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सुख-दुख

कोरोना से जूझे यशवंत ने लिखना शुरू किया संस्मरण

कोरोना को मात देने के बाद रिकवरी प्रक्रिया में जुटे यशवंत की तस्वीर.

Yashwant Singh-

कोरोना काल ने जीवन मौत के बीच खड़े रहने वाले रहस्यमयी काले पर्दे को बड़ी बेरहमी से हटा दिया है। अपनों की लाशें यूँ ही गंगा किनारे बालू में डाल आने की किसी ने कभी कल्पना न की थी। जो जी रहे हैं वो ‘मर न जाएँ’ की दहशत में हैं। जो मर गए, जो मर रहे हैं, उनमें जीने की चाह थी/है, बचा लिए जाने की आकांक्षा से भरे हुए थे/हैं।

जो बच गए वो फिर वही रूटीन पकड़ लेंगे। वही सुबह दोपहर और शाम रात। वे बच्चे पालेंगे। परिवार जिलाएँगे। करियर बढ़ाएँगे। इस प्रक्रिया में खुद के जीवन को रोज़ ब रोज़ दुहराते हुए एक दिन बूढ़े हो जाएँगे।

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जब तक ज़िंदा रहे, जीवन को न समझ पाएँगे।

भागमभाग में ही लगे रहे।

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हम भी कोरोना के भयानक प्रहार को झेले। अस्पताल की दुर्व्यवस्था देख घर भाग आए।

पोस्ट कोविड रिकवरी के दरमियान बहुत से विचार आ जा रहे हैं।

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आगे का जीवन अब वही न रह जाएगा जो अब तक था।

वो क्या होगा…. ??? एक खाका सा दिल दिमाग में बन रहा है.

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उसे लिख डालने की सोच रहा हूं.

इसके लिए स्वामी भड़ासानंद नामक पेज फेसबुक पर बनाया है.

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जो बातें मन मस्तिष्क में आएँगी उन्हें यहां इस पेज पर दर्ज किया जाएगा!

मेरी भड़ास तो निकलेगी ही, शायद किसी दूसरे के भी काम आ जाए!

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पेज को लाइक करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- Swami Bhadasanand


ये है कोरोना संक्रमित होने के तुरंत बाद की कुछ पोस्ट….

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Yashwant Singh-

कोरोना पीड़ितों की लिस्ट में खुद को मान लिया। उसी हिसाब से इलाज चल रहा है। आज कोरोना टेस्ट कराएँगे। बस आने ही वाला होगा private लैब का बंदा। रात सोने से पहले टेस्ट किया था कितनी देर साँस रोक सकता हूँ। तीस सेकंड तक अगर साँस रोक ले रहे तो फेफड़ा सही है।

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ग़ाज़ीपुर से नोएडा आना महँगा पड़ गया। पहले बुख़ार आया। आया तो ऐसा आया कि फिर आता ही रहा। जाने का तनिक नाम न ले रहा। डोलो खाने पर भी सौ का टेंप्रेचर बना रहता। हर पाँच घंटे में बुख़ार फ़ुल फ़ॉर्म में चढ़ जाता। चार चार बार डोलो650 खाना पड़ रहा। डाक्टरों ने कोरोना संक्रमित मान उसी आधार पर दवाएँ दी हैं। आज टेस्ट से रिज़ल्ट आएगा।

इलाज होम आयसोलेशन में चलेगा बशर्ते कोई बहुत इमरजेंसी न आ जाए। मेरे साथ साथ वाइफ़ भी संक्रमित लग रहीं। उन्हें बुख़ार के अलावा खांसी और अलर्जी भी बहुत है।

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कोरोना के इलाज में दो चीजें ध्यान में रखूँगा। नर हो न निराश करो मन को। शरीर कोरोना पॉज़िटिव हो तो मन भी थॉट पॉज़िटिव वाला बनाए रखना पड़ेगा।

कोई भी दुःख इतना बड़ा नहीं जो जीवन से जीवंतता छीन ले।

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इसी बीच कोरोना से ठीक हो चुके लोगों और नए संक्रमितों का एक वाट्सअप ग्रुप क्रिएट किया ताकि सरकार द्वारा राम भरोसे छोड़ी गई जंता का अपना एक मोर्चा हो जहां अनुभव आयडीयाज शेयरिंग हो सके। ये ग्रुप नए संक्रमित मित्रों को अलग थलग पड़ कर डिप्रेशन में जाने से बचाने के लिए है। इसका नतीजा सकारात्मक है।

आप सबसे यही कहूँगा कि अब स्टाप बोल दीजिए। बहुत हुआ बाहर निकलना। बहुत हुआ ऑफ़िस जाकर नौकरी करना। महीने भर तक के लिए गोता लगा जायिए। इसी में आपका और आपके परिवार का भला है। कोरोना हो गया तो आपको बहुत झेलना पड़ेगा, अपने शुरुआती अनुभवों से कह रहा हूँ। इसलिए जान है तो जहान है। बहुत इमरजेंसी न हो तो घर से न निकलें। बाहर जाना ही पड़ जाए तो बढ़िया से मास्क ग़लब्स पहनकर ही निकलें।

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मेरे साथ जो जो लोग मिले जुले हों उनसे अनुरोध है कि वे भी एहतियातन अपना टेस्ट करा लें।

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