अनेहस शाश्वत-
बहुत पुरानी बात है , लोगों को शायद ही याद होगी , तब बाबरी मस्जिद या राम मंदिर आंदोलन जो भी कहिए , अपनी शैशव अवस्था में ही था । सिद्ध पीठ होने के नाते गोरक्ष पीठ भी इस आंदोलन के केंद्र में थी । कांग्रेस से गोरक्ष पीठ के छत्तीस के आंकड़े बहुत पहले से थे । महंत दिग्विजय नाथ के समय , ये रार काफी बढ़ भी गई थी । बहरहाल बाबरी मस्जिद आंदोलन जब शुरू हुआ , महंत अवैद्यनाथ गोरक्ष पीठ के महंत हुआ करते थे ।
संघ और भाजपा ने आंदोलन शुरू तो कर दिया था , लेकिन उसके नफे नुकसान को लेकर अभी भी वो लोग संशय में थे । रास्ते में मुलायम , मायावती जैसे छोटे मोटे पत्थर भी थे और कांग्रेस रूपी पर्वत तो था ही । इसलिए शक्ति संचय के लिहाज से साधु संतों को इकट्ठा करने का काम संघ और भाजपा ने तब शुरू किया । उसी क्रम में गोरक्ष पीठ से भी संपर्क साध कर आंदोलन में योगदान की याचना की गई । कांग्रेस विरोध का इतिहास होने के नाते तब के महंत अवैद्यनाथ मान भी गए ।
लेकिन इस आंदोलन की सफलता को लेकर शंकित वो भी थे । इसलिए प्रकट रूप से संघ और भाजपा के साथ शुरुआती दौर में वे नही दिखे । और वो स्वाभाविक भी था , गोरक्ष पीठ की सुरक्षा के लिए ये दूरी जरूरी भी थी । आंदोलन जब ठीक ठाक ढंग से सफल होने लगा तब अवैथनाथ ने सामने आकर इसका फायदा उठाया और सांसद बने । इस पृष्ठभूमि में उनके उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ की कार्य प्रणाली को समझें तो बेहतर तरीके से समझ पाएंगे ।
बूढ़े हो चले महंत अवैद्यनाथ ने आदित्य नाथ को सांसदी भी सौंप दी और मठ के नए महंत तो वे बन ही गए थे । इधर राम मंदिर आंदोलन भी काफी हद तक सफल हो चुका था और प्रसाद स्वरूप केंद्र में अटलजी की सरकार और उत्तर प्रदेश में भी भाजपा की सरकारें बन चुकी थीं । और योगी आदित्यनाथ भी दो _ तीन बार सांसदी का आनंद ले चुके थे । साथ ही कांग्रेस भी एक बार फिर से सोनिया गांधी के नेतृत्व में ताकतवर हो चुकी थी । ऐसे में योगी बाबा ने अपने पुरखे अवेद्यनाथ की राह फिर से पकड़ी और संघ और भाजपा से दूरी बनाली ।
अब हिंदू युवा वाहिनी के सर्वे सर्वा के तौर पर योगी आदित्यनाथ हिंदू हृदय सम्राट तो थे लेकिन संघ और भाजपा से उनका कोई लेना देना नही था । इधर भाजपा को भी पूर्वी उत्तर प्रदेश में बिना खर्च किए धरना प्रदर्शन के लिए एक संगठन मिला हुआ था । सो मौसेरे भाईयो की जोड़ी बनी रही ।
समय बीता और फिर पलटा भी । संघ और भाजपा ने अन्ना एंड कंपनी की मदद से कांग्रेस की केंद्र सरकार को उखाड़ने के लिए बड़ा आंदोलन चलाया । उस समय ये खतरा तो था ही की कांग्रेस आंदोलन को बुरी तरह से कुचल देती , ये और बात है की राजनीति के लिहाज से अपरिपक्व सोनिया _ मनमोहन की जोड़ी उससे नही निपट पाई और सुविधा भोगी कांग्रेस के लोग उस आंदोलन की गहरी पैठ को नहीं भांप पाए ।
उस पूरे आंदोलन के दौरान हिंदू हृदय सम्राट ने आंदोलन से सुरक्षित दूरी बनाए रखी और साफ छिपते भी नहीं , सामने आते भी नही की नीति पर अमल किया । लेकिन आंदोलन सफल रहा , पहले मोदी प्रधान मंत्री बने फिर उत्तर प्रदेश में भाजपा सत्ता में आई । उत्तर प्रदेश में भाजपा अपने में से किसी को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थी , लेकिन दुरभि संधि की राजनीति में माहिर योगी ने खेल कर दिया और मुख्य मंत्री बनने में सफल रहे ।
चूंकि टैग भाजपा का लगा था सो पार्टी ने भी बहुत आपत्ति नहीं की , लेकिन योगी ने अपनी करनी से ये लगातार साबित किया की पहले वे है भाजपा बाद में । संगठन और सहयोगियों से लगातार उनकी ठनी रही लेकिन सरकार बनी रहे इसलिए भाजपा ने भी चुप चाप तमाशा देखना उचित समझा । इधर उत्तर प्रदेश की अस्सी संसदीय सीटों ने योगी बाबा का भी दिमाग मायावती और मुलायम सिंह की तरह घुमा दिया और अब प्रधानमंत्री की कुर्सी उनका लक्ष्य बन गया ।
दूसरी तरफ खेल के बाकी साझे दार भी उचित समय का इंतजार कर रहे थे और चुनाव के रूप में वो समय सामने आ भी गया । अब दांव शुरू हो चुके थे , योगी जी ने हिंदू हृदय सम्राट होने के नाते उत्तर प्रदेश में कहीं से भी चुनाव लडने की ठानी तो विघ्न संतोषी इस बात मे जुटे की हिंदू युवा वाहिनी के अधिपति को उसी गोरक्ष पीठ का रास्ता दिखाया जाए , जहां से वे चले ।
देखने से लग रहा है , पहले दांव में विघ्न संतोषी सफल रहे , लेकिन ये तो शुरुआत है , अभी बहुत से दांव बाकी हैं और उससे भी बड़ी बात की भाजपा उत्तर प्रदेश में सत्ता में वापस आती भी है या नहीं । अगर वापसी होती है तो योगी और विरोधियों के दांव और ज्यादा सांघातिक होंगे और अगर भाजपा सत्ता में वापस नहीं आती तो हिंदू हृदय सम्राट और हिंदू युवा वाहिनी के अधिपति बतौर पूर्व मुख्य मंत्री और बतौर गोरक्ष पीठ महंत बाबा गोरख नाथ मंदिर परिसर में फिर से पधारेंगे, अगले दांव के सफल होने तक ।