आज हमारी सम्पूर्ण मानव सभ्यता को यह विचार करने की आवश्यकता है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को कैसी दुनिया छोड़कर जा रहे हैं। जिस तरह की विविधता भरी मनोरम, सुरम्य और सुंदर प्राकृतिक संसाधनों से भरी दुनिया हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए छोड़ी थी, आज वह वैसी बिल्कुल नहीं रह गयी है। हमने पिछली एक-दो शताब्दी से प्राकृतिक संसाधनों का इतनी निर्ममता से दोहन किया है कि आज हमारी इस खूबसूरत दुनिया की हालत बहुत चिंताजनक है। हम सब और हमारी सरकारों इतनी स्वार्थी और स्वकेंद्रित हो गयीं हैं कि हमने अपने खुद के लिए और उद्योगपतियों व पूंजीपतियों के उपभोग और विलासितापूर्ण जीवन जीने के लिए प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट की छूट दे दी है।
इससे हमारी पूरी दुनिया पर संकट पैदा हो गया है और समस्त जीव जगत का जीवन संकट में पड़ गया है। आज पूरी दुनिया में प्राकृतिक संसाधनों की जो खुली लूट शुरू हुयी है, उससे लोगों और सरकारों में भीषण लड़ाईयां शुरू हुईं हैं। प्राकृतिक आवासीय वातावरण बिगड़ने से वान्य प्राणियों का मानव बस्तियों की ओर पलायन और संघर्ष शुरू हुआ है। इसके कारण हमारे वन्य जीव कई बार संघर्ष में लोगों के द्वारा अपनी जान भी गवां रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट के कारण जलवायु परिवर्तन भी बड़े पैमाने पर हुआ है। इससे पृथ्वी का तापमान भी बढ़ रहा है, जिसके कारण हिमनद और ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं। समुद्र का जल स्तर प्रतिवर्ष एक सेंटीमीटर की दर से बढ़ रहा है, अगर बढ़ते तापमान का यही हाल रहा तो आगे आने वाले सौ वर्षों में समुद्र का जल स्तर एक मीटर बढ़ जाएगा, जिसके कारण दुनिया भर में समुद्र के किनारे के बसे तटीय शहर डूब जायेंगे, जैसा कि किरीबाती दीप के साथ हुआ है।
हमारी पृथ्वी के बढ़ते तापमान के कारण अब मौसम भी स्थिर नहीं रह गया है। बहुत सारी प्रजातियाँ जो बढ़ते तापमान के कारण नष्ट हो गयीं हैं, इनमें सैकड़ों की संख्या में जीव जंतुओं कीड़ों-मकोड़ों, समुद्री जीवों और तितलियों का जीवन संकटग्रस्त अवस्था में है। बढ़ते औद्योगिकीकरण और अनेक प्रकार के विकिरण के कारण मधुमक्खियाँ, तितलियाँ, उल्लू, चमगादड़ और अन्य छोटी चिड़ियाँ अपना रास्ता भूल रही हैं। इन मधुमक्खियों, तितलियों, उल्लू, चमगादड़ और अन्य छोटी चिड़ियों के रास्ता भटकने और असमय मरने के कारण पेड़-पौधों में परागण नहीं हो पायेगा। इससे फसलों का बीज नहीं बनेगा और हमारे सामने खाद्यान्न संकट पैदा हो जायेगा।
यदि यही हाल रहा तो हमारी कृषि ऊपज पर इसका बहुत गंभीर परिणाम पड़ेगा। इसका समाधान हम सबको मिलकर निकालना होगा और हमारी सरकारें अगर आज सक्रिय नहीं हुईं तो हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक बढ़ते तापमान वाली गर्म होती पृथ्वी और तरह-तरह के सुंदर रंगीन वन्य जीव-जंतुओं से विहीन दुनिया छोड़कर जायेंगे, जिसमें पीने का पानी भी दूषित होगा और सांस लेने वाली स्वच्छ आबो-हवा तो भयंकर रूप से दूषित होगी। यह सब संकट हमारी बढ़ती तृष्णाओं का ही परिणाम है। भगवान बुद्ध ने जब अपना पहला उपदेश धम्मचक्रप्रवर्तन के रूप में सारनाथ में दिया था तो उनकी चिंता के केंद्र में मानवीय लालच-इच्छा-तृष्णा ही थी। इसीलिए उन्होंने हमारी बढ़ती तृष्णा को अपने दूसरे आर्यसत्य में स्थान दिया था। लालच चाहे वह प्राकृतिक संसाधनों की जो खुली लूट के रूप में हो, जो हमारी बढ़ती तृष्णा का ही परिणाम है। इसलिए हम अपनी उपभोग और विलासितापूर्ण जीवन जीने की आवश्यकताओं को कम करें। तभी हम अपनी इस खूबसूरत दुनिया को अपनी आने वाली पीढ़ियों को सकुशल दे पायेंगे।
