हम में से बहुतों के मामले इस समय लेबर कोर्ट पहुंच चुके हैं या वहां चल रहे हैं या कई में फैसले आ चुके हैं। उनको देख कर लगता है कि हमारे द्वारा कई छोटी-छोटी चूकें हो रही हैं, जिसका खामियाजा कहीं ना कहीं भुगतना भी पड़ रहा है। इनमें से एक सबसे बड़ी चूक कंपनी रिकार्ड में मौजूद हमारे या हमारे मामले से जुड़े दस्तावेजों की मांग नहीं करना भी शामिल है।
रिकवरी के कई मामलों में कर्मचारियों द्वारा कंपनी के टर्नओवर से संबंधित दस्तावेजों की मांग ही नहीं की जा रही है। इस वजह से टर्नओवर को लेकर जहां हम यह बात साबित करने का भार अपने उपर लेकर चल रहे हैं, तो वहीं कंपनी प्रबंधन को इस बात का भरपूर फायदा हो रहा है।
इससे जहां कर्मचारी या दावेदार का पक्ष कहीं न कहीं कमजोर पड़ रहा है और प्रबंधन इस बड़े हथियार की जद में आने से साफ साफ बच रहा है। इसमें ऐसे अखबारों के कर्मियों को ज्यादा दिक्कत आती है जो शेयर बाजार में लिस्ट नहीं हैं या जो पार्टनरशीप फार्म के कर्मचारी हैं। कुछ कंपनियां तो ऐसी भी हैं जिनकी बैलेंसशीट एमसीए या रजीस्ट्रार आफ कंपनिज के पास भी जमा नहीं करवाई गई है।
ऐसे में आईडी एक्ट की धारा 11(3) और सीपीसी के प्रावधानों के तहत मामले से जुड़ें दस्तावेजों की मांग करना आधा केस जीतने के सामान समझा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर कंपनी की जिस बैलेंसशीट को प्रूव करने का भार हम पर हैं, वे दस्तावेज मांगने की अर्जी लगाने पर कंपनी की ओर शीफ्ट हो जाएगा।
इसी तरह सेलरी स्लीप, हाजिरी रजिस्टर और इसी तरह मामले से जुड़े वे दस्तावेज प्रबंधन से मांगे जा सकते हैं जो कपंनी के रिकार्ड में होते हैं। अगर कंपनी इन्हें देने से मुकरती है तो इसका फायदा सीधे तौर पर दावेदार को मिलता है। जिसे कानूनी भाषा में एडवर्स इन्फेयरेंस कहा जाता है।
ये दस्तावेज मांगे जाने जरूरी हैं-
कंपनी के टर्नओवर से जुड़े दस्तावेज, क्लासीफिकेशन के मामले में कंपनी की आयकर रिटर्न, अगर कंपनी दावा कर रही कि उसकी अलग-अलग यूनिटें हैं तो कंपनी से उसकी इंडिपेंटेंड यूनिट के पंजीकरण, रजीस्ट्रार आफ कंपनिज को भेजी गईं बैलेंसशीट और प्राफेट/लॉस अकाउंट की प्रतियां, आरएनआई के नियमानुसार अलग-अलग प्रकाशन केंद्रों के स्वामित्व की घोषणा का प्रपत्र-4 के तहत अखबार में प्रकाशित सूचना की प्रतियां, सत्यापित स्टैडिंग आर्डर की प्रतियां, ज्वाइंनिग लैटर, प्रोबोशन लैटर, परमानेंट लैटर, प्रमोशन लैटर, सैलरी स्लिप, ड्यूटी चार्ट, ड्यूटी टाइंमिग, कर्मचारियों की सूची इत्यादि।
द्वारा
रविंद्र अग्रवाल
अध्यक्ष, न्यूजपेपर इम्प्लाइज यूनियन ऑफ इंडिया
संपर्क : 981610326
madan kumar tiwary
August 29, 2019 at 7:11 pm
अच्छा आर्टिकल है,बेसिक समस्या लेबर कोर्ट के जोकर मजिस्ट्रेट सबका बिक जाना है, देश का तो मैं नही बता सकता परन्तु बिहार के हर लेबर कोर्ट की यही स्थिति है, जांच होने पर सब जेल जाएं,लेकिन जांच करवाएगा कौन ?वह भृष्ट मुख्य न्यायाधीश जिसने जस्टिस राकेश कुमार द्वारा उठाये गए जेनुइन मामले में जांच करवाने की बजाय 11 जजो की स्टैंडिंग कमेटी बुलाकर उल्टा उनपर ही कार्रवाई कर दी ? हाई कोर्ट की स्टैंडिंग कमिटी का ही मारा हुआ हूँ मैं, मेरे कैरियर को खत्म कर दिया अन्यथा आज जज तो हर हाल में रहता, एलिवेट होकर जस्टिस भी बनने की संभावना थी, बहुत सारे गंभीर मामले हैं ,साक्ष्य है, उच्चतम न्यायालय को भेजा गया,नियुक्तियों में गड़बड़ी का साक्ष्य, लीपापोती कर दिया उच्चतम न्यायालय ने, आज वे जज एलिवेट भी हो चुके है,कुछ रिटायर्ड भी । बहुत कठिन है न्यायपालिका के भ्र्ष्टाचार से लड़ना ।
अनिल तिवारी
September 11, 2019 at 8:16 am
बिकुल आजकल ऐसा ही हो रहा है। आवाज उठाने वालों को ही निशाना बनाया जाता है । ताकि दूसरा कोई आवाज न उठाये।