अस्पताल पहुंचाया।
2- जिस गाड़ी ने टक्कर मारी उसका नबंर DL3CBZ 4499 है। गाडी का ड्राइवर दुर्घटना के बाद भाग गया था।
3-वह अस्पताल लोहिया नहीं है। जबकि दैनिक जागरण की खबर में कहा गया है कि परिवार को लोहिया अस्पताल ले जाया गया
4- दैनिक जागरण के मुताबिक मासूम ने वही दम तोडा। यह भी गलत है। दुर्घटना 25 अक्टूबर की रात 11 के बजे आसपास की है। दुर्घटना के बाद राहगीर पीड़ित परिवार को लेकर शेखर अस्पातल गए। वहां से बच्ची को चंदन अस्पताल रेफर किया गया। तकरीबन रात 12 बजे के करीब पीड़ित परिवार बच्ची के साथ चंदन अस्पताल पहुंचा। इस दरमियान बच्ची अपने माता पिता से बात करती रही। अस्पताल में उसे एक्स रे और सीटी स्कैन के लिए तकरीबन 1.30 बजे ले जाया गया। कोई 3 बजे रात के आसपास बच्ची को मृत घोषित किया गया।
इस पूरे मामले में अस्पताल की भूमिका क्या रही? वह गहन छानबीन का विषय है। मेरी दैनिक जागरण के संपादक से अपील है कि कम से कम खबर में तो उस मासूम के साथ न्याय करें।
राज परीक्षित सिंह और पत्रकार जितेंद्र चतुर्वेदी की एफबी वॉल से.