हम यदि प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट की बात करते हुये इस पर निष्पक्षता से विचार करें तो यह आज कई तरह की मानवीय संघर्ष की समस्याएं भी पैदा कर रही है। इस संघर्ष के कारण दुनिया के कुछ हिस्सों में अशांति, भय और आतंक का माहौल उत्पन्न हुआ है। सबसे बड़ी समस्या लोगों के द्वारा अपने-अपने में देशों निर्वाचित सरकारों की ओर से है, जो उद्योगपतियों व पूंजीपतियों के लिए प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट की छूट देती हैं। इससे वहाँ मानवीय संघर्ष पैदा होता है और उस देश या हिस्सों में व्याप्त गरीबी, भूखमरी, अशिक्षा, बुनियादी स्वास्थ्यगत सुविधाओं का अभाव और बढ़ता भ्रष्टाचार हिंसात्मक रूप में हमारे सामने आता है। आज अगर हम निष्पक्षता से विवेचना करें तो पायेंगे कि जिन देशों में यह समस्याएं हैं, वहाँ मानवीय संघर्ष हिंसा और अशान्ति के रूप में हमारे सामने हैं। यह संघर्ष आतंकवाद और अन्य तरह की हिंसात्मक गतिविधियों के रूप में हमारे सामने आता है, जो हमारी सम्पूर्ण मानव सभ्यता के लिए बहुत ही त्रासदपूर्ण है।
इसमें कुछ लोग अपने हित व दबाव समूह बनाकर और भोले-भाले लोगों को बहकाकर आपस में खून-खराबा करने पर अमादा रहते हैं। इससे बड़ी मानवीय त्रासदी और क्या होगी कि मानव ही मानव के खून का प्यासा है। आतंकवाद चाहे वह किसी भी रूप में हो, एक सभ्य समाज के लिए खतरा ही है। आज हम दुनिया के कई देशों और हिस्सों में देखते हैं कि आतंकवाद बढ़ता ही जा रहा है। यदि इस पर धार्मिक कट्टरता का आवरण चढ़ा दिया जाए तो यह और भी अधिक क्रूर हो जाता है, जिसमें बेगुनाह लोगों की हत्या करने, उनके सिर कलम करने जैसी क्रूरता शामिल है और महिलाओं की नीलामी करना उनके साथ दुराचार करना यह धार्मिक आतंकी अपने शौर्य की पराकाष्ठा समझते हैं।
आज इस तरह के भयाभय वातावरण में जरूरत है भगवान बुद्ध के शांति, शील और सदाचार पर आधारित मैत्रीपूर्ण उपदेशों की। जिस प्रकार पूरी दुनिया में आज युद्ध, हिंसा, अराजकता, नफरत और असहिष्णुता का माहौल व्याप्त है और यह बढ़ता ही जा रहा है, ऐसे में आवश्यकता बौद्ध धम्म दर्शन की मैत्री, करुणा, प्रज्ञा और शील की, जो समस्त जीव-जगत और सभी प्राणियों के प्रति व्यापक कल्याण की भावना रखती है, जिसमें युद्ध, हिंसा, नफरत और अराजकता के लिए कोई स्थान नहीं है। इसलिए भगवान बुद्ध के समस्त उपदेश और उनकी पैतालीस वर्षों की चारिका सम्पूर्ण जैव जगत, प्राणी जगत, मनुष्यता एवं समाज के लिए उच्च मानवीय मूल्यों, सदाचार, नैतिकता एवं विश्व बंधुत्व की कल्याणकारी भावना को स्थापित करती है।
यह बात ठीक है कि बढ़ती गरीबी, भूखमरी, अशिक्षा, बुनियादी स्वास्थ्यगत सुविधाओं का अभाव, भ्रष्टाचार और धर्मान्धता इन सब बुराईयों की जननी है। यह बहुत ही शर्म और चिंता की बात है कि आज 21वीं सदी में करोड़ों लोगों को दुनिया भर के विभिन्न देशों और हिस्सों में भूखे पेट सोना पड़ता है। हमारी सरकारें आज भी लोगों को भरपेट भोजन उपलब्ध नहीं करवा पायीं हैं। आज हम देखते हैं कि हमारे समाज में कई तरह की समस्याएं होने के बावजूद हम उन सभी बुराइयों से नहीं लड़ते हैं, बल्कि आपस में ही खून-खराबा करने पर आमादा रहते हैं। जब तक हम अपने अंदर की बुराईयों, कमजोरियों और आसक्तियों से नहीं लड़ेंगे, तब तक हम उन सामाजिक बुराईयों से नहीं लड़ पायेंगे। इसलिए भगवान बुद्ध कहते हैं कि शरीर को देखो जो विचित्र व्रणों से युक्त है, फूला हुआ है, पीडि़त है और यह नाना संकल्पों से युक्त है। इसकी स्थिति अनियत है। हमें चाहिए कि हम पहले अपने अंदर की समस्त आसक्तियों को दूर करें और अपने अंदर अच्छे कर्मों की समृद्धि पैदा करें।
मानव हत्या और हिंसा के सम्बन्ध में तथागत बुद्ध का स्पष्ट मत था कि वह हत्यारा हिंसक व्यक्ति एक सभ्य मानव समाज में रहने के लायक नहीं रहता है। इसलिए धम्मपद के बुद्ध वग्ग में कहा गया है कि सभी तरह के पापों का न करना, पुण्य कर्मों का संचय करना और अपने चित्त को परिशुद्ध रखना, यही बुद्धों की शिक्षा है। भगवान बुद्ध के विचारों की आज के समय में बहुत अधिक आवश्यकता है। आज दुनिया को युद्ध की नहीं, बुद्ध की जरुरत है।
वर्धा विश्वविद्यालय में बौद्ध अध्ययन केंद्र के प्रभारी निदेशक डॉ. सुरजीत कुमार सिंह का संपर्क : [email protected]
Dr.U.S.Chaudhary
September 12, 2016 at 1:53 pm
Buddh is face of peace